नयी दिल्ली, छह नवंबर (भाषा) भारत में 2047 तक लगभग 1.1 करोड़ टन सौर अपशिष्ट उत्पन्न होने का अनुमान है, जिसमें से अधिकांश ‘क्रिस्टलाइन-सिलिकॉन मॉड्यूल’ से उत्पन्न होगा। यह बात बृहस्पतिवार को प्रकाशित दो अध्ययनों में कही गई।
दिल्ली आधारित थिंक टैंक ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर’ (सीईईडब्ल्यू) के अध्ययन में कहा गया है कि इस कचरे के प्रबंधन के लिए देश भर में लगभग 300 पुनर्चक्रण संयंत्रों और लगभग 4,200 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी।
अध्ययनों में यह भी कहा गया है कि बेकार पड़े सौर पैनलों से सामग्री को पुनः प्राप्त करने और पुनः उपयोग करने से 2047 तक 3,700 करोड़ रुपये का बाजार अवसर पैदा हो सकता है।
यदि इस क्षमता का लाभ उठाया जाता है, तो सौर अपशिष्ट से सिलिकॉन, तांबा, एल्युमीनियम और चांदी जैसी मूल्यवान सामग्रियों को प्राप्त करके 2047 में इस क्षेत्र की विनिर्माण आवश्यकताओं का 38 प्रतिशत पूरा किया जा सकता है, तथा नए संसाधनों को पुनर्चक्रित संसाधनों से प्रतिस्थापित करके 3.7 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन से बचा जा सकता है।
भारत का सौर मॉड्यूल पुनर्चक्रण बाजार अभी बहुत प्रारंभिक चरण में है, जहां केवल कुछ ही वाणिज्यिक पुनर्चक्रणकर्ता कार्यरत हैं।
सीईईडब्ल्यू अध्ययन घरेलू सौर पुनर्चक्रण पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिए भारत का पहला व्यापक खाका प्रदान करता है जो स्वच्छ ऊर्जा और विनिर्माण आत्मनिर्भरता दोनों का समर्थन करता है।
संगठन के फेलो ऋषभ जैन ने कहा, ‘‘भारत की सौर क्रांति एक नए हरित औद्योगिक अवसर को ऊर्जा प्रदान कर सकती है। अपनी स्वच्छ ऊर्जा प्रणालियों में चक्रीयता को समाहित करके, हम महत्वपूर्ण खनिजों को पुनः प्राप्त कर सकते हैं, आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत कर सकते हैं और हरित रोज़गार सृजित कर सकते हैं, साथ ही संभावित अपशिष्ट को स्थायी मूल्य में बदल सकते हैं। इस चक्रीय अर्थव्यवस्था का निर्माण भारत के लचीले और ज़िम्मेदार विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।’
सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में यह भी कहा गया है कि औपचारिक व्यवस्था में सौर पुनर्चक्रण आज भी अव्यावहारिक है, क्योंकि पुनर्चक्रणकर्ताओं को प्रति टन 10,000-12,000 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
सबसे बड़ा परिचालन व्यय अपशिष्ट मॉड्यूलों को वापस खरीदना है, जो कुल लागत का लगभग दो-तिहाई (लगभग 600 रुपये प्रति पैनल) है। इसके बाद प्रसंस्करण, संग्रहण और निपटान लागत आती है।
सीईईडब्ल्यू की आकांक्षा त्यागी ने कहा, ‘‘सौर पुनर्चक्रण भारत की स्वच्छ ऊर्जा और विनिर्माण महत्वाकांक्षाओं के बीच सेतु का काम कर सकता है। अपशिष्ट प्रबंधन के अलावा, यह आसान पुनर्प्राप्ति के लिए पैनलों को डिज़ाइन करके, सामग्री की शुद्धता में सुधार करके और महत्वपूर्ण खनिजों के इर्द-गिर्द नयी मूल्य श्रृंखलाएँ बनाकर नवाचार करने का एक अवसर है।’’
भाषा नेत्रपाल मनीषा
मनीषा
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