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Friday, 22 November, 2024
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मॉडलिंग, टेस्टिंग, सीरो सर्वे, वैक्सीन-भारत ने कोविड के इन 4 महीनों में चार सबक सीखे

मार्च में कोविड लॉकडाउन शुरू होने के बाद से हर महीने भारत में रोग नियंत्रण रणनीति पर फोकस और प्राथमिकताओं में बदलाव आया है.

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नई दिल्ली: भारत को कोविड-19 महामारी की चपेट में आए चार महीने हो चुके हैं. 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा, जब देश में कुल मामलों की संख्या सिर्फ 538 थी, पहला संकेत थी कि एक लंबी लड़ाई शुरू हो चुकी है.

एक अप्रैल को 1637 मामलों से लेकर 9 अगस्त को 21,53,010 पहुंचने तक—लगातार बढ़ते मामलों और मौतों के साथ यह ल़ड़ाई अभी खत्म होने के करीब पहुंचती नहीं दिख रही है. लेकिन पिछले चार महीनों में से हर एक ने भारत में इस बीमारी के बारे में नया आयाम खोला, जिसे दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था.

आइये यहां पर गहराई से इसे समझें कि पिछले इन चार महीनों में भारत की प्राथमिकताएं और रोग नियंत्रण को लेकर उसकी रणनीति का फोकस कैसे बदला, और उसने इससे क्या सबक सीखे.


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अप्रैल-मॉडलिंग पद्धति से अनुमान

अप्रैल तक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की तरफ से वैश्विक महामारी को लेकर अलर्ट किए जाने के तीन महीने हो चुके थे. लेकिन कोविड-19 तब भी अपेक्षाकृत नया था और विदेशों में मौत के आंकड़े चौंकाने वाले थे.

भारतीयों को संभवत: पहली बार इस चुनौती की गंभीरता का एहसास हुआ जब पीएम मोदी ने जनता से 10 मार्च को होली समारोह सीमित स्तर पर मनाने की अपील की. फिर अगले 15 दिन तो आजीवन न भूलने वाले रहे, जिसके अंत में लागू अभूतपूर्व लॉकडाउन ने देश को एकदम थाम देने वाले पड़ाव पर पहुंचा दिया.

इस बीच अप्रैल शुरू हो गया, देश उस समय तक इसे लेकर अलग-अलग अनुमानों के बीच उलझा था कि भारत में महामारी किस अनुपात में फैल सकती है.

अर्थशास्त्री और महामारी विज्ञानी रमनन लक्ष्मीनारायण, जो वाशिंगटन स्थित सेंटर फॉर डिसीज डायनामिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी के निदेशक और प्रिंसटन में एक वरिष्ठ रिसर्च स्कॉलर हैं, ने 27 मार्च को द न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए एक लेख में कहा था कि शुरुआती अनुमानों से पता चलता है कि जुलाई अंत तक 30 करोड़ से 50 करोड़ तक भारतीयों के नोवेल कोरोनावायरस से संक्रमित होने की आशंका है.

उन्होंने लिखा था, ‘ज्यादातर मामले बिना लक्षणों वाले या हल्के संक्रमण के साथ होंगे, लेकिन एक दसवां हिस्सा—यानी 3 करोड़ से 5 करोड़ के बीच लोगों के–गंभीर रूप से पीड़ित होने की आशंका है.’

सरकार ने इन अनुमानों को तुरंत खारिज कर दिया गया था, और अब भी यह दूर की कौड़ी ही लग रहे हैं. लेकिन स्पष्ट रूप से सरकार अपने स्तर पर मॉडलिंग के तरीके अपना रही थी. 26 अप्रैल को इसने राज्यों के साथ ऐसे ही प्रोजेक्शन को साझा किया जिसमें 15 अगस्त तक भारत में 2.74 करोड़ मामले होने का अनुमान लगाया गया था.

यह अनुमान भी निशान से काफी दूर है. पुनरावलोकन करें तो अप्रैल मॉडलिंग प्रक्रियाओं की अविश्वसनीयता के नाम रहा.

