scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमडिफेंसअपाचे हेलिकॉप्टरों के लिए लड़ते रहे आर्मी और वायुसेना, 2500 करोड़ रुपए ज्यादा करना पड़ा खर्च

अपाचे हेलिकॉप्टरों के लिए लड़ते रहे आर्मी और वायुसेना, 2500 करोड़ रुपए ज्यादा करना पड़ा खर्च

अगर वायुसेना और सेना ने अलग-अलग काम काम नहीं किया होता तो, 28 अपाचे हेलिकॉप्टरों की खरीद इस बात का प्रमुख उदाहरण है कि भारत कैसे बेहतर तरीके से डील कर सकता था.

Text Size:

नई दिल्ली: अगर हिसाब लगाएं तो 22 एएच-64 ई अपाचे हेलिकॉप्टरों की कीमत 2015 में 21 बिलियन डॉलर या 14,910 करोड़ रुपये थी और 2020 में इनमें से छह हेलीकॉप्टरों की कीमत 6,600 करोड़ रुपये है.

मात्र पांच वर्षों में हेलीकॉप्टरों की कीमत में 62 प्रतिशत का इजाफ़ा हुआ है. हां, लगभग 1,100 करोड़ रुपये प्रत्येक हेलीकॉप्टरों के लिए भुगतान करना होगा, जो अत्याधुनिक हथियार प्रणाली से लैस हैं और सेना की गोलाबारी को बढ़ावा देते हैं.

इससे पहले कि आप हेलीकॉप्टरों की अधिक कीमत पर गुस्सा करना शुरू कर दें, जो कि सेना की गलती के कारण हुआ है, यहां एक चेतावनी है. याद रखें कि कीमत में सिमुलेटर, बुनियादी ढांचे के निर्माण और प्रदर्शन-आधारित लॉजिस्टिक्स की लागत भी शामिल है, जो पायलटों के प्रारंभिक समूह के प्रशिक्षण के अलावा, पुर्जों का भी ध्यान रखेगी.

लेकिन, लागत का अंतर दोनों सेनाओं के अलग-अलग काम करने की वजह से है.

यह सौदा यूपीए सरकार के दौरान शुरू हुआ था. सेना का विचार था कि फाइटर चॉपर को उनके पास रहना चाहिए, भारतीय वायुसेना इस स्थिति को नहीं खोना चाहती थी क्योंकि इसने पारंपरिक रूप से सेना के स्ट्राइक कॉर्प्स में एकीकृत लड़ाकू विमानन कवर की भूमिका निभाई थी.

भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख एनएके ब्राउन ने यहां तक ​​कहा था कि वह ‘वायु सेना को अपने से काम करने की अनुमति नहीं दे सकते थे.’

दोनों सेनाओं को शांत करने के लिए तब की यूपीए सरकार ने यह निर्णय किया था कि ये 22 हेलीकाप्टर वायुसेना को मिलेंगे अगर भविष्य में जो भी ख़रीदा जायेगा वह आर्मी को मिलेगा.

नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान भारतीय वायुसेना और सेना के सौदों के लिए अंतिम मंजूरी के साथ भारत ने दो अलग-अलग प्रशिक्षण प्रक्रिया, बुनियादी ढांचा निर्माण, पुर्जों, सिमुलेटरों आदि के लिए भुगतान किया.

अगर भारत ने हेलीकॉप्टरों को एक बार में खरीदने का फैसला किया होता तो समग्र रूप से बेहतर सौदे के लिए मोल-भाव किया जा सकता था, क्योंकि यह सामान्य बात है कि उच्च मात्रा लागत को कम करती है.


यह भी पढ़ेंः भारतीय वायु सेना ने एक साल पहले पाकिस्तान की क्षमता देखने के बाद भी अपनी ताकत नहीं बढ़ाई


दो सेनाओं को एक ही हेलिकॉप्टर की आवश्यकता क्यों?

ब्राउन ने कहा कि दोनों सेनाओं को एक ही काम के लिए फाइटर हेलीकॉप्टर क्यों चाहिए? राजनीतिक सत्ता को यह निर्णय जल्द लेना चाहिए कि किस सेना के पास कौन सा हेलीकॉप्टर होना चाहिए. ‘मेरी राय में, हमले के लिए हेलीकॉप्टर अमेरिकी सेना की तरह ही सेना के पास होने चाहिए.’

रक्षा स्टाफ के प्रमुख जनरल बिपिन रावत न केवल लोकाचार और संचालन के मामले में, बल्कि रक्षा अधिग्रहण में भी सशस्त्र बलों में संयुक्तता लाने के अपने दृष्टिकोण में बिल्कुल सही हैं. उन्होंने कहा, ‘जनरल रावत ने हाल ही में मुझे बताया कि ऐसी कई प्रणालियां हैं, जो सेवाओं के लिए सामान्य हैं. हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि हम इसे संयुक्त रूप से कैसे देख सकते हैं. ताकि लागत कम हो सके और श्रेष्ठ उपयोग हो सके.’

