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शनिवार, 7 जून, 2025
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भारत 2030 के प्रमुख जलवायु लक्ष्य को पार करने की दिशा में अग्रसर: विश्लेषण

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नयी दिल्ली, 22 मई (भाषा) भारत 2030 तक अपने जलवायु लक्ष्य को पार करने की दिशा में अग्रसर है, जिसके तहत उसे 2005 के स्तर की तुलना में अपनी जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करना है। यह जानकारी एक नये विश्लेषण में सामने आयी है।

दिल्ली स्थित विचार मंच (थिंक-टैंक) ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर’ (सीईईडब्ल्यू) और एक गैर-सरकारी संगठन ‘एलायंस फॉर एन एनर्जी एफिशिएंट इकॉनमी (एईईई) द्वारा किए गए उत्सर्जन मॉडलिंग विश्लेषण के अनुसार, 2030 तक भारत के ऊर्जा क्षेत्र की उत्सर्जन तीव्रता 2005 के स्तर की तुलना में 48 से 57 प्रतिशत तक कम हो सकती है।

हालांकि, 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य (अर्थात् उत्सर्जन और उसकी भरपाई के बीच संतुलन) प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता होगी। इसमें कार्बन मूल्य निर्धारण को केंद्र में रखते हुए बिजली मूल्य निर्धारण में सुधार, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के लिए वित्तीय सहायता, ऊर्जा दक्षता में वृद्धि और व्यवहार परिवर्तन से जुड़ी पहलें शामिल होंगी।

इस सप्ताह अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘एनर्जी एंड क्लाइमेट चेंज’ में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चलता है कि भारत के 2035 के एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) लक्ष्य में 2005 की तुलना में जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 55 से 66 प्रतिशत तक कम करना (अधिकांश परिदृश्यों में 56 प्रतिशत की कमी का संकेत है) और स्थापित बिजली क्षमता में गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी को 60 से 68 प्रतिशत तक बढ़ाना शामिल हो सकता है।

अगस्त 2022 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को प्रस्तुत किए गए अपने अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) या राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं के अनुसार, भारत का लक्ष्य है कि वह 2030 तक अपनी जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के स्तर की तुलना में 45 प्रतिशत तक कम करे और 2030 तक कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करे।

देशों को 2031-2035 अवधि के लिए अपनी अगली राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं (एनडीसी) इस वर्ष प्रस्तुत करनी हैं। भारत सहित अधिकांश देशों द्वारा 10 फरवरी की समयसीमा चूक जाने के कारण, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन प्रमुख साइमन स्टील ने सभी देशों से आग्रह किया है कि वे अपनी योजनाएं अधिकतम सितंबर तक प्रस्तुत कर दें।

भारत ने अभी तक अपने नये एनडीसी को अंतिम रूप नहीं दिया है।

सीईईडब्ल्यू के सीनियर फेलो वैभव चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘पेरिस समझौते के बाद से भारत ने कई मोर्चों पर जलवायु नेतृत्व का प्रदर्शन किया है। इसने यह भी साबित किया है कि विकास और उत्सर्जन में कमी साथ-साथ हो सकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह अध्ययन इसकी पुनः पुष्टि करता है कि यदि बिजली मूल्य निर्धारण, औद्योगिक योजना, परमाणु विद्युत, जीवनशैली में बदलाव और शहरी गतिशीलता जैसे क्षेत्रों में निर्णायक सुधार किए जाएं, तो भारत अपने उत्सर्जन ग्राफ को नेट जीरो की दिशा में महत्वपूर्ण रूप से मोड़ सकता है।’’

उन्होंने कहा कि भारत का 2035 का एनडीसी केवल बढ़ी हुई महत्वाकांक्षा को नहीं, बल्कि आर्थिक वास्तविकता को भी दर्शाना चाहिए, जिसे विश्लेषणात्मक आकलनों द्वारा समर्थन प्राप्त हो।

चतुर्वेदी ने कहा कि एक अच्छी तरह से संतुलित रणनीति में एक अर्थव्यवस्था-व्यापी उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य, क्षेत्र-विशिष्ट कार्बन बजट और निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों तथा स्वच्छ निर्माण के लिए प्रोत्साहन शामिल होना चाहिए।

भाषा अमित मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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