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Sunday, 5 May, 2024
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मानवाधिकार हनन को लेकर श्रीलंका के खिलाफ UNHRC में प्रस्ताव पर भारत ने नहीं किया वोट

भारत के लिए काफी ऊहापोह की स्थिति थी क्योंकि एक तरफ तो तमिलों का मामला है दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पड़ोसी देश श्रीलंका का साथ न देने से चीन की पैठ वहां बढ़ सकती है.

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नई दिल्लीः भारत ने जिनेवा में हो रहे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के खिलाफ तथाकथित युद्ध अपराधों के खिलाफ वोटिंग करने में हिस्सा नहीं लिया है. हालांकि, भारत के लिए यहा काफी ऊहापोह की स्थिति थी क्योंकि एक तरफ तो तमिलों का मामला है दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पड़ोसी देश श्रीलंका का साथ न देने से चीन की पैठ वहां बढ़ सकती है. इसीलिए शायद भारत ने वोटिंग प्रक्रिया से अपने को अलग रखने का फैसला किया.

देश में भी श्रीलंका में तमिलों के खिलाफ हुई हिंसा का मामला लगातार उठता रहा है. मंगलवार को ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) ने श्रीलंका में तमिलों के खिलाफ युद्ध अपराध से संबंधित कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के प्रस्ताव का समर्थन करने की मांग की थी और कहा था कि द्वीपीय राष्ट्र में शांति बहाल करना भारत का नैतिक कर्तव्य है.

अन्नाद्रमुक के एम थंबीदुरई ने शून्यकाल में इस मामले को उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वह वादा भी याद दिलाया जिसमें उन्होंने श्रीलंकाई तमिलों के हितों की रक्षा करने की बात कही थी.

यूएनएचआरसी के प्रस्ताव में जाफना प्रायद्वीप में लिट्टे के खिलाफ कार्रवाई की वजह से पीड़ितों को न्याय न मिलने और उनका पुनर्वास न कर पाने में सरकार की विफलता का उल्लेख किया गया.

बता दें कि श्रीलंका में तमिलों की संख्या भारत के बाद सबसे ज्यादा है. वहां पर कुल आबादी का लगभग साढ़े बारह प्रतिशत तमिल जनसंख्या है. लेकिन देश की राजनीति, सेना और प्रशासन में उनकी हिस्सेदारी काफी कम है. तमिल का मुद्दा कई बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठता रहा है. भारत में भी इसे लेकर संसद में मुद्दे उठाए जाते रहे हैं. इसी वजह से श्रीलंका यूएनएचआरसी में उसके खिलाफ लाए जा रहे प्रस्ताव में युद्ध अपराधों के लिए श्रीलंका का आलोचना की गई थी और मानवाधिकारों के लिए कथित रूप से जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई किए जाने की बात कही गई थी.

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श्रीलंका ने लिट्टे के खिलाफ 2009 में कार्रवाई की थी जिसमें बड़ी संख्या में निर्दोष तमिल नागरिक भी मारे गए थे. इस प्रस्ताव में श्रीलंका का साथ देने का रूस, चीन, पाकिस्तान और कई मुस्लिम देशों ने वादा किया था लेकिन श्रीलंका को भारत का भी समर्थन चाहिए था हालांकि, भारत ने इस पूरे मामले पर तटस्थ रुख अपनाते हुए वोटिंग की प्रक्रिया मेंं हिस्सा नहीं लिया.


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