scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमदेशभारत के पहले स्पेस थिंक टैंक की शुरुआत, 2030 तक स्वदेशी यूनिकॉर्न के लिए रास्ता बनाने की तैयारी

भारत के पहले स्पेस थिंक टैंक की शुरुआत, 2030 तक स्वदेशी यूनिकॉर्न के लिए रास्ता बनाने की तैयारी

अंतरिक्ष उद्यमियों और वकीलों द्वारा स्थापित थिंक टैंक स्पेसपोर्ट साराभाई की योजना इसरो और निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों के एक साथ मिलकर काम करने लायक उपयुक्त माहौल बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की है.

Text Size:

बेंगलुरू: निजी अंतरिक्ष उद्योग की भागीदारी बढ़ाने के लिए उपयुक्त माहौल बनाने की तमाम कोशिशों के बीच इस क्षेत्र से जुड़े कुछ लोग देश के पहले समर्पित स्पेस थिंक टैंक स्पेसपोर्ट साराभाई (एस2) को लॉन्च करने के लिए एक साथ आए हैं.

यह संगठन मुख्यत: बेंगलुरू से काम करेगा जिसकी सेटेलाइट उपस्थिति दिल्ली, बर्लिन (जर्मनी), सेंडाई (जापान) और बोस्टन (अमेरिका) में होगी. इसका नाम विक्रम साराभाई पर रखा गया, जिन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की स्थापना की थी और उसका नेतृत्व भी किया था.

थिंक टैंक का उद्देश्य मौजूदा भारतीय अंतरिक्ष उद्योग- जिस पर इसरो और इसके लिए सेवाएं देने वाली निजी कंपनियों ने एकाधिकार कायम कर रखा है- को आगे बढ़ाने के लिए पॉलिसी गाइडलाइन, स्टेकहोल्डर फीडबैक और सरकार और अंतरिक्ष विभाग का रिसर्च डाटा मुहैया कराकर इसे इंडस्ट्री-फ्रैंडली, वित्तीय रूप से समक्ष और विनियमित करना है.

संगठन की संस्थापक टीम में अंतरिक्ष उद्यमी सुष्मिता मोहंती और नारायण प्रसाद, स्पेस लायर अशोक जी.वी. और रंजना कौल, स्पेस रोबोटिक्स इंजीनियर श्रेया संत्रा और पॉलिटिकल साइंस फेलो मीरा रोहेरा शामिल हैं. बुधवार शाम इसे वर्चुअली लॉन्च कर दिया गया.

मोहंती ने दिप्रिंट से कहा, ‘भारतीय निजी क्षेत्र पिछले कुछ दशकों से सबसे ज्यादा यही दबाव झेल रहा है कि वो घरेलू स्तर पर सिर्फ इसरो को सेवाएं देने से आगे बढ़कर (अब) 440 बिलियन डॉलर पर पहुंच चुके सिविलियन स्पेस मार्केट में खुद को एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर कैसे पेश करे.’

उन्होंने कहा, ‘हमें अपनी स्पेस इकोनॉमी को उदार बनाने, अपनी पुरानी नियामक व्यवस्था में पूरी तरह बदलाव करने और आगे की सोच रखने वाला बनने की जरूरत हैं. स्पेस ट्रांसपोर्टेशन के लिए उपग्रह निर्माण, सैटकॉम, भू-स्थानिक सेवाओं के लिहाज से उद्योगों के अनुकूल अंतरिक्ष नीति तैयार करने के लिए बेहतरीन स्पेस लॉ और पॉलिसी विशेषज्ञों को नियुक्त करना होगा.’ साथ ही जोड़ा, ‘हमें (उद्योग को) यह काम 20 वर्ष पहले कर लेना चाहिए था लेकिन हम अभी शुरुआत ही कर रहे हैं.’

टीम को जिस क्षेत्र में मुख्य तौर पर आगे बढ़ने की उम्मीद है, वो है मूल शोध के लिए भारत में अंतरिक्ष गतिविधियों पर प्राथमिक डेटा एकत्र करना.

प्रसाद ने कहा, ‘बात जब प्राथमिक डेटा एकत्र करने और सबको एक साथ मिलाकर विश्लेषण करने की आती है तो जमीनी स्तर पर वास्तविक डेटा का आकलन करने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है. फिर इससे नीति निर्माताओं को सिर्फ राय पर निर्भर रहने के बजाये अपने फैसलों का आधार बनाने के लिए कुछ वास्तविक सांख्यिकीय साक्ष्य मिल पाएंगे.’


यह भी पढ़ें: वरुण गांधी ने फिर दिखाए तेवर, सरकार से पूछा- ‘सरकारी नौकरी ही नहीं है, कब तक सब्र करे नौजवान’


सर्वेक्षण शुरू

एस-2 सर्वेक्षण पहले ही शुरू कर चुका है, जिसमें विदेशों में भारतीय सह-संस्थापकों द्वारा स्थापित एक निजी कंपनी शामिल है. इसका उद्देश्य ये समझना है कि उन्होंने इसे देश में स्थापित क्यों नहीं किया. ये सर्वे उद्योग प्रायोजित हैं और ऐसे दो शुरुआती सर्वे आईआईएम-कोझिकोड के डॉक्टरेट छात्रों द्वारा किए जा रहे हैं.

अंतरिक्ष उद्योग में अपने नेटवर्क के जरिये टीम को विदेशों में भारतीय न्यूस्पेस कंपनियों को प्रोत्साहित करने और उनकी मदद से विदेशी पूंजी जुटाने और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मौजूदगी दर्ज कराने में मदद मिलने की भी उम्मीद है.

यद्यपि इसरो ने 2020 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) की स्थापना की थी, जो निजी कंपनियों को तेजी से इस क्षेत्र में लाने के लिए बनाई गई नोडल एजेंसी है. लेकिन स्पेस एक्सपर्ट का मानना है कि इस पूरी प्रक्रिया में वित्तीय सहायता और नियमन संबंधी उपयुक्त माहौल का अभाव है जो आउटर-स्पेस गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ा सके या फिर उन्हें मौजूदा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा की स्थिति में ला पाए.

मोहंती ने कहा, ‘हम 2030 तक भारत से कम से कम दो स्पेस यूनिकॉर्न को उभरते देखना चाहते हैं.’

थिंक टैंक एक एस-2 जर्नल लॉन्च करने की भी योजना बना रहा है, जिसे त्रैमासिक आधार पर प्रकाशित किया जाएगा. इसमें ओपिनियन, भविष्य को लेकर नजरिया, उपयोग से जुड़ी जानकारियां और किसी भी सफल पहल के बारे में बताया जाएगा.

संगठन के बारे में जानकारी देने वाला उसका वक्तव्य बताता है कि इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आवाज बनना, स्पेस पॉलिसी के बारे में जानकारी देने वाले निकाय को विकसित करना, विमर्श के जरिये अवधारणा निर्मित करना, पुख्ता डेटा के आधार पर नीतियों की सिफारिश करना और 2030 तक भारत को एक विकसित स्पेस इकोनॉमी में बदलना है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: वायु प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद दिल्ली सरकार ने सभी स्कूलों को किया बंद


 

share & View comments