नाम न देने की शर्त पर एक वरिष्ठ टेक्नोक्रेट ने दिप्रिंट से कहा, ‘मॉडल आपको वो बता सकते हैं जो आप उनसे जानना चाहते हैं. उन्हीं सवालों के लिए मॉडलिंग प्रक्रियाएं ऐसे अलग-अलग अनुमानित आंकड़े दे सकते हैं कि उनके आधार पर फैसला लेना मुश्किल है.’


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मई – टेस्ट, टेस्ट और टेस्ट

शुरू में भारत ने महामारी से निपटने के लिए ‘टेस्ट, टेस्ट और टेस्ट’ की डब्ल्यूएचओ की सलाह खारिज कर दी थी. इसके बजाये भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव का नुस्खा ‘आइसोलेट, आइसोलेट और आइसोलेट’ अपनाया जो उन्होंने मार्च में एक प्रेस कांफ्रेंस में सुझाया था.

लेकिन मई तक परीक्षण पर जोर दिया जाने लगा और तत्कालीन पर्यावरण सचिव सी.के. मिश्रा के नेतृत्व में बने एक उच्चाधिकार समूह-2 ने इस पर प्राथमिकता से ध्यान केंद्रित किया.

1 मई को देशभर की लगभग 400 लैब में करीब 74,600 टेस्ट किए गए, जिनमें 100 के आसपास निजी लैब शामिल थी. इसके साथ कुल परीक्षणों की संख्या 9,76,363 हो गई.

21 मई तक टेस्ट लैब की संख्या बढ़कर 555 हो गईं, जिनमें 391 सरकारी क्षेत्र की और 164 निजी क्षेत्र की थी. दस दिनों के बाद टेस्ट की कुल संख्या 38,37,207 थी.

शुरू में आपूर्ति में कुछ दिक्कतें आईं लेकिन जल्द ही भारत ने सभी बाधाओं को दूर कर लिया, टीबी टेस्टिंग में इस्तेमाल होने वाली सीबीएनएएटी और ट्रूनेट मशीनों को इस काम में शामिल करके किट और रिएजेंट के मामले में व्यापक स्तर पर आत्मनिर्भरता हासिल कर ली. 20 मई को लगभग 75 प्रतिशत आरएनए एक्सट्रैक्शन किट, वायरल ट्रांसपोर्ट मीडियम किट और आरटी-पीसीआर के आर्डर घरेलू निर्माताओं को मिल रहे थे. 28 कंपनियों में से जिन 14 कंपनियों के आरटी-पीसीआर किट आईसीएमआर द्वारा अनुमोदित हैं, वे भारतीय थीं.

इन सबसे सबक लेते हुए भारत अब एक दिन में 10 लाख टेस्ट की योजना बना रहा है. 8 अगस्त को यह आंकड़ा सात लाख को पार कर गया, जो किसी एक दिन में सबसे ज्यादा संख्या है.

पूर्व पर्यावरण सचिव मिश्रा कहते हैं: ‘मार्च में बीमारी सिर्फ कुछ क्षेत्रों तक सीमित थी, हमें उनके अलावा कहीं और टेस्ट की आवश्यकता महसूस नहीं हुई. आज, बीमारी फैल रही है, लेकिन आपके पास भी टेस्ट की अधिक सुविधाएं हैं. तब, हमारे पास सपोर्टिंग टेस्ट की सुविधा नहीं थी; अब, हमारे पास एंटीजेन टेस्ट हैं. मार्च से अब तक बहुत कुछ बदल गया है.’

हालांकि, उन्होंने कहा, ‘लेकिन आज भी अगर हम डब्ल्यूएचओ के मानकों को देखते हैं, तो हम पर्याप्त परीक्षण नहीं कर रहे हैं. हमारी टेस्टिंग रणनीतिक और केंद्रित है.’

जून-सीरो सर्विलांस के चौंकाने वाले नतीजे

अप्रैल में चीनी एंटीबॉडी टेस्ट किट को लेकर भारत की शुरुआती गफलत ने कुछ समय के लिए ही सही मगर रैपिड टेस्ट के प्रयासों को रोक दिया था. लेकिन जून ने महामारी की व्यापकता को स्पष्ट करते हुए एंटीबॉडी टेस्ट की महत्ता को समझाया.

