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Friday, 19 April, 2024
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सिंधु जल संधि परियोजनाओं पर भारत के किसी भी मध्यस्थता को स्वीकार करने की संभावना क्यों नहीं है

किशनगंगा और रातले परियोजनाओं पर पाकिस्तान के साथ विवाद में, भारत ने समानांतर मध्यस्थता शुरू करने के लिए विश्व बैंक के कदम पर आपत्ति जताई और कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन की कार्यवाही में भाग लेने से इनकार कर दिया.

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नई दिल्ली: भारत सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को संशोधित करने के अपने 25 जनवरी के नोटिस पर पाकिस्तान के फैसले का इंतजार कर रहा है, दिप्रिंट को पता चला है कि नई दिल्ली ने कमोबेश अपना मन बना लिया है कि जहां तक चल रही मध्यस्थता अदालत की बात है और किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं की कार्यवाही से संबंधित है, वह किसी भी अंतरिम उपाय या एकपक्षीय निर्णय को स्वीकार नहीं करेगा.

भारत और पाकिस्तान, दोनों देश साझा सिंधु नदी बेसिन पर जम्मू और कश्मीर में दो पनबिजली परियोजनाओं के विवाद में शामिल रहे हैं, जो अन्य बातों के अलावा तलछट को नीचे की ओर प्रवाहित करने, जलाशयों की भंडारण क्षमता से संबंधित है. तीन विवाद किशनगंगा परियोजना से जबकि चार रातले परियोजना से जुड़े हैं.

पाकिस्तान ने आरोप लगाया है कि परियोजनाएं IWT का उल्लंघन करती हैं और इससे उसके क्षेत्र में पानी का बहाव कम हो जाएगा.

IWT, जिसे 1960 में विश्व बैंक द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता किया गया था, यह बताता है कि दोनों देश साझा सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों का उपयोग कैसे करेंगे. इसके अनुसार सिस्टम की पश्चिमी नदियां – सिंधु, झेलम और चिनाब – पाकिस्तान के हिस्से में आती हैं, तीन पूर्वी – रावी, ब्यास और सतलज – भारत द्वारा उपयोग की जानी हैं.

विश्व बैंक द्वारा भारत के अनुरोध पर एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने और दो परियोजनाओं से संबंधित विवाद को हल करने के लिए अक्टूबर 2022 में पाकिस्तान के अनुरोध पर सीओए की स्थापना के बाद नया विवाद शुरू हुआ.

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भारत ने दो समानांतर मध्यस्थता प्रक्रियाओं को एक साथ शुरू करने के विश्व बैंक के कदम पर आपत्ति जताई और सीओए की कार्यवाही में भाग लेने से इनकार कर दिया, जो वर्तमान में दो परियोजनाओं पर पाकिस्तान द्वारा उठाई गई आपत्तियों को देख रहा है.

IWT प्रावधानों के तहत, सीओए में सात मध्यस्थ होते हैं, जहां दो भारत और पाकिस्तान द्वारा नियुक्त किए जाते हैं. भारत ने अभी तक अपने दो मध्यस्थ नियुक्त नहीं किए हैं.

27 जनवरी को हेग में हुई सीओए की पहली कार्यवाही से पहले, जिसमें उसने भाग नहीं लिया था, भारत ने 25 जनवरी को पाकिस्तान को संधि पर फिर से बातचीत करने के लिए नोटिस भेजा था.

पाकिस्तान को 90 दिनों के भीतर नोटिस का जवाब देना है.


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सीओए क्या अंतरिम उपाय कर सकता है?

सरकार के सूत्रों ने कहा कि विवाद में अंतिम फैसला दिए जाने से पहले सीओए जिन अंतरिम उपायों की घोषणा कर सकता है, उनमें 850 मेगावाट की रातले परियोजना के निर्माण पर रोक लगाना और 330-मेगावाट की किशनगंगा परियोजना, जिसे 2018 में चालू किया गया था, से बिजली के उत्पादन पर अस्थायी रूप से रोक लगाना शामिल है. 

तटस्थ विशेषज्ञ के विपरीत, सीओए किसी परियोजना पर रोक लगाने का आदेश दे सकता है.

