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Friday, 27 December, 2024
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गर्मियों तक ‘दुनिया का पेट भरने’ के इच्छुक भारत को सर्दियों में आयात करना पड़ सकता है गेहूं

कारोबारियों और विश्लेषकों का कहना है कि गेहूं की कीमतों में तेजी के मद्देनजर को सरकार को आयात शुल्क में कटौती के साथ स्टॉक लिमिट भी लागू करनी पड़ सकती है.

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नई दिल्ली: गेहूं के बढ़ते थोक और उपभोक्ता मूल्यों को देखते हुए भारत को कुछ महीनों में इस मुख्य खाद्य पदार्थ के आयात की अनुमति देने की जरूरत पड़ सकती है. अगर भारत आयातक बना, तो यह एक बड़ा उलटफेर होगा—क्योंकि गर्मियों तक ‘दुनिया का पेट भरने’ का इच्छुक देश सर्दियों में इसकी कमी से जूझ रहा होगा.

पिछले वर्ष (2021-22) की तुलना में जब भारत ने लगभग 7.2 मिलियन टन गेहूं निर्यात किया था, चालू वित्त वर्ष (2022-23) के अंत तक यह निर्यात 6 मिलियन टन होने का अनुमान है.

भारत ने अनाज की घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने और खाद्य मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए इस साल मई में निर्यात प्रतिबंध की घोषणा की थी.

लेकिन उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि गेहूं की कीमतें आसमान छू रही हैं. 6 अगस्त को पूरे देश में गेहूं के आटे की औसत खुदरा और थोक कीमतें साल-दर-साल के लिहाज से क्रमशः 14 प्रतिशत और 19 प्रतिशत अधिक थीं.

पिछले वर्ष की 5 अगस्त की तुलना में गेहूं के आटे की खुदरा कीमतें दिल्ली में 21 प्रतिशत अधिक, मुंबई में 29 प्रतिशत अधिक और कोलकाता में 46 प्रतिशत अधिक थीं.

इसके विपरीत, जुलाई (महीने-दर-महीने) में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं की कीमतों में 14.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, इसका कारण कुछ हद तक रूस और यूक्रेन के बीच काला सागर क्षेत्र में बंदरगाहों को अनब्लॉक करने का समझौता रहा है, जिसके तहत यूक्रेनी अनाज के निर्यात की अनुमति दी गई है.

व्यापारियों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय कीमतों में नरमी और घरेलू कीमतों में वृद्धि के कारण भारत गेहूं के आयात की अनुमति दे सकता है.

गेहूं का सरकारी स्टॉक खाद्य सब्सिडी योजनाओं और रणनीतिक भंडार के लिए आवश्यक स्टॉक से थोड़ा ही अधिक है. 22 जुलाई तक, भारत में 27.6 मिलियन टन के स्टॉक मानदंडों के मुकाबले सार्वजनिक स्टॉक में 27.8 मिलियन टन गेहूं था. मौजूदा शेयर 14 साल में सबसे निचले स्तर पर है.

सरकार का कहना है कि गेहूं के मामले में स्थिति नियंत्रण में है.


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दिप्रिंट ने ईमेल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये खाद्य सचिव सुधांशु पांडे से संपर्क साधा, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. उनकी तरफ से कोई जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने इस हफ्ते के शुरू में सीएनबीसी आवाज को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, ‘इस साल (गेहूं की) सार्वजनिक खरीद पिछले वर्षों की तुलना में कम रही है, लेकिन हमारे पास चावल और गेहूं का पर्याप्त भंडार है. अगर कीमतें एक सीमा को पार करती हैं तो हम हस्तक्षेप कर सकते हैं…हम स्थिति पर गहराई से नजरें बनाए हुए हैं और जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय हित में उपयुक्त कदम उठाएंगे.’

पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने दिप्रिंट को बताया कि प्रमुख महानगरों में गेहूं के आटे की खुदरा कीमतें 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ी हैं. उन्होंने कहा, ‘कोई भी सरकार मुख्य अनाज की कीमतों में इतनी तेज वृद्धि को लेकर सहज नहीं हो सकती, खासकर जब चावल उत्पादक प्रमुख राज्यों में बारिश की कमी नजर आ रही हो.’

