नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख में करीब एक महीने से सीमा पर जारी गतिरोध के समाधान के लिए भारत और चीनी सेना के बीच शनिवार को लेफ्टिनेंट जनरल स्तरीय बैठक में भारत के 14 वीं कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने सीमा पर अप्रैल 2020 से पहले वाली स्थिति के बहाली की बात की है.
बैठक में चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व दक्षिण शिनजियांग सैन्य जिले के कमांडर मेजर जनरल लिन लियू ने किया.
बैठक जो सुबह 11.30 बजे शुरू हुई और शाम तक चली, लेकिन इसमें क्या निर्णय हुए इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है. क्योंकि टीम को चीन की तरफ के चुशुल-मोल्दो में बैठक स्थल से वापस लेह आना था.
हालांकि, सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि किसी को भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि सिर्फ एक बैठक से स्थिति शांत हो जाएगी.
लंबी चली बैठक
सूत्रों के अनुसार, लगभग एक दर्जन अधिकारियों का भारतीय प्रतिनिधिमंडल सुबह 10 बजे बैठक स्थल पर पहुंचा और चीनी पक्ष ने मेजर जनरल लिन लियू की अगुवाई में उनका स्वागत किया. सूत्रों ने आगे बताया कि कुछ चर्चाओं और अभिवादन के बाद, प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए और भी चर्चा हुई.
सूत्र के मुताबिक, ‘औपचारिक बैठक लगभग 11.30 बजे शुरू हुई और प्रतिनिधिमंडल शाम को बैठक स्थल से बाहर चले गये. इस दौरान दोपहर के भोजन की भी व्यवस्था थी.
सरकारी सूत्रों ने कहा कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया, जबकि चीनी पक्ष का नेतृत्व तिब्बत सैन्य जिला कमांडर कर रहे थे. यह बातचीत पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की तरफ माल्डो सीमा कर्मी बैठक स्थल पर हुई.
यह पता नहीं चल सका है कि वास्तव में बैठक कब समाप्त हुई. सूत्रों ने कहा कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल को चुशुल से वापस एक स्थान पर पहुंचना था और फिर वहां से लेह की हवाई यात्रा करनी थी.
एक दूसरे सूत्र ने कहा कि बैठक के दौरान भारत की मांगों में अप्रैल तक यथास्थिति में वापसी शामिल थी. ‘कुछ ऐसे मुद्दे थे जो भारत बैठक के दौरान उठाना चाहता था. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अप्रैल तक यथास्थिति चीन द्वारा बनाए रखने की आवश्यकता है, जिसका अर्थ है कि उन्हें सैन्य बिल्ड-अप के क्षेत्रों के साथ-साथ पारगमन बिंदुओं से भी पीछे खींचने की जरूरत है, ‘स्रोत ने कहा.
हालांकि तीसरे स्रोत ने कहा कि वास्तविक जानकारी तभी मिल सकेगी जब भारतीय प्रतिनिधिमंडल वापस लेह पहुंचेगा. सूत्र ने बताया कि लेह पहुंचने के बाद लेफ्टिनेंट जेनरल सिंह नॉर्दन सेना के कमांडर लें. जन. वाई के जोशी और आर्मी चीफ जेन. एमएन नरवणे को मीटिंग की जानकारी देंगे.
सूत्रों ने बताया कि हालांकि आज चीन से बैठक करने गया प्रतिनिधिमंडल 1993, 1996, 2005, 2012 और 2013 में दोनों देशों के बीच एलएसी पर शांति बनाए रखने और विश्वास-निर्माण के उपायों के लिए किए गए समझौतों की प्रतियों के साथ पहुंचा था.
सूत्रों ने कहा कि दोनों सेनाओं में स्थानीय कमांडरों के स्तर पर एक दर्जन से अधिक बातचीत और मेजर जनरल रैंक के अधिकारियों के बीच तीन दौर की बातचीत के बाद कोई ठोस नतीजा नहीं निकलने के बाद आज शनिवार को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर पर बातचीत हुई है. बता दें कि मई में चीन ने करीब अपने 5000 सैनिक एलएसी पर भेज दिए थे.
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12 दौर की मीटिंग में नहीं निकला ठोस नतीजा
बातचीत के बारे में कोई खास विवरण दिये बिना, भारतीय सेना के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘भारत और चीन के अधिकारी भारत-चीन सीमावर्ती इलाकों में बने वर्तमान हालात के मद्देनजर स्थापित सैन्य एवं राजनयिक माध्यमों के जरिए एक-दूसरे के लगातार संपर्क में बने हुए हैं.’
सूत्रों ने कहा कि दोनों सेनाओं में स्थानीय कमांडरों के स्तर पर 12 दौर की बातचीत तथा मेजर जनरल रैंक के अधिकारियों के बीच तीन दौर की बातचीत के बाद कोई ठोस नतीजा नहीं निकलने पर शनिवार को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर पर बातचीत हुई.
उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता से एक दिन पहले दोनों देशों के बीच राजनयिक स्तर पर बातचीत हुई और इस दौरान दोनों पक्षों में अपने “मतभेदों” का हल शांतिपूर्ण बातचीत के जरिये एक-दूसरे की संवेदनाओं और चिंताओं का ध्यान रखते हुए निकालने पर सहमति बनी थी.
समझा जाता है कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी, पैंगोंग सो और गोगरा में यथा स्थिति की पुन:बहाली के लिये दबाव बनाया.
इससे पहले सूत्रों ने कहा था कि भारतीय पक्ष क्षेत्र में चीनी सैनिकों द्वारा बड़े सैन्य निर्माणों पर अपनी आपत्ति जताएगा.
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क्या है गतिरोध की वजह
मौजूदा गतिरोध के शुरू होने की वजह पैंगोंग सो झील के आसपास फिंगर क्षेत्र में भारत द्वारा एक महत्वपूर्ण सड़क निर्माण का चीन द्वारा तीखा विरोध है. इसके अलावा गलवान घाटी में दरबुक-शायोक-दौलत बेग ओल्डी मार्ग को जोड़ने वाली एक और सड़क के निर्माण पर चीन के विरोध को लेकर भी गतिरोध है.
पैंगोंग सो में फिंगर क्षेत्र में सड़क को भारतीय जवानों के गश्त करने के लिहाज से अहम माना जाता है. भारत ने पहले ही तय कर लिया है कि चीनी विरोध की वजह से वह पूर्वी लद्दाख में अपनी किसी सीमावर्ती आधारभूत परियोजना को नहीं रोकेगा.
(समाचार एजेंसी भाषा और दिप्रिंट के स्नेहेश एलेक्स फिलिप के इनपुट्स के साथ)