नई दिल्ली: भारत में शीर्ष 100 अरबपतियों ने 2020 में मार्च से दिसंबर तक कोरोनावायरस लॉकडाउन के दौरान 12.98 लाख करोड़ रुपये कमाए, जबकि पहले दो महीनों में अनौपचारिक क्षेत्र में लगभग 92 मिलियन (920 लाख) लोगों ने अपनी नौकरी खो दी. यह अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ नेटवर्क ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट में कहा गया है.
‘इनइक्वलिटी वायरस’ शीर्षक से इस रिपोर्ट में दुनिया भर में असमानता पर कोविड-19 के प्रभाव का आकलन किया गया है जिसे यह वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ‘दावोस डायलॉग्स’ के शुरुआती दिन यानी आज जारी किया गया.
रिपोर्ट में 79 देशों के 295 अर्थशास्त्रियों का एक सर्वेक्षण भी शामिल है, जिसमें कहा गया है कि 87 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने महामारी के परिणामस्वरूप अपने देश में आय असमानता के बढ़ने की आशंका जताई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 100 अरबपतियों की संपत्ति में काफी वृद्धि हुई है, इतनी कि अगर इसे समान रूप से विभाजित किया जाए, तो इस राशि से भारत के 138 मिलियन गरीबों को लगभग 94,000 रुपये दिए जा सकते हैं.
महामारी के दौरान शीर्ष 11 भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में इतनी बढ़ोतरी हुई की उतने पैसों से 10 साल के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना या उसी अवधि के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय को चलाया जा सकता है.
वहीं, अप्रैल 2020 में हर घंटे 170,000 लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा.
रिपोर्ट में शामिल अरबपतियों में मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, शिव नादर, साइरस पूनावाला, उदय कोटक, अजीम प्रेमजी, सुनील मित्तल, राधाकृष्णन दमानी, कुमार मंगलम बिड़ला और लक्ष्मी मित्तल शामिल हैं, जिनके हितों में कोयला, तेल, दूरसंचार, फार्मास्यूटिकल्स, शिक्षा जैसे क्षेत्र शामिल हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने महामारी के दौरान एक घंटे में जितना पैसा कमाया है, उतना एक अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूर को कमाने में 10,000 साल लग जायेंगे. उनके प्रति सेकंड की कमाई को अर्जित करने में एक मजदूर को 3 साल लगेंगे.’
रिपोर्ट में कहा गया कि अंबानी ने महामारी के दौरान जितना पैसा कमाया, वह कम से कम पांच महीनों के लिए 400 मिलियन अनौपचारिक श्रमिकों को गरीबी रेखा से ऊपर ला सकता है.
ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर ने कहा, ‘रिपोर्ट बताती है कि कैसे धांधले भरी आर्थिक व्यवस्था कुलीन वर्ग को सबसे खराब मंदी और स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे बड़े आर्थिक संकट के बीच भी धन जुटाने में सक्षम कर रही है, जबकि लाखों लोग आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इससे पता चलता है कि महामारी लंबे समय से चली आ रही आर्थिक, जातिगत, जातीय और लैंगिक विभाजन को गहरा कर रही है.’
यह भी पढ़ें: कोविड के बाद सभी को स्वास्थ्य बजट में अच्छी-खासी वृद्धि की उम्मीद पर सरकार सतर्कता बरत रही
अमीर हुए और अमीर
रिपोर्ट के अनुसार मार्च और दिसंबर 2020 के बीच भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह $ 422.9 बिलियन (30 लाख करोड़ रुपये से अधिक) हो गई. गौरतलब है कि 2009 के बाद से संपत्ति में 90 प्रतिशत वृद्धि हुई है.
यह देश की छठी सबसे ऊंची विकास दर थी, जिसमें अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस और फ्रांस शीर्ष पांच देश हैं.
महामारी के दौरान दुनिया भर में अरबपतियों की संपत्ति में वृद्धि हुई. 18 मार्च और 31 दिसंबर 2020 के बीच, दुनिया के शीर्ष 1,000 अरबपतियों की संपत्ति 3.9 ट्रिलियन डॉलर (284 लाख करोड़ रुपये) से बढ़कर 11.95 ट्रिलियन डॉलर (872 लाख करोड़ रुपये) हो गई- जो जी-20 सरकारों के कोरोना महामारी से निपटने में खर्च की गई राशि के बराबर है.
सिर्फ नौ महीनों के भीतर ही दुनिया के शीर्ष 1,000 अरबपतियों ने कोविड-19 प्रेरित आर्थिक मंदी के दौरान अपने द्वारा खोई गई आर्थिक नुकसान की भरपाई कर ली. ‘इसके विपरीत, 2008 में वित्तीय संकट के बाद, अरबपतियों को अपने नुकसान की भरपाई करने में पांच साल लग गए थे.’
मार्च से दिसंबर 2020 तक दुनिया के 10 सबसे अमीर अरबपतियों ने अपनी संपत्ति में सामूहिक रूप से 540 अरब डॉलर (39 लाख करोड़ रुपये) की वृद्धि देखी है.
भारत में लॉकडाउन (मार्च और अप्रैल 2020) के पहले दो महीनों के दौरान 122 मिलियन लोगों ने अपनी नौकरी खो दी, जिनमें से 75 प्रतिशत या 92 मिलियन नौकरियां अनौपचारिक क्षेत्र में गयीं. वहीं 300 से अधिक अनौपचारिक श्रमिकों की सामूहिक पलायन के दौरान मृत्यु हो गई.
रिपोर्ट इस तथ्य की ओर भी इशारा करती है कि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली कई छात्रों के लिए सुलभ नहीं है- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए. केवल 4 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास कंप्यूटर है और 15 प्रतिशत से कम के पास इंटरनेट कनेक्शन है.
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे गरीब 20 प्रतिशत में से केवल 6 प्रतिशत के पास ही बेहतर स्वच्छता के गैर-साझा स्रोतों तक पहुंच है, जबकि शीर्ष 20 प्रतिशत में 93.4 प्रतिशत के पास ये संसाधन उपलब्ध हैं.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: मुनव्वर फारुकी कोई खूंखार अपराधी नहीं, उसे जमानत देने से मना करने का उद्देश्य मुस्लिमों को सबक सिखाना है