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Sunday, 22 December, 2024
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भारत माइक्रो कारों के लिए तैयार है – और इस बार वह सस्ती दिखने वाली टाटा नैनो से समझौता नहीं करेगा

चूंकि एमजी कॉमेट माइक्रो कार आखिरकार भारतीय सड़कों पर दौड़ने लगी हैं और लिगियर देश में अपनी माइली सबकॉम्पैक्ट कार का परीक्षण कर रहा है, क्या अगली पीढ़ी के इलेक्ट्रिफाइड नैनो के लिए कोई मौका है?

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जैसे ही आप दक्षिणी पश्चिम बंगाल से गुज़रने वाली नई ग्रैंड ट्रंक रोड पर सिंगूर चौराहे से आगे बढ़ते हैं, आपको एक इलेक्ट्रिक सबस्टेशन मिलता है जो देखकर ऐसा लगता है कि यह ग्रिड से नहीं जुड़ा है और न ही आसपास के इलाके में कोई सर्विस प्रदान करता है. ये पुराने टाटा मोटर्स प्लांट के अवशेष हैं, जिसे नैनो के निर्माण का काम सौंपा गया था. नैनो, एक ऐसी कार जिसे काफी धूमधाम से लॉन्च किया गया था और चेयरमैन रतन टाटा को उम्मीद थी कि यह लाखों लोगों की पहुंच कार तक बनाकर भारतीय ऑटोमोबाइल क्षेत्र में क्रांति ले आएगी. टाटा नैनो भारत और विदेश में पब्लिक रिलेशंस के मामले में सुपरहिट रही. हर कोई इसके बारे में जानना चाहता था, लॉन्च समारोह भारतीय ऑटोमोटिव इतिहास में सबसे बड़ा था.

फिर भी टाटा नैनो भारतीय मोटरिंग की सबसे बड़ी ‘क्या हो अगर?’ में से एक बन गई. वाहन की व्यावसायिक विफलता में कई कारणों ने योगदान दिया, जिनमें से एक सिंगूर में एक संयंत्र स्थापित करने में इसकी असमर्थता थी. सिंगूर संयंत्र को तोड़ने और गुजरात के साणंद में राष्ट्रीय राजमार्ग 6 के दूसरे छोर पर इसे फिर से बनाने के प्रभावशाली लॉजिस्टिक प्रयास के बावजूद, टाटा नैनो कभी भी अपेक्षित संख्या में नहीं बिकी. दुखद तथ्य यह है कि नैनो, की चर्चा हर किसी की ज़ुबान पर होने के बावजूद भी, वास्तव में कभी भी यह एक अच्छी कार नहीं थी. इसने अपनी कीमत के हिसाब से खरीददारों को कभी भी उतनी वैल्यू अदा नहीं की.

नैनो गाड़ियों पर फिर से हो रहा विचार

टाटा मोटर्स कॉम्पैक्ट कारों की विफलता को दूर करने में कामयाब रही, और आज, साणंद में प्लांट ने ऑटोमोबाइल निर्माता को बिक्री चार्ट में आगे बढ़ने में मदद की है. यह अब पंच, टियागो और टिगोर जैसी बेस्ट-सेलर कारों का उत्पादन करती है और इसने भारत में कार निर्माताओं के बीच दूसरे स्थान पर हुंडई को चुनौती देते हुए देश के उभरते इलेक्ट्रिक वाहन सेगमेंट में शीर्ष स्थान हासिल किया है. फिर भी, क्या टाटा मोटर्स और अन्य कार निर्माताओं के लिए माइक्रो कार्स के विचार को फिर से तलाशने का समय आ गया है? चूंकि कुछ एमजी कॉमेट माइक्रो कारें अंततः भारतीय सड़कों पर उतरनी शुरू हो गई हैं और फ्रांसीसी वाहन निर्माता लिगियर देश में अपनी माइली सबकॉम्पैक्ट कार का परीक्षण कर रही है,  तो क्या अगली पीढ़ी के इलेक्ट्रीफाइड नैनो के लिए कोई मौका है?