सूत्रों में से एक ने कहा कि भारत का विचार है कि सीओए का गठन ‘उचित नहीं था’ और IWT के तहत विवादों को सुलझाने के लिए बनाए गए प्रावधान का उल्लंघन करता है.

प्रावधान के मुताबिक, जब कोई मुद्दा उठता है तो उसे पहले स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) में ले जाया जाता है, जिसमें क्रमशः भारत और पाकिस्तान के दो आयुक्त शामिल होते हैं. यदि पीआईसी इसे हल करने में असमर्थ है, तो कोई भी पक्ष इसे तटस्थ विशेषज्ञ के पास ले जा सकता है. यदि दोनों आयुक्त सहमत हैं कि विवाद को IWT की व्याख्या की आवश्यकता है, तो यह सीओए के पास जाता है.

‘हालांकि, IWT के प्रावधानों के अनुसार, एक मामला दो शर्तों के तहत सीओए के पास जा सकता है- अगर स्थायी सिंधु आयोग के दोनों आयुक्त इस बात से सहमत हैं कि यह मुद्दा कानूनी प्रकृति का है (संधि में स्पष्ट रूप से नहीं लिखा गया है), या तटस्थ विशेषज्ञ मामले को सीओए के पास भेजते हैं. लेकिन मौजूदा मामले में, दोनों विकल्पों का पालन नहीं किया गया और पाकिस्तान ने एकतरफा तरीके से भारत को सीओए में घसीटा है.’

भारत ने माना है कि पाकिस्तान द्वारा एकतरफा कार्रवाई IWT के अनुच्छेद IX के उल्लंघन में है जो विवाद समाधान के श्रेणीबद्ध तरीके को बताता है.

एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘भारत सीओए की कार्यवाही में शामिल नहीं हुआ क्योंकि यह स्पष्ट है कि यह (सीओए) IWT के प्रावधानों के खिलाफ गठित किया गया था. इसलिए भारतीय सीओए द्वारा दिए गए किसी भी अंतरिम उपाय या अंतिम निर्णय को स्वीकार नहीं करेगा.’ उन्होंने आगे कहा, ’25 जनवरी को पाकिस्तान को हमने श्रेणीबद्ध विवाद समाधान तंत्र के बारे में भ्रम को देखते हुए संधि को संशोधित करने के लिए कहा है.’

एक तीसरे सरकारी सूत्र ने कहा कि एक दर्जन से अधिक परियोजनाओं के साथ- जो या तो योजना बनाई जा रही है या जहां काम शुरू हो गया है – सिंधु नदी बेसिन की पश्चिमी और पूर्वी नदियों पर, भारत चिंतित है कि कोई भी खराब निर्णय उन सभी को खतरे में डाल सकता है.

सूत्र ने बताया, ‘इसलिए हम संधि पर फिर से बातचीत करना चाहते हैं.’


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यह पहली बार नहीं

यह पहली बार नहीं है कि विश्व बैंक ने IWT के तहत विवाद समाधान की दो समानांतर प्रक्रियाएं शुरू की हैं.

2016 में, विश्व बैंक ने पाकिस्तान की मांग पर सीओए नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू की और दो परियोजनाओं पर विवाद को हल करने के लिए भारत के अनुरोध पर एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति की.

लेकिन भारत की आपत्तियों के बाद संगठन को मध्यस्थता प्रक्रिया को ‘रोकना’ पड़ा.

अप्रैल 2022 में, विश्व बैंक ने विराम हटा लिया और फिर से भारत के अनुरोध पर एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने और पाकिस्तान की याचिका पर सीओए स्थापित करने की समानांतर मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू की.

IWT तीन युद्धों और भारत-पाकिस्तान संबंधों में कई उतार-चढ़ाव के बावजूद अब तक बचा हुआ है. कश्मीर के उरी में एक सैन्य शिविर पर 2016 के हमले के बाद यह तनाव में आ गया, जहां पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा 19 भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी गई थी.

इस हमले के कारण भारत ने IWT के तहत निर्दिष्ट पानी के अपने हिस्से का पूर्ण उपयोग करने के अपने अधिकार का प्रयोग करने के अपने निर्णय की जोरदार घोषणा की थी.

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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