वाशिंगटन: दुनियाभर में धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी करने का जिम्मा संभाल रहे एक अमेरिकी आयोग ने विदेश विभाग से भारत समेत 14 देशों को ‘खास चिंता वाले देशों’ (सीपीसी) के रूप में नामित करने को कहा है और आरोप लगाया कि इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले बढते जा रहे हैं. जिसे भारतीय विदेश मंत्रालय ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है.
भारत ने अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता पर एक आयोग के आरोपों और आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों की दशा पर उसकी टिप्पणियां पूर्वाग्रह से ग्रसित और पक्षपातपूर्ण हैं.
अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अपनी सालाना रिपोर्ट के 2020 के संस्करण में आरोप लगाया है कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में चीजें नीचे की ओर जा रही हैं और भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ रहे हैं.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ‘हम यूएससीआईआरएफ की सालाना रिपोर्ट में भारत को लेकर की गयी टिप्पणियों को खारिज करते हैं. भारत के खिलाफ उसके ये पूर्वाग्रह वाले और पक्षपातपूर्ण बयान नये नहीं हैं. लेकिन इस मौके पर उसकी गलत बयानी नये स्तर पर पहुंच गयी है.’
यूएससीआईआरएफ ने भारत समेत 14 देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ने का आरोप लगाया था और अमेरिका के विदेश विभाग से इन देशों को ‘विशेष चिंता वाले देश’ घोषित करने को कहा था.
अमेरिका अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग(यूएससीआईआरएफ) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि इसमें नौ ऐसे देश हैं जिन्हें दिसंबर, 2019 में सीपीसी नामित किया गया था वे म्यांमार, चीन, एरिट्रिया, ईरान, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, तजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान हैं. उनके अलावा उसमें पांच अन्य देश– भारत, नाईजीरिया, रूस, सीरिया और वियतनाम हैं.
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट के 2020 के संसकरण में यूएससीआईआरएफ ने आरोप लगाया कि 2019 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की दशा में बड़ी गिरावट आयी एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो गये.
हालांकि आयोग के नौ सदस्यों में से दो ने भारत को सीपीसी में रखने की आयोग की सिफारिश पर अपनी असहति रखी है. तीसरे सदस्य ने भी भारत पर अपनी निजी राय रखी है.
आयोग के सदस्य गैरी एल बाउर ने अपनी असहमित में लिखा कि वह अपने साथियों से अपनी असहमति रखते हैं. तेंजिन दोरजी ने भी लिखा है कि भारत चीन और उत्तर कोरिया की तरह निरंकुश शासन की श्रेणी में नहीं आता है.
भारत पहले ही कह चुका है कि अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी पर यह निकाय अपने पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है और इस विषय पर उसका कोई अधिकार ही नहीं बनता है.