नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच लद्दाख़ में, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हुए सैन्य टकराव ने, चाइना स्टडी ग्रुप (सीएसजी) को फोकस में ला दिया है.
सीएसजी चीन से संबंधित नीतियों को लेकर सरकार की केंद्रीय और एकमात्र सलाहकार इकाई है और फिलहाल इस समय एक अहम रोल निभा रही है, जब दोनों देश बातचीत के ज़रिए पीछे हटने की प्रक्रिया का एक व्यापक ख़ाका तैयार करने की कोशिश में लगे हैं.
बुधवार को सीएसजी ने पिछले दिन भारतीय और चीनी कोर कमांडरों के बीच, चुशुल में 15 घंटे तक चली चौथे दौर की वार्ता की समीक्षा के लिए बैठक की.
सेना प्रमुख जनरल एमएम जनरल नरवणे ने सीएसजी को, कमांडर स्तर की ताज़ा दौर की वार्ता के नतीजों से अवगत कराया, जिसमें दोनों पक्षों के बीच लद्दाख़ में पूरी तरह पर पीछे हटने को लेकर, आगे बातचीत करने पर सहमति बन गई. 14 कोर के कमांडर ले. जनरल हरिंदर सिंह भी, जो 6 जून से इस स्तर पर हो रही सभी वार्ताओं में भारता का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं, सीएसजी बैठक में मौजूद थे.
बताया जा रहा है कि 9 जुलाई को सीएसजी ने एक बैठक की थी, जिसमें एलएसी पर गलवान, गोगरा चौकी और हॉट स्प्रिंग एरिया से चीनी सैनिकों के पीछे हटने की समीक्षा की गई थी. ये मीटिंग 6 जुलाई को दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत दोभाल, और चीनी विदेश मंत्री वांग यी- के बीच हुए समझौते के तुरंत बाद हुई थी.
सीएसजी का इतिहास और संरचना
सीएसजी एक सचिव स्तर का समूह है, जिसमें विदेश सचिव, गृह सचिव, रक्षा सचिव, तीनों सेवाओं के उप-प्रमुख, और इंटेलिजेंस ब्यूरो व रॉ के चीफ शामिल होते हैं.
ये समूह अपनी बैठकें स्वयं करता है, लेकिन समय समय पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी इसकी बैठकें बुलाते हैं. ऐसी बैठकों में सेना प्रमुख भी शरीक होते हैं, और मुद्दे के हिसाब से, विदेश मंत्री भी शिरकत कर सकते हैं.
सूत्रों ने कहा कि इसमें विशेष, आमंत्रित अतिथि भी शामिल हो सकते हैं, जैसा कि बुद्धवार को हुई बैठक में, 14 कोर के कमांडर ले. जनरल हरिंदर सिंह थे.
सीएसजी की स्थापना नवम्बर 1075 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देशों पर हुई थी, जिसमें विदेश, रक्षा और गृह मंत्रालयों के सचिव शामिल थे. इसके पहले प्रमुख कूटनीतिज्ञ केआर नारायण थे, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने.
सीएसजी का मुख्य काम था भारत-चीन सीमा पर नज़र रखना, उसके प्रबंधन का आंकलन करना, और सीमा के मुद्दे पर चीन के साथ बातचीत की तैयारियों में सहायता करना.
1976 में नारायणन के चीन में राजदूत नियुक्त किए जाने के बाद, विदेश सचिव को सीएसजी का अध्यक्ष नामित कर दिया गया, और उप-सेना प्रमुख इसके सदस्य बन गए.
बाद में 2003 में, चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधियों की बैठकें स्थापित करने के बाद, सीएसजी को तरक़्क़ी दे दी गई. इसका नेतृत्व उस समय के एनएसए बृजेश मिश्र को दे दिया गया, और बहुत से टॉप सिविल सर्वेंट्स इसमें शामिल किए गए.
अगले कुछ सालों में, सीएसजी का और विस्तार करके, इसमें खुफिया एजेंसियों के नुमाइंदे भी शामिल कर लिए गए.
क़रीबी नज़र रखना
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (एनएसएबी) के सदस्य, ले. जनरल एसएल नरसिम्हन (रिटा.) ने दिप्रिंट से कहा, कि चीनी मामलों पर फैसला लेने के लिए, सीएसजी के पास सभी ज़रूरी लोग मौजूद हैं.
उन्होंने कहा, ‘चाहे वो सीमा पर सड़क या दूसरे इनफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने का बड़ा फैसला हो, या मौजूदा स्थिति को मॉनिटर करने की बात हो, सीएसजी चीन से जुड़े पूरे घटनाक्रम पर बहुत क़रीबी नज़र बनाए हुए है’.
नरसिम्हन ने समझाया कि सभी अहम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, सीएसजी ने ही एलएसी पर पेट्रोल प्वॉइंट्स की शिनाख़्त की थी.
उन्होंने कहा, ‘सीएसजी ने सरहद पर रणनीतिक रूप से अहम, 73 सड़कों की भी पहचान की थी, और वो उस क्षेत्र में इनफ्रास्ट्रक्चर विकास की बड़ी योजनाओं का भी हिस्सा है’.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में चाइनीज़ स्टडीज़ के प्रोफेसर, श्रीकांत कोंडापल्ली ने कहा कि सीएसजी एक गोपनीय संगठन है, जो मौजूदा स्थिति के हिसाब से बैठकें करता है.
उन्होंने कहा, ‘इसमें वो नीतियां भी होती हैं, जो हमें सैन्य घटक के अलावा, चीन के प्रति अपनानी चाहिएं’.
कोंडापल्ली ने ये भी कहा कि हो सकता है, कि 59 चीनी एप्स बैन करने का फैसला भी, सीएसजी की सहमति से ही लिया गया हो.
कोंडापल्ली ने बताया कि इसके विपरीत, चीन में ‘छोटे अग्रणी ग्रुप्स’ हैं, जो उसे बहुत से देशों के लिए, नीतियों पर सलाह देते हैं.
दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में, एनएसएबी अध्यक्ष पीएस राघवन ने कहा था, कि एलएसी की क़रीबी देखरेख सरकारी प्रक्रिया में अंदर तक घुसी हुई है, और ये काम शायद पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा से भी अधिक कठोरता से किया जाता है. सीएसजी उस ढांचे का एक अभिन्न अंग है.
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