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पूर्व प्रबंध निदेशक हुसैन ने कहा, ‘अगर कीमतें और बढ़ती हैं तो बहुत संभव है कि गेहूं पर आयात शुल्क खत्म कर दिया जाए.’

चालू खरीफ फसल मौसम में चावल उत्पादन घटने के जोखिम ने गेहूं को लेकर स्थिति को और खराब कर दिया है.

उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में कम बारिश और कम रोपण के कारण, भारत का चावल उत्पादन 2022-23 में लगभग 10 मिलियन टन तक गिर सकता है.

अनुमान को लेकर विवाद

सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के एक आटा मिल मालिक संदीप बंसल ने कहा कि प्रतिबंध की घोषणा से पहले थोक मिल-गुणवत्ता वाले गेहूं की कीमतें अप्रैल में 2,200 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर अगस्त के शुरू में लगभग 2,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गईं.

बंसल ने कहा कि ये कीमतें अक्टूबर-नवंबर तक 2,800 रुपये से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच सकती हैं, जिससे सरकार को आयात शुल्क कम करने और व्यापारियों पर स्टॉक लिमिट जैसे कदमों की घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.

फिलहाल भारत गेहूं के आयात पर 40 फीसदी शुल्क लगाता है.

भारत को गेहूं आयात करने की आवश्यकता होगी या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि उत्पादन को लेकर कौन-सा अनुमान सही है.

फरवरी में कृषि मंत्रालय ने अनुमान लगाया था कि 2022 में गेहूं की फसल रिकॉर्ड 111 मिलियन टन पर पहुंच जाएगी. अप्रैल में भीषण गर्मी के कारण प्रमुख उत्पादक राज्यों में उपज में गिरावट आई, तो मंत्रालय ने उत्पादन अनुमान घटाकर 106.4 मिलियन टन कर दिया, जो तीन वर्षों में सबसे कम है.

यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर की फॉरेन एग्रीकल्चर सर्विस ने मई में भारत में कुल फसल करीब 99 मिलियन टन होने का अनुमान लगाया था.

हालांकि, व्यापारियों और मिल मालिकों का कहना है कि वास्तविक फसल काफी कम यानी 90-95 मिलियन टन के दायरे में हो सकती है.

गुजरात स्थित वनराज बेसन और रोलर फ्लोर मिल के निदेशक धवल मेघपारा ने कहा, ‘गेहूं की मौजूदा कीमतें सरकार के उत्पादन अनुमान का समर्थन नहीं कर रहीं. वास्तविक आंकड़ा कहीं न कहीं 90 मिलियन टन के करीब हो सकता है. आपूर्ति की कमी से ही आपूर्ति-मांग असंतुलन की स्थिति बनी हैं और मौजूदा कीमतें काफी ऊपर पहुंच चुकी हैं.’

मेघपारा ने यह भी कहा कि गेहूं की वैश्विक कीमतों में हालिया गिरावट के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं की कीमतें घरेलू कीमतों से अधिक बनी हुई हैं.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन सरकार अगर कार्रवाई नहीं करती तो दिवाली के त्योहारी सीजन में घरेलू कीमतों में बढ़ोतरी होगी, जब मांग बढ़ेगी. सरकार के लिए जरूरी है कि जो करना है, उसकी योजना बनाए और अपनी रणनीति बाजार में जाहिर करे, अचानक किसी हड़बड़ी की स्थिति न बनाए.’

दिल्ली के एक व्यापारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि गेहूं का आयात ‘काफी भारी पड़ेगा.’

व्यापारी ने कहा, ‘पिछले साल भारत ने 275 अमेरिकी डॉलर प्रति टन की औसत कीमत पर गेहूं का निर्यात किया था और इस साल यह 400 अमेरिकी डॉलर प्रति टन से ऊपर कीमत पर आयात कर सकता है.’ साथ ही यह आशंका भी जताई कि घरेलू बाजार में गेहूं की थोक कीमतें ‘नवंबर तक प्रति क्विंटल 3,000 रुपये तक पहुंच जाएंगी.’

उन्होंने कहा, ‘बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या सरकार मुफ्त भोजन योजना (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना) को सितंबर से आगे बढ़ाती है और क्या वह भंडारण मानदंडों में ढील देती है और कीमतों को घटाने के लिए (अपने स्टॉक से) खुले बाजार में बिक्री करती है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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