इंदौर: दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार भारत के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में इंदौर की विश्वसनीयता पर भरोसा करते हुए अब इसका नागरिक निकाय अपनी सौर ऊर्जा परियोजना को वित्तपोषित करने (फंडिंग या पैसा जुटाने का काम) में मदद के लिए ‘म्युनिसिपल बांड’ जारी करने की योजना बना रहा है.
इंदौर नगर निगम (आईएमसी) अगले साल जनवरी में इन ‘ग्रीन बांड’ की बिक्री के जरिए लगभग 250 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बना रहा है. अधिकारियों का कहना है कि एक बार भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा इसे मंजूरी दिए जाने के बाद इस फंड (धनराशि) का इस्तेमाल खरगोन जिले के जलूद गांव में एक सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना और इसके संचालन के लिए किया जाएगा.
नगर आयुक्त प्रतिभा पाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘पानी को पम्प द्वारा जमीन से निकालने और इसकी आपूर्ति के लिए 60 मेगावाट का एक सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने वाली यह परियोजना आईएमसी द्वारा कार्यान्वित की जाने वाली सबसे बड़ी परियोजना होगी.’
पाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘सभी कागजी कार्रवाई और दस्तावेज के काम समाप्त हो गए हैं, सब कुछ तैयार है. हमें ‘एए प्लस’ की रेटिंग मिली है और हम उन्हें (ग्रीन बांड्स को) जनवरी के पहले सप्ताह में जारी करने की स्थिति में होंगे. प्रवासी भारतीय दिवस और ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट भी उसी समय के आसपास आयोजित किए जाएंगे. यह खूब सारी चर्चा पैदा करेगा क्योंकि बहुत सारे निवेशक आएंगे.‘
यह उन कई सारे उपक्रमों में से एक है जिसे सबसे पहले इंदौर ने ही अंजाम दिया है. साल 2018 में, यह प्राइवेट प्लेसमेंट के आधार पर 100 करोड़ रुपये जुटाने के लिए नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के डेट सिक्योरिटीज प्लेटफॉर्म पर म्युनिसिपल बॉन्ड, या मुनि बॉन्ड, को सूचीबद्ध करने वाला भारत का पहला शहर बन गया था.
निजी प्लेसमेंट बेसिस खुले बाजार के बजाय पहले से चयनित निवेशकों और संस्थानों को स्टॉक और बांड की बिक्री को कहा जाता है. म्युनिसिपल बॉन्ड किसी स्थानीय सरकारी संस्था द्वारा निवेशकों को धन जुटाने के लिए जारी की जाने वाली ‘ऋण प्रतिभूतियां’ (डेट सिक्योरिटीज होती) हैं जिनका उपयोग उनके द्वारा अपने दिन-प्रतिदिन के दायित्वों या किसी विशिष्ट परियोजना के लिए किया जा सकता है.
यह पहली बार है जब आईएमसी के ‘म्युनिसिपल बांड’ आम जनता के लिए खुले होंगे. साल 2018 में, जारी इसके बांड 10 साल की अवधि के लिए ब्याज भुगतान के बदले निजी निवेशकों जैसे कि कॉर्पोरेट्स, बीमा कंपनियों और विदेशी संस्थागत निवेशकों को जारी किए गए थे.
यह आईएमसी का पहला ‘ग्रीन बॉन्ड’ भी होगा, जो पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं के लिए जारी किया जाता है.
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क्या है यह पूरी योजना?
भारत के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में इंदौर की प्रतिष्ठा पिछले कुछ वर्षों में और भी अधिक मजबूत हुई है. इस साल अक्टूबर में इस शहर को लगातार छठी बार भारत का सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया गया था.
‘ग्रीन बॉन्ड’ परियोजना की देखरेख करने वाले इंदौर स्मार्ट सिटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) दिव्यांक सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि इस सौर ऊर्जा संयंत्र पर 305 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है, जहां 250 करोड़ रुपये बॉन्ड के जरिये जुटाए जाएंगे, वहीं बाकी की रकम सरकारी सब्सिडी के जरिए पूरी की जायेगी.
उन्होंने कहा, ‘दो प्रकार की सरकारी सब्सिडी का लाभ उठाया जा सकता है. सबसे पहले नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय से ‘वायबिलिटी गैप फंडिंग’ के रूप में मिलने वाले 42 करोड़ रुपये और फिर 20 करोड़ रुपये का ब्याज अनुदान.’
