scorecardresearch
Monday, 4 November, 2024
होमदेशअर्थजगतगुमनाम योगी के निर्देश पर कई सालों तक कैसे चलता रहा NSE

गुमनाम योगी के निर्देश पर कई सालों तक कैसे चलता रहा NSE

एनएसई ने इस मामले में कहा है कि मनोवैज्ञानिकों को शक है कि सीएसओ ही ‘योगी’ है. उसने पहचान बदलकर सीईओ को ठगा और उसका फायदा उठाया.

Text Size:

नई दिल्ली: शीर्ष स्टॉक एक्सचेंज के चीफ एक्जक्यूटिव ऑफिसर, एक गुमनाम ‘योगी’ से सलाह लेकर तीन साल तक फैसला लेती रहीं. सीईओ जिसकी निगरानी में रोजाना 49 करोड़ लेन-देन होता है और औसतन 64,000 करोड़ का टर्नओवर होता है. ‘योगी’ और सीईओ की बातचीत ई-मेल पर ही हुई.

‘योगी’ का कब्जा यहां काम करने वाले एक और अधिकारी पर था जो कभी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में 15 लाख के सालाना पैकेज पर नौकरी करता था. उसे नौ गुना ज्यादा, 1.38 करोड़ रुपये के सालाना पैकेज पर स्टॉक एक्सचेंज का पहला चीफ स्ट्रैटजी ऑफिसर (सीएसओ) बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.

‘योगी’ के निर्देश पर सीईओ ने सीएसओ को प्रमोशन देकर ग्रुप ऑपरेटिंग ऑफिसर (जीओओ) बना दिया. उसके लिए हफ्ते के कामकाजी दिनों को पांच दिन कर दिया गया. साथ ही, काम के पांच दिनों में से उसे दो दिन काम न करने की छूट भी दी गई.

बात यहीं तक खत्म नहीं हुई.

सीईओ ने संवेदनशील व्यावसायिक जानकारी साझा की. इनमें, स्टॉक एक्सचेंज के पांच साल के वित्तीय स्थिति के आकलन, डिविडेंट पे आउट रेशिओ, बिजनेस प्लान, बोर्ड मीटिंग का एजेंडा, कर्मचारियों की रेटिंग और परफॉर्मेंस अप्रैजल पर दी गई सलाह जैसी जानकारी शामिल है.

एनएसई ने इस मामले में कहा है कि मनोवैज्ञानिकों को शक है कि सीएसओ ही ‘योगी’ है. उसने पहचान बदलकर सीईओ को ठगा और उसका फायदा उठाया.

यह ‘ठगी’ चौंकाने वाली है. किसी पिक्चर की ऐसी स्क्रिप्ट भी बेहद मजाकिया लगती. लेकिन, यह कोई कहानी नहीं है. यह सच नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का है. भारत का शीर्ष शेयर एक्सचेंज, जिसका उदेश्य, ‘भारत के विकास को गति देने के लिए निवेश के अवसरों को बढ़ाना, स्टेकहोल्डर को सुविधाएं देना और उन्हें सशक्त बनाना है.’

सीईओ जिसपर सवाल उठ रहे हैं उनका नाम है चित्रा रामकृष्ण. उसने जिसे सीएसओ नियुक्त किया और बाद में जिसे प्रमोट किया गया उनका नाम है- आनंद सुब्रमण्यम.

आरोप है कि सुब्रमण्यम ही ‘योगी’ है.

साल 2013 और 2016 के बीच रामकृष्ण एनएसई की सीईओ थी. इस दौरान उन्होंने ‘योगी’ के निर्देश पर कारोबारी फैसले लिए और संवेदनशील और गोपनीय जानकारी उसके साथ साझा की. बाजार नियामक संस्था सिक्यूरिटिज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) की छह साल की जांच के बाद यह खुलासा हुआ है. एनएसई में कुशासन और गैरकानूनी कामों की शिकायत मिलने के बाद, सेबी ने जांच शुरू की थी. शुक्रवार को सेबी ने रामकृष्ण पर तीन करोड़ और सुब्रमण्यम पर तीन करोड़ का जुर्माना लगाया.

सेबी ने इस बात की संभावनाओं से इनकार किया है कि सुब्रमण्यम ही ‘योगी’ है. नियामक संस्था ने अपने आदेश में कहा है कि पूर्व जीओओ भी एक्सचेंज में गैरकानूनी कामों में पक्के तौर पर साझेदार रहा है.

रामकृष्ण ने कहा, ‘जैसा कि हम सभी जानते हैं कि शीर्ष नेतृत्व अक्सर गैर आधिकारिक तरीके से कोच, मेंटॉर और इस क्षेत्र के दूसरे वरिष्ठ साथियों से सलाह लेते हैं. यह पूरी तरह से गैर आधिकारिक होता है. मेरे मामले में भी इसे ऐसे ही देखना चाहिए. मुझे लगता है कि इस मार्गदर्शन से मुझे अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से निभाने में मदद मिली.’


यह भी पढ़ें: इंदिरा गांधी के ‘हिंदू धर्म खतरे में’ से लेकर कर्नाटक का हिजाब विवाद- यही तो जिहादी चाहते हैं


एनएसई में क्या हुआ

शुक्रवार को सेबी ने इस मामले में 190 पेजों का आदेश जारी किया है. इसके मुताबिक, एनएसई सीईओ और एमडी चित्रा रामकृष्ण ने आनंद सुब्रमण्यम को साल 2013 में नौ गुणा ज्यादा, 1.38 करोड़ रुपये के सालाना पैकेज पर सीएसओ बनाया था. आनंद सुब्रमण्यम इससे पहले सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बालमर लॉरी में 15 लाख के पैकेज पर नौकरी करते थे. सुब्रमण्यम की नियुक्ति से पहले यह पद था ही नहीं. इतना ही नहीं वह इस पद के योग्य भी नहीं थे.

तीन सालों में रामकृष्ण उसे लगातार प्रमोशन देती रही और सुब्रमण्यम जीओओ बन गए. रामकृष्ण ने सुब्रमण्यम को हफ्ते में पांच दिन काम करने की छूट दी थी. इसमें भी वह दो दिन अपने हिसाब से तय कर सकते थे कि उन्हें काम करना है या नहीं. सुब्रमण्यम, रामकृष्ण का सलाहकार भी था.

रामकृष्ण की ओर से दी गई सफाई में कहा गया है कि ये सभी निर्णय उस अज्ञात ‘योगी’ के निर्देश पर लिए गए. रामकृष्ण ने ‘योगी’ को सिद्ध पुरुष कहा है.

उन्होंने कहा कि ‘योगी’ का कोई भौतिक शरीर नहीं है. वह एक आध्यात्मिक शक्ति थी, जो अपनी इच्छानुसार कहीं भी प्रकट हो सकती थी और हिमालय पर रहती है.

सेबी ने अपने आदेश में कहा है कि रामकृष्ण ने मेल आईडी rigyajursama@outlook.com पर एनएसई की संवेदनशील और गोपनीय जानकारी शेयर की.

रामकृष्ण ने सभी फैसले 2013 से 2016 के बीच के सालों में लिए. सुब्रमण्यम की नियुक्ति में अनिमितता की शिकायत मिलने के बाद सेबी ने जांच शुरू की थी जिसके बाद सेबी ने रामकृष्ण सहित मामले से जुड़े लोगों से साक्ष्य इकट्ठा करना शुरू किया.


यह भी पढ़ें: पिछले एक दशक में जनता ताकतवर, जनतंत्र रंगीन हुआ है


एनएसई का दावा, सुब्रमण्यम ही ‘योगी’ था

एनएसई ने 2018 में सेबी को लिखे अपने पत्र में कहा था, ‘उसके कानूनी सलाहकारों ने मानव मनोविज्ञान पर काम करने वालों से संपर्क किया था. इन मनोविज्ञानियों का मत था कि रामकृष्ण का शोषण सुब्रमण्यम ने ऋग्याजुरसमा के नाम से एक अलग पहचान बनाकर किया है, ताकि वह अपने मन के मुताबिक उनसे काम करा सके.’

