नई दिल्ली: फरवरी में चाहें भारतीय वायु सेना ने बालाकोट में पाकिस्तानी आतंकी शिविर पर जांबाज़ी भरा हवाई हमला किया हो लेकिन अगर एक मुख्य मापदंड में आंका जाए तो वो पाकिस्तानी वायु सेना के आगे टिक नहीं पाता.चाहे वो पायलट और एयरक्राफ्ट के बीच के अनुपात की बात हो या फिर स्क्वाड्रन की ताकत की बात, यह स्थिति गहन चिंता का विषय बनी हुई है.
उच्च स्तरीय सूत्रों का कहना है कि भारतीय वायु सेना के पास एक विमान के लिए 1.5 के अनुपात में पायलट हैं जबकि पाकिस्तान वायु सेना में पायलटों का अनुपात 2.5 प्रति विमान हैं.
इसका सीधे शब्दों में मतलब यह है कि पाकिस्तान वायु सेना युद्ध होने की स्थिति में दिन और रात में ऑपरेशन ज़्यादा आसानी से कर सकता है. इसका कारण ये है कि एक लड़ाकु विमान दिन में 6 सोर्टीज़ (उड़ाने) भी कर सकता है पर पायलट की क्षमता इतनी उड़ाने भरने की नहीं है.
भारतीय वायु सेना सिमूलेशन पर भी बहुत निर्भर करता है और असल बम गिराने की प्रैक्टिस नहीं होती. सबसे महत्वपूर्ण पश्चिमी एयर कमांड जोकि पाकिस्तान की पूरी वायु सीमा और चीन के कुछ हिस्से पर नज़र रखता है, के पास एक भी ऐसी फायरिंग रेंज नहीं है जहा बड़े बम गिराने की प्रेक्टिस की जा सके.
सैंक्शन की हुई शक्ति
भारतीय वायु सेना की फाइटर स्क्वाड्रन की शक्ति 42 है और अफसरों की संख्या 12,500. हर स्क्वाड्रन में 16-20 लड़ाकु विमान होते हैं. अधिकारियों की संख्या में कमी प्रति वर्ष केवल सेंक्शन से 2 प्रतिशत कम है. पर ये बात गौर करने लायक है कि ये सेंक्शन 1970 के दशक में तय किया गया था.
एक सूत्र ने बताया कि ‘जो सेंक्शन की हुई ताकत है, जिसमें लड़ाकू पायलट शामिल है की संख्या इन सालों में बढ़ी है पर बहुत थोड़ी. पायलट की संख्या तब तय की गई थी जब भारत में मिग विमान का इस्तेमाल होता था. अब हमारे पास लगभग 270 एसयू 30 एमकेआई विमान है, जिनमें दो सीटें होती हैं, यानि इनको ज्यादा पायलट्स की ज़रूरत होती है.
एक सूत्र का कहना था, ‘सेंक्शन किये गए स्क्वाड्रन की शक्ति 42 है पर उसके मुकाबले भारत में इस समय सिर्फ 30 ही हैं इसलिए पायलट से विमान का अनुपात 1.5 का है. अगर स्क्वाड्रन की शक्ति बढ़ती है तो ये अनुपात और कम हो जायेगा.’
एक सूत्र के अनुसार भारतीय वायु सेना पायलट का विमान से अनुपात को 2.2 करने की इच्छा रखती है.
गगन शक्ति
पिछले साल भारतीय वायुसेना ने पूरे देश में बड़े पैमाने पर ऑल-एयर एक्सरसाइज गगन शक्ति को अंजाम दिया था. जो महीनों की प्लानिंग के बाद देखने को मिली. इस अभ्यास के पीछे का उद्देश्य भारतीय वायुसेना की युद्ध रणनीति का परीक्षण करना था.
दो तरफ़ा युद्ध परिदृश्य की परिस्थितियों में विशेष रूप से दिन और रात के संचालन को ध्यान में रखते हुए अधिकतम संख्या उड़ानों को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय वायु सेना ने गगन शक्ति के लिए 48 वर्ष से कम आयु के सेवारत और चिकित्सकीय रूप से फिट सभी अधिकारियों को शामिल किया गया है.
आमतौर पर विंग कमांडर के पद के बाद पायलट वास्तव में अपने विमान नहीं उड़ाते हैं. क्योंकि वे अधिक डेस्क-उन्मुख नौकरियों से बंधे हुए होते हैं. ऐसे पायलटों को सूचीबद्ध करने के बावजूद विमान का अनुपात केवल 2 तक बढ़ पाया.
एक सूत्र ने कहा, ‘लेकिन अनुपात में 0.5 की वृद्धि भी उड़ान संचालन में भारी वृद्धि थी. क्योंकि हम रिकॉर्ड संख्या की उड़ाने भरने में सक्षम थे और विमान के सहन शक्ति के स्तर को अधिकतम करने में सक्षम थे.
यह अभ्यास 8 से 22 अप्रैल 2018 तक आयोजित किया गया था. इस अभ्यास में 11,000 से अधिक उड़ाने हुई थी. जिसमें लड़ाकू विमानों की लगभग 9,000 उड़ाने शामिल थी.
मौजूदा संसाधनों को बढ़ाने के लिए 1,400 से अधिक अधिकारियों और 14,000 पुरुषों को प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों से बाहर निकाला गया और अभ्यास के लिए तैनात किया गया था.
फायरिंग रेंज
वर्तमान में भारतीय एयर फ़ोर्स के लड़ाकू पायलट फायरिंग रेंज की अनुपलब्धता के कारण सिमुलेटर पर अपने बम-छोड़ने के कौशल का अभ्यास करते हैं.
सूत्रों का कहना है कि कहा, ‘कोई कितना भी सिमुलेशन कर सकता है. विमान से बम गिराने के वास्तविक अंतर के बीच बहुत बड़ा अंतर होता है. जैसे एक जॉयस्टिक से बड़े कंप्यूटर के सामने फायर किया जाता है.
लेकिन मुख्य मुद्दा ऊंचाई वाली रेंज के साथ है. भारतीय वायुसेना के पास उच्च सीमा नहीं है और केवल एक ही है जम्मू और कश्मीर में टोसा मैदान रेंज .जिसे राज्य सरकार द्वारा कब्जा कर लिया गया था.
एक सूत्र ने कहा भारतीय वायुसेना ने सरकार से दो उच्च श्रेणियों के लिए कहा है. एक लद्दाख क्षेत्र में और एक अरुणाचल प्रदेश में. सैन्य बल 2015 से इस पर फैसले का इंतजार कर रहा है.
भारतीय वायु सेना का पश्चिमी कमान वर्तमान में पंजाब में हलवारा के पास एसके रेंज में गोलीबारी का अभ्यास कर रही है. हालांकि रेंज के आकार के कारण भारी कैलिबर बमों को वहां नहीं गिराया जा सकता है.
भारतीय वायु सेना ने भारी कैलिबर के लिए एक सीमा बनाने के लिए राजस्थान के ठुकराना में एक जगह की पहचान की थी. लेकिन नए भूमि अधिग्रहण विधेयक की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि की वजह से यह भारतीय वायुसेना के बजट से बाहर हो गया.
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भारतीय एयर फ़ोर्स को भारी कैलिबर अभ्यास के लिए पोखरण रेंज पर निर्भर रहना पड़ता है. हालांकि, सूत्रों ने कहा कि यह जरुरत पड़ने पर किया जाता है क्योंकि यहां देश भर से विमान को लाना एक बुरे सपने जैसा है.
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