एक ओर जहां ‘वायबिलिटी गैप फंडिंग’ ऐसी पीपीपी परियोजनाओं को पूंजीगत सहायता प्रदान करने के लिए तैयार की गई एक योजना है जो इसके आभाव में वित्तीय रूप से व्यावहारिक नहीं होगी, वहीं ब्याज अनुदान, ब्याज में दी जाने वाली कुछ प्रतिशत की छूट होती है.
आईएमसी के परियोजना प्रस्ताव में कहा गया है कि अपनी ‘ग्रीन बॉन्ड’ योजना के तहत आईएमसी ने अपने बॉन्ड पर 8 से 8.25 प्रतिशत की ब्याज दर की पेशकश करने की योजना बनाई है, जो साल 2018 में इसके द्वारा प्रस्तवित 9.25 प्रतिशत से कम है.
इस नागरिक निकाय को यह भी उम्मीद है कि पिछली बार के 1.26 गुना के ओवरसब्सक्रिप्शन के मुकाबले उसका नया बांड 10 से 15 गुना अधिक ओवरसब्सक्राइब होगा. ‘ओवरसब्सक्रिप्शन’ एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग तब किया जाता है जब किसी नए स्टॉक की मांग वास्तव में उपलब्ध शेयरों की संख्या से कहीं अधिक होती है. ऊपर जिक्र किए गए आईएमसी आयुक्त पाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारी विश्वसनीयता स्वछता अभियान की सफलता और पिछले पांच वर्षों में पूरी की गई अन्य परियोजनाओं, जैसे कि अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं, के माध्यम से स्थापित हुई है.
नवीकरण और शहरी परिवर्तन के लिए ‘अटल मिशन’ के तहत हमने पहले प्राइवेट सिक्योरिटी बांड जारी किए थे. एक विशेषज्ञ टीम ने हमें सलाह दी कि ‘ग्रीन बॉन्ड’ की ओर बदलाव करना बेहतर होगा. इसके अलावा, पानी की आपूर्ति के लिए बिजली पर होने वाला हमारा आवर्ती व्यय (रेकरिंग एक्सपेंस) काफी अधिक है, और इसे कम करने की आवश्यकता है.’
इंदौर का वार्षिक बजट 7,500 करोड़ रुपये है और यह शहर में पानी पंप करने के लिए बिजली पर 25 करोड़ रुपये खर्च करता है. सिंह ने कहा कि इस परियोजना से इसे अपनी ऊर्जा लागत में प्रति माह 4.3 करोड़ रुपये की कमी लाने में मदद मिलेगी.
सिंह ने कहा, ‘मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना नहीं है, बल्कि शहर के बजट में एक तरह का नया वित्तीय साधन शामिल करना है. निकट भविष्य में, बाजार शहर के बजट में एक बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है. राजस्व के स्रोत सीमित हैं. शहर हर मायने में और अधिक स्मार्ट होते जा रहे हैं. इसके लिए बहुत अधिक बजट की आवश्यकता होगी.‘
अधिकारियों का कहना है कि म्युनिसिपल बांड जारी करने के साथ इंदौर का पिछला अनुभव और आम इंदौरियों – जिनमें से लगभग 70 प्रतिशत अग्रिम कर का भुगतान करते हैं – का स्थानीय निकाय में विश्वास, एक बार फिर से म्युनिसिपल बांड जारी करने का निर्णय लेने के पीछे के बड़े कारक रहे हैं.
पाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह कदम (जनता की) मांग पर आधारित है, क्योंकि यह (आम) लोग थे, जिन्होंने हमें पब्लिक इशू लाने के लिए कहा था. ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अपने निवेश को लेकर हम पर भरोसा करते हैं और इसका वापस भुगतान करने की हमारी क्षमता पर भरोसा रखते हैं.’
एक अन्य कारक जिसने (इस निर्णय में) बड़ी भूमिका निभाई, वह थी नगर निकाय की क्रेडिट रेटिंग. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने आईएमसी को ‘एए-प्लस’ टैग दिया है जो इसकी ‘एए’ की पहले वाली रेटिंग से बेहतर है.
सिंह ने कहा, ‘यह अब दूसरी सबसे अच्छी रेटिंग है. (यह) मुख्य रूप से इंदौर नगर निगम की अच्छी वित्तीय ताकत के कारण है.’
कार्बन क्रेडिट के माध्यम से राजस्व अर्जित करना
सीईओ सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि यह सौर ऊर्जा परियोजना न केवल इंदौर को पानी की आपूर्ति में लगने वाली बिजली की लागत कम करने में मदद करेगी, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार बाजार में कार्बन क्रेडिट बेचकर नागरिक निकाय के लिए अतिरिक्त राजस्व भी अर्जित करेगी.
संदर्भ के लिए बता दें कि कार्बन ट्रेडिंग, कार्बन क्रेडिट – एक ऐसा परमिट जो इसके धारक को एक निश्चित मात्रा में कार्बन डाइईऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने की अनुमति देता है – की खरीद और बिक्री को कहते हैं. इस तरह के तंत्र का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने में मदद करने के लिए कार्बन उत्सर्जन को धीरे-धीरे कम करना है.
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सिंह ने कहा कि बिजली के बिलों के माध्यम से बचाए गए पैसे के साथ-साथ कार्बन क्रेडिट बेचने के माध्यम से अर्जित राजस्व को ‘लाभांश की वापसी और बॉन्ड-धारकों को भुगतान करने में शामिल किया जाएगा.’
उन्होंने कहा, ‘पहले 10 वर्षों तक हम बांड धारकों के पैसे लौटाने के बाद भी प्रति माह 17 लाख रुपये की बचत करेंगे. इस तरह यह शहर, इसके लोगों और पर्यावरण के लिए लाभदायक होगा.‘
म्युनिसिपल बांड शुरू करने वाला पहला भारतीय शहर होने के अलावा, इंदौर वह पहला भारतीय शहर भी है जिसने कार्बन ट्रेडिंग के माध्यम से कमाई शुरू की है. यह शहर कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और कार्बन क्रेडिट के मौद्रिकीकरण पर काम करने के लिए काफी प्रयास कर रहा है.
राजस्व सृजन के इस प्रारूप के तहत, जिन परियोजनाओं द्वारा कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की उम्मीद की जाती है, उनकी पहचान कर उन्हें सूचीबद्ध किया जाता है. एक तीसरे पक्ष – इंदौर के मामले में, यह वाशिंगटन स्थित गैर-लाभकारी संस्था वेरिफ़िएड कार्बन स्टैण्डर्ड है – द्वारा इन दावों को सत्यापित किये जाने के बाद ये क्रेडिट बाजारों में बेचे जाते हैं और परियोजना मालिकों को मौद्रिक प्रोत्साहन देते हैं.
साल 2020 में, इंदौर के नागरिक निकाय ने 1.70 टन कार्बन डाईऑक्साइड के बदले कार्बन क्रेडिट बेचकर 50 लाख रुपये कमाए थे. यह निजी-सार्वजनिक भागीदारी (प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप) मोड में एक बायोमिथेनेशन संयंत्र स्थापित करके किया गया था.
‘बजट से जुड़ी कम बाधाएं’
वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि म्युनिसिपल बॉन्ड के माध्यम से पैसे जुटाना एक ‘अच्छा विचार’ है क्योंकि इसका मतलब है कि बजट से जुड़ी बाधाएं काफी कम होंगी.
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स इंडिया (पीडब्ल्यूसी) के पार्टनर और सरकारी वित्तपोषण के विशेषज्ञ रानन बनर्जी ने कहा कि आईएमसी द्वारा बांड के माध्यम से धन जुटाने के लिए उठाये गए कदम का मतलब परियोजना की ‘बेहतर डिलीवरी’ है, क्योंकि ‘इसके लिए किसी बजट से धन जुटाने की जरूरत नहीं है’.
बनर्जी ने कहा, ‘आप बाजार से उधार लेने और परियोजना को फंड करने के लिए अपनी बैलेंस शीट का लाभ उठा रहे हैं, जिसका अपना राजस्व स्रोत है और जो इसके लिए भुगतान कर सकता है. इसलिए, बजट से जुड़ी कोई बाधा नहीं होगी.’
उनके अनुसार इंदौर द्वारा 10 साल के दीर्घकालिक बॉन्ड का विकल्प चुनना बुद्धिमानी की बात है. साथ ही, उन्होंने कहा कि एक मजबूत बैलेंस शीट के साथ 250 करोड़ रुपये कोई बड़ी राशि नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘अगर आपको (ब्याज के रूप में) लगभग 8 प्रतिशत देना है, तो यह वास्तविक रूप से 20 करोड़ रुपये बनता है. तो भले ही परियोजना राजस्व पैदा नहीं करती है, फिर भी इस राशि को कवर किया जा सकता है. 7,000 करोड़ रुपये से अधिक की बैलेंस शीट में यह बहुत छोटा सा हिस्सा है. साथ ही, नगर निगम भी कोई डिफ़ॉल्ट (वादे के अनुसार पैसा न चुकाना) नहीं करना चाहेगी क्योंकि यह भविष्य के इस तरह के उद्यमों को खतरे में डाल देगा.’
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