आदेश में कहा गया है, ‘रामकृष्णा से इसी आदमी ने पहचान बदल-बदल कर धोखाधड़ी की. पहले वह सुब्रमण्यम के नाम से उसका विश्वासपात्र बना और दूसरे रूप में वह ऋग्याजुरसमा था जिसकी वह भक्ति करती थी और फैसले के लिए निर्भर थी.’

एनएसई का दावा है कि जिस ई-मेल आईडी की चर्चा ऊपर गई है, वह वास्तव में सुब्रमण्यम की थी. इस दावे का आधार यह था कि सुब्रमण्यम इस अनजान आदमी को 22 वर्षों से जानता था. साथ ही, वह सीईओ और ‘योगी’ के बीच हुए सभी ई-मेल को पढ़ता था. सेबी के आदेश में कई ई-मेल को शामिल किया गया है, उसमें वह ई-मेल भी शामिल है जहां ‘योगी’ रामकृष्ण को सुब्रमण्यम को पांच दिन के कामकाजी दिनों में छूट देने का निर्देश दे रहा है.

एक अन्य ई-मेल में रामकृष्ण का निर्देश थाः ‘एसओएम, अगर मुझे धरती पर मनुष्य बनने का अवसर मिलता तो कंचन सबसे उपयुक्त रहती. आशीर्वादम.’

रामकृष्ण का जवाब थाः ‘सिरोमणि, संघर्ष को मैंने हमेशा ‘जी’ के माध्यम से देखा है, और अपने आप को इस अंतर को महसूस करने की चुनौती दी है.’

सेबी ने अपने आदेश में कहा है कि ‘एसओएम’ का मतलब यहां रामकृष्णा और ‘कंचन’ से और ‘जी’ का मतलब सुब्रमण्यम से है.

आदेश के मुताबिक, ‘रामकृष्ण ने जिस अजनबी आदमी को ई-मेल भेजे थे उसमें स्टॉक एक्सचेंज के पांच साल के वित्तीय स्थिति के आकलन, डिविडेंट पे आउट रेशिओ, बिजनेस प्लान, बोर्ड मीटिंग का एजेंडा, कर्मचारियों की रेटिंग और परफॉर्मेंस अप्रैजल पर दी गई सलाह जैसी जानकारी शामिल है.’

अन्य ई-मेल की जांच के दौरान यह भी पता चला कि यह गुमनाम ‘योगी’, रामकृष्ण के लगातार संपर्क में था. यह एनएसई के वरिष्ठ कर्मचारियों के कामकाज संबंधी मुद्दों पर भी चर्चाएं करता था.


यह भी पढ़ें: आक्रामकता, हिंदुत्व पॉलिटिक्स की नींव में छिपा है BJP की ‘मोदी लहर’ का सच, विपक्ष के पास क्या है इसकी काट


पहले भी विवादों में घिर चुका है एनएसई

ऐसा पहली बार नहीं है कि एनएसई पर कॉर्पोरेट गवर्नेंस में चूक के आरोप लगे हों.

साल 2017 में एक्सचेंज ने एक आईपीओ लॉन्च करना चाहा लेकिन इसमें हुई गड़बड़ी की वजह से कुछ खास कारोबारियों को लाभ मिला.

आनंद नारायण सुरक्षा विशेषज्ञ हैं और एक बड़े निजी फर्म में इन-हाउस काउंसल हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘एनएसई और इसके बड़े अधिकारियों के खिलाफ सेबी का आदेश दिखाता है कि देश का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज इतने बड़े कुशासन से जूझ रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘नेशनल स्टॉक एक्सचेंज चाहे तो सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल में इस आदेश को चुनौती दे सकता है. हालांकि, सेबी के एनएसई के खिलाफ कार्रवाई ने फिर एक बार निवेशकों के हितों को सुरक्षित रखने की मजबूत इच्छाशक्ति दिखाई है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: संसदीय समिति का सुझाव, 10वीं कक्षा तक आर्ट एजुकेशन अनिवार्य हो, ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ से मुक्त होना जरूरी


 

share & View comments