नई दिल्ली: भारत और उज्बेकिस्तान ने आपसी सहयोग बढ़ाने के मकसद से शुक्रवार को कई क्षेत्रों में नौ महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए और द्विपक्षीय निवेश संधि को जल्द से जल्द पूरा करने की दिशा में प्रयासों को तेज करने पर सहमति जताई.
भारत-उज्बेकिस्तान डिजिटल शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शौकत मीरजियोयेव की मौजूदगी में इन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.
एक संयुक्त बयान में कहा गया कि विस्तृत वार्ता के दौरान दोनों नेताओं ने आतंकवाद के सभी स्वरूपों और अभिव्यक्तियों की भर्त्सना की और दोनों देशों ने आतंकवादियों के सुरक्षा आश्रय स्थलों, उनके नेटवर्क, आतंकी ढांचे और वित्तीय एवं अन्य संसाधनों तक पहुंच रोकने संबंधी प्रयासों को तहस नहस करने की प्रतिबद्धता दोहराई.
मध्य एशिया से जुड़ी संपर्क परियोजनाओं को गति देने के रास्तों पर चर्चा इस सम्मेलन का एक मुख्य विषय था. इस सिलिसले में चाबाहार बंदरगाह के माध्यम से संपर्क बढ़ाने के लिए भारत, ईरान और उज्बेकिस्तान के बीच त्रिपक्षीय वार्ता के उज्बेकिस्तान के प्रस्ताव का भारत ने स्वागत किया.
य़ह भी पढ़ें: सैकड़ों प्रेस कांफ्रेंस, किसान सम्मेलन—किसानों से जुड़ने की भाजपा की योजना पर अमल शुरू हो गया है
‘अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता’
बयान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान की स्थिति पर भी चर्चा की और जोर दिया कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा व स्थिरता के लिए अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता की बहाली अहम है.
इस अवसर पर उन्होंने यह भी कहा कि भारत और उज्बेकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ता से एक साथ खड़े हैं और उग्रवाद, कट्टरवाद तथा अलगाववाद के बारे में दोनों देशों की चिंताएं भी एक जैसी हैं.
उन्होंने कहा, ‘उग्रवाद, कट्टरवाद तथा अलगाववाद के बारे में हमारी एक जैसी चिंताएं हैं. हम दोनों ही आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ता से एक साथ खड़े हैं. क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर भी हमारा एक जैसा नजरिया है.’
प्रधानमंत्री ने इसके साथ ही कहा, ‘अफगानिस्तान में शांति की बहाली के लिए एक ऐसी प्रक्रिया की आवश्यकता है जो स्वयं अफगानिस्तान के नेतृत्व, स्वामित्व और नियंत्रण में हो.’
उन्होंने कहा, ‘पिछले दो दशकों की उपलब्धियों को सुरक्षित रखना भी आवश्यक है.’
अफगानिस्तान के बारे में प्रधानमंत्री मोदी का बयान ऐसे समय आया है जब अफगान शांति प्रक्रिया गति पकड़ रही है.
ज्ञात हो कि कुछ महीने पहले ही अफगानिस्तान के शीर्ष शांति वार्ताकार अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने एक प्रतिनिधमंडल के साथ राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी और उन्हें अफगान सरकार तथा तालिबान के बीच दोहा में चल रही शांति वार्ता के बारे में अवगत कराया था.
अब्दुल्ला की यह यात्रा दोहा में अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच शांति वार्ता के बीच हुई थी. अब्दुल्ला का भारत दौरा एक क्षेत्रीय आम सहमति बनाने और अफगान शांति प्रक्रिया के समर्थन के प्रयासों का हिस्सा था.
गौरतलब है कि तालिबान और अफगान सरकार 19 साल के युद्ध को समाप्त करने के लिए पहली बार सीधी बातचीत कर रहे हैं. अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में भारत एक महत्वपूर्ण पक्षकार है. भारत ने अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण गतिविधियों में करीब दो अरब डालर का निवेश किया है.
फरवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारत उभरती राजनीतिक स्थिति पर करीबी नजर बनाये हुए हैं. इस समझौते के तहत अमेरिका, अफगानिस्तान से अपने सैनिक हटा लेगा. वर्ष 2001 के बाद से अफगानिस्तान में अमेरिका के करीब 2400 सैनिक मारे गए हैं.
