नयी दिल्ली, 21 मई (भाषा) भारत में 2024 में 18,200 हेक्टेयर प्राथमिक वन नष्ट हो गए, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 17,700 हेक्टेयर था। यह बात ‘ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच’ (जीएफडब्ल्यू) के आंकड़ों में कही गई।
ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच में 100 से अधिक संगठन वैश्विक सहयोग के तहत मिलकर काम करते हैं।
जीएफडब्लू ने कहा कि देश में 2002 से 2024 के बीच 3,48,000 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन नष्ट हो गए जो देश के कुल आर्द्र प्राथमिक वन का लगभग 5.4 प्रतिशत है। यह इसी अवधि के दौरान भारत के कुल वनों वाले क्षेत्र के नुकसान का 15 प्रतिशत है।
वर्ष 2019 और 2024 के बीच, भारत में 1,03,000 हेक्टेयर (1.6 प्रतिशत) आर्द्र प्राथमिक वन नष्ट हो गए, जो उन वर्षों में कुल वृक्ष आवरण हानि का 14 प्रतिशत है।
आंकड़ों से पता चलता है कि देश ने 2022 में 16,900 हेक्टेयर, 2021 में 18,300 हेक्टेयर, 2020 में 17,000 हेक्टेयर और 2019 में 14,500 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन गंवाए।
प्राथमिक वन वे पुराने, घने और प्राकृतिक वर्षावन होते हैं जो अब तक पूरी तरह नष्ट नहीं हुए हैं और जिन्हें हाल के वर्षों में कृत्रिम रूप से फिर से नहीं उगाया गया है।
वर्ष 2001 से अब तक भारत में 23.10 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो चुका है, जो इस अवधि के दौरान वृक्षावरण में 7.1 प्रतिशत की कमी तथा 1.29 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य उत्सर्जन के बराबर है।
हालांकि, 2000 से 2020 तक भारत में 17.8 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र बढ़ा भी, जो कुल वैश्विक वृद्धि का लगभग 1.4 प्रतिशत था।
वर्ष 2001 से 2024 के बीच असम में सबसे ज़्यादा 3,40,000 हेक्टेयर क्षेत्र में पेड़ नष्ट हुए, जो राष्ट्रीय औसत 67,900 हेक्टेयर से बहुत अधिक है। मिजोरम में 3,34,000 हेक्टेयर, नगालैंड में 2,69,000 हेक्टेयर, मणिपुर में 2,55,000 हेक्टेयर और मेघालय में 2,43,000 हेक्टेयर क्षेत्र में पेड़ खत्म हुए।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, 2015 से 2020 के बीच भारत में वनों की कटाई की दर दुनिया में दूसरी सबसे अधिक थी। प्रति वर्ष लगभग 6,68,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो रहा है।
भाषा
शुभम नेत्रपाल
नेत्रपाल
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