तार्किक दृष्टिकोण से, होना ही चाहिए. वास्तव में, यदि आप प्रमुख प्रदर्शनियों में कार निर्माताओं के पेवेलियन में कल्पना किए गए भविष्य के परिदृश्यों को देखेंगे, तो आपको छोटी कारों का एक कॉम्बिनेशन दिखाई देगा जो विशाल टोस्टर की तरह दिखते हैं और विशाल ऑटोनॉमस ड्रोन के साथ जुड़े हुए हैं और ऐसा लगता है कि जो जैम्स कैमरून के अवतार से कार की मोबिलिटी को फिर से परिभाषित करने के लिए आए हैं. माना जाता है कि ये टिकाऊ सौर या पवन-आधारित बिजली द्वारा संचालित होते हैं. हालांकि मैंने भविष्य के लिए किए गए वादों पर विश्वास करना छोड़ दिया है, क्योंकि यह भूलना मुश्किल है कि 1990 के दशक में ही हमें उड़ने वाली कारों और मंगल ग्रह पर एक मानव-मिशन भेजने का वादा किया गया था.

लेकिन यह संभव प्रतीत होता है, और तथ्य यह है कि टिकाऊपन हम सभी के लिए एक महत्वपूर्ण विचार होना चाहिए – खासकर कार खरीदते समय. जैसा कि पिछले कुछ हफ्तों में अत्यधिक बारिश से पता चला है, जलवायु परिवर्तन हो रहा है. और जबकि कोविड-19 महामारी ने शेयर्ड मोबिलिटी में बाधा उत्पन्न की है, ऐसे में छोटे, अधिक व्यावहारिक व्यक्तिगत वाहनों का समय आ गया है.

इलेक्ट्रिफाइड माइक्रोकार्स हमारा सर्वोत्तम विकल्प हैं

हां, मैं भी एक बड़े, शक्तिशाली स्पोर्ट्स यूटिलिटी वाहन का पक्षधर हूं, लेकिन अगर आप दिल्ली और गुरुग्राम के बीच गाड़ी चलाते हैं, जैसा कि रोजाना हजारों कार्यालय जाने वाले लोग करते हैं, तो आप कई निजी यात्री कारों को देखेंगे जिनमें सिर्फ एक व्यक्ति होता है. तथ्य यह है कि अधिकांश वाहन जिस उद्देश्य को पूरा करते हैं, उसके लिए उनका निर्माण किया जाता है. निश्चित रूप से, कुछ लोगों को रोज़ाना स्कूल छोड़ने और कभी-कभी हाइवे ड्राइव के लिए बड़े कारों की आवश्यकता होती है. शहरी परिवेश में अधिक से अधिक सड़कें बनाना स्पष्ट रूप से कोई स्थायी समाधान नहीं है. जबकि भारतीय शहरों ने स्थानीय और क्षेत्रीय सार्वजनिक परिवहन समाधान बनाने की दिशा में बड़े पैमाने पर प्रगति की है, लोगों को उनकी कारों से निकालकर मेट्रो सिस्टम में लाना एक कठिन चुनौती बनी हुई है.

छोटी, इलेक्ट्रिफाइड माइक्रो कारें उन लोगों के लिए सबसे अच्छी डील हो सकती हैं जो हर चीज से ऊपर पर्सनल मोबिलिटी चाहते हैं क्योंकि ईमानदारी से कहें तो: किसी भी भारतीय शहर में पीक आवर्स में गाड़ी चलाना बेहद आनंददायक नहीं है. अपने ही स्थान पर रहने और उस दौरान अपने पसंदीदा संगीत या पॉडकास्ट या जो कुछ भी आपको पसंद है उसे सुनने जैसा कुछ नहीं है. किसी कारण से भविष्य की Apple या Google कार की सभी तस्वीरें विशाल टोस्टर की तरह दिखती हैं. पूरी ईमानदारी से कहें तो जैसी कि एमजी कॉमेट दिखती है. यह किसी भी तरह से देखने में आकर्षक नहीं है, लेकिन जैसा कि मैंने कार की अपनी समीक्षा में लिखा है, इसका केबिन अच्छा है और अंदर से काफी सुखद है. और शायद यही वह बात थी जिसकी नैनो में कमी थी; यह कुछ ज्यादा ही सस्ता लगा.

ऐसे समय में जब भारत में आय बढ़ रही है, और खरीदार अपनी कारों और मोबाइल फोन में और ज़्यादा की उम्मीद कर रहे हैं तो ऐसे में कारों को उस इच्छा की पूर्ति दिखनी चाहिए. खरीददारों को भी अधिक टिकाऊ होने की इच्छा रखनी चाहिए, और इलेक्ट्रिक माइक्रो कार उस उद्देश्य के लिए एक सुखद साधन हो सकता है. जैसा कि कहा गया है, मैं खुद अभी तक एक भी नहीं खरीद रहा हूं.

(कुशान मित्रा दिल्ली बेस्ड एक ऑटोमोटिव पत्रकार हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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