संयुक्त बयान में कहा गया कि भारत और उज्बेकिस्तान ने अफगानिस्तान के एक संयुक्त, स्वायत्त और लोकतांत्रिक इस्लामिक गणराज्य के प्रति समर्थन व्यक्त किया.
दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय व्यापार की मौजूदा स्थिति को वास्तविक क्षमता के अनुकूल ना होने की बात की और संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे मौजूदा संयुक्त व्यावहारिकता अध्ययन को गति दें जो व्यापार समझौते की वार्ता का मार्ग प्रशस्त करेगा.
जिन क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच समझौते हुए उनमें नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा, डिजीटल प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, सामुदायिक विकास परियोजनाएं, सूचनाओं के आदान प्रदान और सामानों की आवाजाही में सहयोग बढ़ाना शामिल है.
बयान में कहा गया कि भारत ने उज्बेकिस्तान में सड़क निर्माण, जलमल शोधन और सूचना-प्रौद्योगिकी सहित चार परियोजनाओं में 44.8 करोड़ अमेरिकी डॉलर की रिण सुविधा को मंजूरी दी.
बहरहाल, मोदी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत और उज्बेकिस्तान के बीच आर्थिक साझेदारी भी मजबूत हुई है और भारत दोनों देशों के बीच विकास की भागीदारी को भी और घनिष्ट बनाना चाहता है.
उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि भारतीय ‘‘लाइन ऑफ क्रेडिट’’ के अंतर्गत कई परियोजनाओं पर विचार किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘उज्बेकिस्तान की विकास प्राथमिकताओं के अनुसार हम भारत की विशेषज्ञता और अनुभव साझा करने के लिए तैयार हैं. अवसंरचना, सूचना और प्रौद्योगिकी, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण जैसे क्षेत्रों में भारत में काफी काबिलियत है, जो उज्बेकिस्तान के काम आ सकती है.’
भारत और उज्बेकिस्तान के बीच कृषि संबंधी संयुक्त कार्यकारी समूह की स्थापना को प्रधानमंत्री ने एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक कदम बताया और कहा कि इससे दोनों देश अपने कृषि व्यापार बढ़ाने के अवसर खोज सकते हैं जिससे दोनों देशों के किसानों को मदद मिलेगी.
मोदी ने कहा कि मीरजियोयेव के नेतृत्व में उज्बेकिस्तान में महत्वपूर्ण बदलाव आ रहे हैं और भारत भी सुधार के मार्ग पर अग्रसर है. उन्होंने उम्मीद जताई कि कोविड-19 के बाद की दुनिया में दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावनाएं और बढ़ेंगी.
उन्होंने दोनों देशों के बीच सुरक्षा साझेदारी को द्विपक्षीय संबंधों का एक मजबूत स्तम्भ बताया और पिछले वर्ष हुए सशस्त्र बलों के पहले संयुक्त सैन्य अभ्यास का जिक्र किया.
उन्होंने कहा, ‘अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्रों में भी हमारे सयुंक्त प्रयास बढ़ रहे हैं.’
प्रधानमंत्री ने कोविड-19 महामारी के इस समय में दोनों देशों द्वारा एक-दूसरे को किए गए भरपूर सहयोग पर संतोष जताया.
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और उज्बेकिस्तान दो समृद्ध सभ्यताएं हैं और प्राचीन समय से ही दोनों के बीच निरंतर आपसी संपर्क रहा है.
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के प्रदेशों के बीच भी सहयोग बढ़ रहा है. उन्होंने गुजरात और अन्दिजों की सफल भागीदारी के मॉडल को इसका उदाहरण बताया. उन्होंने कहा कि इसी तर्ज पर अब हरियाणा और फरगाना के बीच सहयोग की रूपरेखा बन रही है.
संयुक्त बयान में कहा गया कि संयुक्त राष्ट्र संघ के मौजूदा ढांचे में व्यापक सुधार पर बल दिया. उज्बेकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की भारत की दावेदारी का समर्थन भी किया.
यह भी पढ़ें: प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा की जानकारी साझा नहीं की जाएगी, हाई कोर्ट ने लगाई रोक