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Thursday, 19 December, 2024
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भारतीय शोधकर्ता दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी ‘ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’ का इलाज विकसित कर रहे हैं

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(गुंजन शर्मा)

(तस्वीरों के साथ)

नयी दिल्ली, आठ जनवरी (भाषा) भारत में शोधकर्ता ‘ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’ नामक एक दुर्लभ और असाध्य अनुवांशिक बीमारी के लिए एक किफायती उपचार विकसित करने पर काम कर रहे हैं। देश में इस बीमारी के पांच लाख से अधिक मामले हैं।

‘ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’ (डीएमडी) मांसपेशियों को प्रभावित करने वाली एक अनुवांशिक बीमारी है। इस बीमारी की वजह से मांसपेशियां धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो जाती हैं और लंबे समय तक इसकी स्थिति के कारण वे पूरी खराब भी हो सकती है।

इस बीमारी के होने पर मांसपेशियों की कोशिकाओं में ‘‘डाइस्ट्रोफिन’’ नामक एक प्रोटीन का उत्पादन कम होने लगता है या उसका उत्पादन पूरी तरह से बंद भी हो सकता है। यह स्थिति मुख्य रूप से लड़कों में देखी जाती है, लेकिन दुर्लभ मामलों में यह लड़कियों को भी प्रभावित कर सकती है।

डीएमडी के इलाज के लिए उपलब्ध मौजूदा चिकित्सा विकल्प बहुत कम और अत्यधिक महंगे हैं, जिनकी लागत प्रति वर्ष प्रति बच्चा 2-3 करोड़ रुपये तक आती है और दवाइयां ज्यादातर विदेशों से आयात की जाती हैं। खुराक की लागत बहुत आती है और यह ज्यादातर लोगों को उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), जोधपुर ने ‘डिस्ट्रोफी एनीहिलेशन रिसर्च ट्रस्ट’ (डीएआरटी), बेंगलुरु और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जोधपुर के सहयोग से डीएमडी के लिए एक शोध केंद्र स्थापित किया है।

इस केंद्र का उद्देश्य इस दुर्लभ और लाइलाज अनुवांशिक बीमारी के लिए किफायती उपचार विकसित करना है।

अनुसंधान एवं विकास, आईआईटी जोधपुर, के डीन सुरजीत घोष के अनुसार डीएमडी एक ‘एक्स लिंक्ड रिसेसिव मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’ है, जो लगभग 3,500 लड़कों में से एक को प्रभावित करती है, जो धीरे-धीरे मांसपेशियों के ऊतकों को नुकसान पहुंचने का कारण बनती है। उन्होंने कहा कि ऐसा देखा गया है कि इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे 12 साल की उम्र तक चलने में पूरी तरह से असमर्थ हो सकते हैं और उन्हें व्हीलचेयर का उपयोग करना पड़ सकता है।

उन्होंने कहा कि लगभग 20 वर्ष की आयु में व्यक्ति को सहायक वेंटिलेशन की आवश्यकता हो सकती है।

घोष ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘वर्तमान में, डीएमडी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन एकीकृत उपचार के जरिये इस रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है। डीएमडी वाले मरीजों में प्रोटीन की अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग प्रकार के उत्परिवर्तन होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप डायस्ट्रोफिन ओआरएफ का निर्माण होता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारी टीम का प्राथमिक लक्ष्य उच्च प्राथमिकता पर क्लिनिकल परीक्षण के लिए दो चिकित्सीय उपाय विकसित करना है।’’

वैज्ञानिकों के अनुसार मांसपेशियों में कमजोरी डीएमडी का प्रमुख लक्षण है। यह बीमारी दो या तीन साल की उम्र में बच्चे को अपनी चपेट में लेना शुरू कर देती है।

कुछ समय पहले तक, डीएमडी से पीड़ित बच्चे आमतौर पर अपनी किशोरावस्था से अधिक जीवित नहीं रहते थे। हालांकि, हृदय और श्वसन देखभाल में प्रगति के साथ अब ऐसे मरीजों की जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है।

भाषा

देवेंद्र नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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