नई दिल्ली: सिंधु जल संधि- 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक द्वारा हस्तक्षेप के बाद किया गया एक जल बंटवारा समझौता – को संशोधित करने के लिए अपने रुख को दोहराते हुए भारत ने पाकिस्तान को मौखिक रूप से एक नोट भेजा है जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए दोनों देशों के जल संसाधन सचिवों की बैठक की मांग की गई है. दिप्रिंट को इसकी जानकारी मिली है.
सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भारत ने बैठक के लिए 15 जुलाई की तारीख भी प्रस्तावित की है. हालांकि, अभी पाकिस्तान को पत्र का जवाब देना बाकी है.
विदेश मंत्रालय (एमईए) के दो अधिकारियों ने दिप्रिंट के साथ पुष्टि की कि जून के पहले सप्ताह में दोनों देशों के जल सचिवों के स्तर पर बैठक करने के लिए पाकिस्तान को चिट्ठी भेजी थी.
दिप्रिंट ने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची से यह पूछने के लिए संपर्क किया कि क्या पाकिस्तान ने नई दिल्ली के हालिया पत्र का कोई जवाब दिया है, लेकिन उन्होंने इसपर कोई टिप्पणी नहीं की.
दिप्रिंट ने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से भी ईमेल पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनकी ओर से भी कोई उत्तर नहीं मिला. जवाब मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
भारत ने पहली बार इस साल 25 जनवरी को सिंधु जल संधि के अनुच्छेद XII (3) के अनुसार संधि पर फिर से बातचीत करने के लिए पाकिस्तान को एक नोटिस दिया था, जिसमें कहा गया था कि “इस संधि के प्रावधानों को समय-समय पर संशोधित किया जा सकता है.” दोनों सरकारों के बीच उस उद्देश्य के लिए विधिवत एक आंतरिक संधि भी हुई थी.
सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तान ने बाद में उस नोटिस का जवाब दिया था जिसमें भारत और पाकिस्तान के सिंधु आयुक्तों वाले स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) की बैठक की मांग की गई थी.
लेकिन भारत दोनों आयुक्तों के बीच बैठक के विचार से सहमत नहीं था.
ऊपर उद्धृत सरकारी सूत्रों में से एक ने दिप्रिंट को बताया कि सिंधु जल संधि में संशोधन पर स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) के स्तर पर चर्चा नहीं की जा सकती है.
उन्होंने कहा, “चूंकि हम संधि को नए सिरे से देखना चाहते हैं, यह सरकार से सरकार की कवायद है और बैठक भारत और पाकिस्तान के जल संसाधन सचिवों के स्तर पर होनी है. हमने पाकिस्तान को इस बारे में बता दिया है.”
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विवादों का अंबार
सिंधु जल संधि में दोनों देशों ने यह फैसला किया था कि सिंधु नदी बेसिन पर पूर्वी और पश्चिमी नदियों के पानी को दोनों देशों के बीच कैसे विभाजित किया जाना है. इस संधि के तहत तीन पूर्वी नदियों- रावी, ब्यास और सतलुज का पानी भारत को आवंटित किया जाता है जबकि तीन पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान को आवंटित किया जाता है.
भारत और पाकिस्तान सिंधु नदी बेसिन पर दो पनबिजली परियोजनाओं सहित कई विवादों में शामिल रहे हैं, जिसमें तलछट को नीचे की ओर प्रवाहित करने के लिए ड्रॉडाउन फ्लशिंग और जलाशयों की भंडारण क्षमता जैसे विषय शामिल है. तीन विवाद किशनगंगा से और चार रातले परियोजना से भी जुड़े हैं.
भारत ने मुद्दों को हल करने के लिए हेग स्थित मध्यस्थता अदालत (सीओए) का दरवाजा खटखटाने के पाकिस्तान के एकतरफा फैसले पर भी आपत्ति जताई थी.
जबकि पाकिस्तान सीओए में इस विवाद का समाधान चाहता था, भारत ने विवाद को हल करने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने के लिए विश्व बैंक का दरवाजा खटखटाया था. विश्व बैंक ने अक्टूबर 2022 में पाकिस्तान के अनुरोध पर स्थापित सीओए के लिए भारत के अनुरोध पर एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त किया था.
भारत ने दो समानांतर मध्यस्थता प्रक्रियाओं को एक साथ शुरू करने के विश्व बैंक के कदम पर आपत्ति जताई और वर्तमान में पाकिस्तान द्वारा उठाई गई आपत्तियों को देखते हुए सीओए की कार्यवाही में भाग लेने से इनकार कर दिया.
संधि के प्रावधानों के तहत, सीओए में सात मध्यस्थ होते हैं, जहां दो भारत और पाकिस्तान द्वारा नियुक्त किए जाते हैं. भारत ने अभी तक अपने दो मध्यस्थ नियुक्त नहीं किए हैं.
भारत-पाकिस्तान संबंधों में तीन युद्धों और कई उतार-चढ़ाव के बावजूद यह संधि अब तक बची हुई है. हालांकि, 2016 में कश्मीर के उरी में एक सैन्य शिविर पर हुए हमले के बाद इसको लेकर भी तनाव चरम पर आ गया था, जब संदिग्ध पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा 19 भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी गई थी. इस हमले के कारण भारत ने IWT में निर्दिष्ट पानी के अपने हिस्से का पूर्ण उपयोग करने के अपने अधिकार का प्रयोग करने के अपने निर्णय की जोरदार घोषणा की थी. (पिया कृष्णनकुट्टी से इनपुट्स के साथ)
(संपादन: ऋषभ राज)
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