आईसीएमआर की तरफ से 65 जिलों में किए गए 0.73 प्रतिशत लोगों के सीरो टेस्ट में कुछ खास हासिल नहीं हुआ. लेकिन दिल्ली में तेजी से बढ़ते संक्रमण के मामलों से निपटने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सक्रिय होने के बाद जब दिल्ली के 11 जिलों में सर्वेक्षण किया गया, तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए.

सर्वेक्षण जून के अंत में किया गया था और परिणाम लगभग एक महीने बाद सामने आए. लेकिन दिल्ली में लगभग 46 लाख लोगों के 20 जून तक संक्रमित होने की बात से यह पता चला कि एक सीमित परीक्षण रणनीति के कारण संक्रमण के कितने मामले छूट गए थे. यह हर रोज टेस्टिंग की संख्या में लगातार भारी वृद्धि के बावजूद था.

दिल्ली सर्वेक्षण ने बीमारी को नियंत्रित करने के लिए आबादी में संक्रमण के प्रसार को बेहतर तरह से जानने की जरूरत को रेखांकित किया. अब दिल्ली, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कई अन्य राज्यों में अधिक सीरो सर्वे किए जा रहे हैं.

जुलाई—वैक्सीन पर जोर

आईसीएमआर महानिदेशक भार्गव ने 2 जुलाई को आश्चर्यजनक रूप से एक पत्र लिखकर एक नए संवाद की रूपरेखा तय की जिसमें उन्होंने भारत बायोटेक की तरफ से तैयार की जा रही और प्री क्लीनिकल ट्रायल के दौर में चल रही कोविड-19 वैक्सीन के मुख्य जांचकर्ताओं से कहा था कि परीक्षण 15 अगस्त तक पूरा करने की आवश्यकता है. हालांकि तब से आईसीएमआर के यह कहने के साथ कि वैज्ञानिक बाध्ताओं से कोई समझौता नहीं किया जा रहा, काफी कुछ बदल चुका है लेकिन यह तय है कि वैक्सीन को लेकर दृढ़ता पूरी तरह कायम है.

जायडस कैडिला ने अपना पहले और दूसरे चरण का परीक्षण शुरू कर दिया है, जबकि भारत के सीरम संस्थान को भारत में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की तरफ से विकसित किए जा रहे टीके को आजमाने की मंजूरी मिली है.

दुनिया भर में 141 वैक्सीन कैंडिटेड प्री-क्लिनिकल चरणों में और 26 क्लिनिकल ट्रायल के विभिन्न चरणों में हैं. इनमें से तीन को लेकर सबसे अधिक उम्मीदें जताई जा रही हैं– मॉडर्ना एमआरएनए वैक्सीन, ऑक्सफोर्ड वैक्सीन और चीन द्वारा विकसित एक अन्य वैक्सीन जिसका मौजूदा समय में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी पर परीक्षण किया जा रहा है.


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डॉ. भार्गव ने 4 अगस्त को एक ब्रीफिंग में कहा था: ‘एक टीके की बेहद और तत्काल आवश्यकता है. लेकिन एक दुविधा भी है. महामारी तेजी से बढ़ रही है. एक वैक्सीन विकसित करने में न केवल वैज्ञानिक पहलू से बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और नियामक पहलुओं से भी समय लगता है.

उन्होंने बताया था, ‘हमारे पास तीन टीकों के परीक्षण चल रहे हैं. पहला भारत बायोटेक वैक्सीन है जिसने 11 विभिन्न स्थानों पर चरण-1 का परीक्षण पूरा किया है और चरण-2 शुरू कर दिया है. जायडस के डीएनए वैक्सीन पर भारत ने चरण-1 पूरा करके 11 स्थानों में चरण-2 की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं. तीसरा टीका जिसे कल मंजूरी मिली है, यह रिकॉम्बीनेंट ऑक्सफोर्ड वैक्सीन है जिसका चरण-2 और चरण-3 17 जगहों पर शुरू करने की अनुमति मिली है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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