भविष्य की खरीद के लिए एक सबक

28 अपाचे हेलीकॉप्टरों की खरीद इस बात का प्रमुख उदाहरण है कि भारत कैसे बेहतर तरीके से डील कर सकता था. अगर वायुसेना और आर्मी ने अलग-अलग काम काम नहीं किया होता तो.

तथ्य यह है कि 28 अपाचे हेलीकॉप्टर भारत जैसे देश के लिए पर्याप्त नहीं हैं, भारत को कई प्रकार के खतरे हैं. भारत को और अधिक हेलीकॉप्टर की जरूरत है. थलसेना के लिए छह अपाचे एक मजाक हैं क्योंकि वे आइकॉनिक हेलिकॉप्टर होने के अलावा आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं.

चर्चा यह है कि भारत अंततः अधिक खरीदेगा और लाइट-कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (एलसीएच) पर निर्भर करेगा जो राज्य द्वारा संचालित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (हॉल) द्वारा निर्मित किया जा रहा है.

एलसीएच का इंतज़ार

संयोग से एलसीएच परिचालन इंडक्शन के लिए तैयार है, अभी तक एचएएल को कोई आदेश नहीं दिया गया है. यहां तक ​​कि 15 लिमिटेड सीरीज़ प्रोडक्शन (एलएसपी) के लिए तकनीकी-व्यावसायिक प्रस्ताव भी भारतीय वायुसेना और सेना द्वारा तय किया जाना है. एचएएल आर्मी के 93 सहित कुल 160 हेलीकॉप्टरों के आर्डर का इंतज़ार कर रहा है.

एक और उदाहरण राफेल है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 36 राफेल लड़ाकू जेट खरीदने की घोषणा की, तो इसका भारतीय वायुसेना और रक्षा समुदाय में सभी लोगों ने स्वागत किया.

पिछले एमएमआरसीए (मध्यम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) अनुबंध की बातचीत गतिरोध पर पहुंच गई थी और राफेल निर्णायक रूप से भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता में इजाफा करेगा. हालांकि, तथ्य यह है कि 36 राफेल जेट पर्याप्त नहीं हैं. भारत अब अतिरिक्त 36 जेट विमानों को खरीदने के लिए जा सकता है, जो एक नए अनुबंध के तहत देश में आंशिक रूप से असेम्बल किये जा सकते हैं.

शुक्र है कि भारत दो ठिकानों का निर्माण कर सकता है, जिसका अर्थ है कि बुनियादी ढांचे के विकास पर कोई अतिरिक्त लागत नहीं लगेगी.

वे दिन गए जब हवा में वास्तविक डॉग फाइट होती थी. आज, दूरी से दुश्मन को मारने पर बहुत कुछ निर्भर करता है, और इसलिए, राफेल का समावेश – जो कि एयर टू एयर मेटेओर और एयर टू सरफेस स्काल्प से लैस है – यह भारत की वायु क्षमता को बहुत बड़ा आकार देगा.


यह भी पढे़ंः प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए राज्यों को भारतीय सेना को बुलाना क्यों बंद कर देना चाहिए, यह दंगा पुलिस नहीं


क्षमता पर ध्यान दें

इसलिए, बजट की कमी के समय केवल संख्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, सशस्त्र बलों को भी क्षमता पर ध्यान देना चाहिए, यह कुछ ऐसा है जिसमें मोदी सरकार की दिलचस्पी बढ़ रही है.

पूर्व रक्षा सचिव जी मोहन कुमार ने द इकोनॉमिक टाइम्स में लिखा है सशस्त्र बलों की 15 साल की लंबी अवधि के एकीकृत परिप्रेक्ष्य योजनाएं (एलटीआईपीपी) आधुनिकीकरण के कार्यक्रम का मुख्य आधार है. यह किसी वार्षिक पूंजी आवंटन के बिना एक महत्वाकांक्षी कागजी अभ्यास है.

उन्होंने लिखा, बेहतर संयुक्तता के साथ एलटीआईपीपी को फिर से संगठित और प्राथमिकता दी जा सकती है. लेकिन धीमी गति से अधिग्रहण में कई साल लग रहे हैं और फंडिंग में अनिश्चितता तेजी से आधुनिकीकरण को प्रभावित कर सकती है.

रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बिना रुकावट का रवैया, न केवल फोर्स की मदद करेगी. बल्कि सरकार को भी ज्यादा फायदा मिलेगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments