नई दिल्ली : रक्षा मंत्रालय सैनिकों और हथियारों की तेज आवाजाही के लिए चीन सीमा पर सड़कों के एक नेटवर्क बनाने की परियोजना का पहले चरण का काम पूरा करने वाला है. 20 साल पहले इसकी परिकल्पना की गई थी. दि प्रिंट को यह जानकारी मिली है.
सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने 1999 में रक्षा मंत्रालय के तहत सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा इन सड़कों के निर्माण को मंजूरी दी थी. इस परियोजना को 2003 से 2006 के बीच पूरा किया जाना था, लेकिन समय सीमा को 2012 तक बढ़ा दिया गया था- यह भी पीछे छूट गई थी.
मंत्रालय के एक सूत्र के मुताबिक सरकार ने पहले चरण में भारत-चीन सीमा के साथ कुल 3,664 किलोमीटर की सड़क बनाने की योजना बनाई थी. इनमें से 36 सड़कों (1,260 किमी) का निर्माण किया गया है, जबकि 20 अन्य (2,035 किमी) को लिंक किया गया है, जिनका परीक्षण किया जा रहा है. शेष पांच सड़कों पर काम शुरू हो गया है और जल्द ही पूरा हो जाएगा.
सूत्र ने कहा, ‘यह रक्षा तैयारियों का हिस्सा है. भारत वहां चीन तक पहुंच रहा है. उन्होंने कहा, ‘सरकार का ध्यान कनेक्टिविटी में वृद्धि, इन सड़कों पर गश्त को सुगम बनाना है, जिससे क्षेत्रों को बेहतर तरीके से सुरक्षित किया जा सके’
सूत्र के अनुसार, पहले चरण के लिए केवल 51 किमी. का पूरा होना बाकी है. यह एक बड़ी उपलब्धि है कि परियोजना वर्षों से लंबित थी.
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तैयार सड़कों में से कुछ लद्दाख सेक्टर में सासोमा और सेसरिया को जोड़ने वाली सड़कें, मानसरोवर सेक्टर में घाटीबाग-लिपुलेख मार्ग, उत्तराखंड क्षेत्र में गुंजी-कुट्टी-जोलिंगकोंग सड़क, सिक्किम सेक्टर में डोकला, बलिपारा-चारुदर-तवांग रोड, तवांग सेक्टर में सड़क और अरुणाचल सेक्टर में डंपिंग-यांग्त्ज़ी शामिल हैं.
परियोजना की लागत 3,000 करोड़ रुपये से अधिक
गृह मंत्रालय के एक सूत्र के अनुसार, सरकार ने परियोजना पर 3,728 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इसमें 2016-17 में 781 करोड़ रुपये, 2017-18 में 745 करोड़ रुपये और 2018-19 में 890 करोड़ रुपये शामिल हैं. चालू वित्त वर्ष के लिए प्रस्तावित लागत 1,312 करोड़ रुपये है.
सूत्र ने कहा, ‘पहले चरण को पूरा करने के लिए अनुमानित लागत 4,700 करोड़ रुपये थी, जिसे बजट के भीतर ही पूरा किया गया. पहले चरण का काम पूरा हो जाने के बाद अगले चरण के विवरण पर सभी हितधारकों के साथ चर्चा की जाएगी.’
सरकार को अब इस पर काम करना है कि कितने चरणों और कितनी सड़कों का निर्माण करने की आवश्यकता है.
चीन के समकक्ष खड़ा होना
सड़कें अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी बुनियादी ढांचे के काउंटर के रूप तैयार की जा रही हैं.
चीन द्वारा 1997 में भारत के उत्तरी और पूर्वी सीमांतों के साथ सड़क और पटरियों का निर्माण शुरू करने के बाद भारत को जवाब देने की आवश्यकता महसूस हुई.
रक्षा मंत्रालय के सूत्र ने कहा, ‘भारत ने तब सैनिकों के तेज और सुचारू आवागमन के लिए चीन सीमा के साथ सड़क संचार की आवश्यकता का अध्ययन करने के लिए एक चीन अध्ययन समूह (सीएसजी) का गठन किया था और अध्ययन के अंत में, सीएसजी ने भारत-चीन बॉर्डर रोड (आईसीबीआर) के लिए चीन की सीमा के साथ 73 महत्वपूर्ण स्थानों की पहचान की.
जिन 36 सड़कों का निर्माण किया गया है, सीएसजी ने इनमें सात सड़कों (268 किमी) को पूरा किया है, रक्षा मंत्रालय ने 20 सड़कों (818 किमी) का निर्माण किया है और गृह मंत्रालय ने 9 सड़कों (174 किमी) पर काम किया है.
20 सड़कें जो जल्द पूरा होनी हैं उनमें से पांच सड़कों पर सीएसजी (762 किमी), 12 सड़कों (1,105 किलोमीटर) पर रक्षा मंत्रालय और तीन (168 किमी) पर गृह मंत्रालय ने काम किया है.
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