नई दिल्ली: भारतीय-अमेरिकी मूल के मृदा वैज्ञानिक डॉ. रतन लाल को इस वर्ष के विश्व खाद्य पुरस्कार के लिए नामित किया गया है, जो प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए और खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक मिट्टी-केंद्रित दृष्टिकोण विकसित करने और मुख्यधारा में लाने के लिए दिया गया है.
विश्व खाद्य पुरस्कार को कृषि के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के बराबर माना जाता है और प्राप्तकर्ता को भोजन की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार के लिए 250,000 डॉलर प्रदान किए जाते हैं.
मृदा संरक्षण में डॉ. लाल के योगदान ने छोटे किसानों को उनकी मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करके वैश्विक खाद्य आपूर्ति में वृद्धि की है.
विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन की अध्यक्ष बारबरा स्टिन्सन ने गुरुवार को वाशिंगटन डीसी में एक ऑनलाइन समारोह में विजेता के रूप में लाल की घोषणा की. इस समारोह में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ और अमेरिकी कृषि सचिव सन्नी पेर्ड्यू की पूर्व-रिकॉर्ड की गई टिप्पणी भी शामिल थी.
पोम्पियो ने कहा, ‘मिट्टी विज्ञान में डॉ लाल के शोध से पता चलता है कि इस समस्या का समाधान हमारे पास है. वह पृथ्वी के अनुमानित 500 मिलियन छोटे किसानों की मदद कर रहे हैं, जो बेहतर प्रबंधन, कम मिट्टी के क्षरण और पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण के माध्यम से अपनी जमीन के प्रबंधक हैं. इन खेतों पर निर्भर रहने वाले अरबों लोगों को उनके काम से बहुत फायदा मिला है.’
मृदा संरक्षण में उनके काम की तारीफ करते हुए फाउंडेशन के अध्यक्ष ने कहा, ‘डॉ. लाल मृदा विज्ञान में अनुसंधान के लिए एक अद्भुत जुनून के साथ काम करने वाले एक इनोवेटर हैं, जो मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, कृषि उत्पादन को बढ़ाता है, भोजन के पोषण की गुणवत्ता में सुधार करता है, पर्यावरण को पुनर्स्थापित करता है और जलवायु परिवर्तन को कम करता है.’
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डॉ. लाल का मॉडल अनाज की पैदावार को बढ़ाता है और उपयोग की गई भूमि क्षेत्र को घटाता है
द न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, मृदा वैज्ञानिक के शोध ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मिट्टी में वायुमंडलीय कार्बन को कैसे रखा जा सकता है, इसकी बेहतर समझ के साथ-साथ खाद्य उत्पादन में सुधार किया है.
डॉ. लाल का मॉडल बताता है कि मृदा स्वास्थ्य को बहाल करने से वर्ष 2100 तक कई लाभ हो सकते हैं, जिसमें बढ़ती दुनिया की आबादी को खिलाने के लिए वैश्विक वार्षिक अनाज की पैदावार को दोगुना करना शामिल है, जबकि अनाज की खेती के तहत भूमि क्षेत्र में 30 प्रतिशत की कमी और उर्वरक का आधे से कम उपयोग करना भी शामिल है.
पुरस्कार प्राप्त करते हुए डॉ. लाल, जो वर्तमान में ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में मृदा विज्ञान के प्रोफेसर हैं और विश्वविद्यालय के कार्बन प्रबंधन और पृथक्करण केंद्र के संस्थापक निदेशक हैं, ने कहा, ‘हमें भूख को खत्म करना चाहिए. हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि खाया गया भोजन स्वस्थ है और यहीं पर स्वस्थ मिट्टी, पौधों, जानवरों, लोगों और पर्यावरण की अवधारणा एक और अविभाज्य अवधारणा है.’
डॉ. लाल का जन्म 1944 में पश्चिम पंजाब के करयाल में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. 1947 में, जब भारत को स्वतंत्रता मिली, लाल का परिवार हरियाणा के राजौंद में शरणार्थियों के रूप में रहने लगा.
राजौंद में, उनके पिता ने पारंपरिक खेती के तरीकों का इस्तेमाल करते हुए कुछ एकड़ में खेती की. लाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से पूरी की और एमएससी दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से की.
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1965 में, वह अपनी पीएचडी करने के लिए ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी चले गए. बाद में, वो ऑस्ट्रेलिया और नाइजीरिया गए जबकि उन्होंने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में मृदा रिस्टोरेशन प्रोजेक्ट का नेतृत्व किया.
विश्व खाद्य पुरस्कार की स्थापना 1986 में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नॉर्मन बोरलॉग द्वारा की गई थी. यह फाउंडेशन अमेरिका के डेस मोइनेस, आयोवा में स्थित है और इस पुरस्कार के पहले विजेता भारतीय कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन हैं जिन्हें 1987 में पुरस्कृत किया गया था. एमएस स्वामीनाथन को भारत की हरित क्रांति का जनक माना जाता है.
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