नयी दिल्ली, 17 मार्च (भाषा) भारत ने बृहस्पतिवार को अपनी आर्कटिक नीति जारी की जिसका उद्देश्य संसाधन संपन्न क्षेत्र के साथ देश की साझेदारी को गहरा करना है।
‘भारत और आर्कटिक: सतत विकास के लिए एक साझेदारी का निर्माण’ शीर्षक वाली नीति में छह स्तंभ – वैज्ञानिक अनुसंधान और सहयोग को मजबूत करना, जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक और मानव विकास, परिवहन और संपर्क, शासन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, और आर्कटिक क्षेत्र में राष्ट्रीय क्षमता निर्माण- शामिल हैं।
पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने नीति का अनावरण किया।
भारत आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा रखने वाले 13 देशों में से एक है, जो एक उच्च स्तरीय अंतर सरकारी मंच है जो आर्कटिक सरकारों और क्षेत्र के स्वदेशी लोगों के सामने आने वाले मुद्दों को संबोधित करता है।
यह क्षेत्र अत्यधिक भू-राजनीतिक महत्व रखता है क्योंकि आर्कटिक के 2050 तक बर्फ मुक्त होने का अनुमान है और विश्व शक्तियां प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध क्षेत्र का दोहन करने के लिए आगे बढ़ रही हैं।
धातुओं और खनिजों के अलावा, इस क्षेत्र को विशाल तेल भंडार के लिए भी जाना जाता है और भविष्य में इसके एक प्रमुख समुद्री परिवहन लेन के रूप में उभरने की उम्मीद है।
भारत का कहना है कि इस क्षेत्र में सभी मानवीय गतिविधियां टिकाऊ, जिम्मेदार, पारदर्शी और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सम्मान पर आधारित होनी चाहिए।
आर्कटिक नीति का उद्देश्य आर्कटिक क्षेत्र के साथ विज्ञान और अन्वेषण, जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, समुद्री और आर्थिक सहयोग में राष्ट्रीय क्षमताओं और दक्षताओं को मजबूत करना है।
यह आर्कटिक में भारत के हितों की खोज में अंतर-मंत्रालयी समन्वय के माध्यम से सरकार और शैक्षणिक, अनुसंधान और व्यावसायिक संस्थानों के भीतर संस्थागत और मानव संसाधन क्षमताओं को मजबूत करने का प्रयास करती है।
यह भारत की जलवायु, आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा पर आर्कटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की समझ को बढ़ाने का भी प्रयास करती है।
भाषा
प्रशांत उमा
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