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Sunday, 3 November, 2024
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महिलाओं के स्वास्थ्य लाभ के मद्देनज़र शादी की उम्र 21 की जाए- मोदी सरकार के टास्क फोर्स की सिफारिश

जया जेटली और नीति आयोग के वीके पॉल की आगुवाई वाले पैनल का कहना है कि राज्यों को प्रस्ताव लागू करने के लिए समय दिया जाना चाहिए और सहमति की आयु 18 वर्ष ही रहनी चाहिए.

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नई दिल्ली: पिछले वर्ष नरेंद्र मेदी सरकार ने महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाने के प्रस्ताव की जांच के लिए, जो टास्क फोर्ट गठित की थी, उसने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है और दिप्रिंट को पता चला है कि उसने इस आयु को 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की सिफारिश की है.

सरकार में उच्चपदस्थ सूत्रों के अनुसार, पूर्व समता पार्टी प्रमुख जया जेटली और नीति आयोग सदस्य (स्वास्थ्य) वीके पॉल की अगुवाई वाली टास्क फोर्स ने पिछले महीने अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय और महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय (डब्लूसीडी) को सौंप दी है.

नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘रिपोर्ट में आयु को बढ़ाकर, 18 से 21 वर्ष करने की सिफारिश की गई है लेकिन एक चरणबद्ध तरीके से’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इसका मतलब है कि राज्यों को ऐसे कानून बनाने की खातिर ज़मीनी काम करने के लिए पर्याप्त स्पेस, और समय दिया जाना चाहिए क्योंकि इसे रातों रात नहीं किया जा सकता’.

पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर, पीएम मोदी ने कहा था कि कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए, सरकार लड़कियों की शादी की उम्र पर फिर से गौर कर सकती है. उन्होंने कहा था, ‘हमने एक कमेटी का गठन किया है, जो ये सुनिश्चित करेगी कि बेटियां अब कुपोषण का शिकार न हों और उनकी शादी सही समय पर हो. जैसे ही कमेटी की रिपोर्ट सामने आएगी, बेटियों की शादी की उम्र के बारे में, उचित फैसले लिए जाएंगे’.

पिछले हफ्ते जून में गठित की गई टास्क फोर्स में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, महिला व बाल विकास (डब्लूसीडी), उच्च शिक्षा, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता मंत्रालयों के सचिव और कानून एवं न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग के पदाधिकारी शामिल थे. टास्क फोर्स के अन्य सदस्य थे, जामिया मिल्लिया इस्लामिया की वाइस चांसलर नजमा अख़तर, एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय, मुंबई की पूर्व वीसी वसुधा कामथ और गुजरात स्थित गाइनीकॉलोजिस्ट डॉ दीप्ति शाह.

दिप्रिंट ने टास्क फोर्स के संयुक्त प्रमुखों, जया जेटली और वीके पॉल, तथा उनके अलावा दूसरे सभी सदस्यों से उनकी टिप्पणी लेने के लिए संपर्क किया. जहां जेटली ने केवल इतना कहा कि रिपोर्ट को जारी करना सरकार का विशेषाधिकार है, वहीं पॉल ने कॉल्स और लिखित संदेशों का कोई जवाब नहीं दिया. दूसरे सदस्यों ने भी कॉल्स, लिखित संदेशों, अथवा ईमेल्स का कोई जवाब नहीं दिया.


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पहली डिलीवरी 21 साल में होनी चाहिए

सूत्रों के मुताबिक, टास्क फोर्स ने कहा है कि पहले बच्चे के जन्म के समय, महिला की उम्र 21 वर्ष होनी चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात के सबूत हैं कि शादी में देरी से परिवारों, महिलाओं, बच्चों और कुल समाज पर सकारात्मक आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य प्रभाव होते हैं.

इसके अलावा, रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि स्टडीज़- जिसके सबूत 50 से अधिक कम तथा मध्यम आय वाले देशों से जुटाए गए, जिनमें पहले बच्चे के जन्म के समय, शिशु मृत्यु दर, शिशुओं में मानवजनित विफलता, दस्त व खून की कमी को मां की आयु से जोड़ कर देखा गया- से पता चलता है कि ये सब जोखिम 21 की उम्र के बाद कम हो जाते हैं.

शिशु के खराब स्वास्थ्य का जोखिम, उन महिलाओं में सबसे कम रहता है जिनके यहां पहला बच्चा 27 से 29 वर्ष की उम्र में होता है लेकिन व्यापक रूप से मां बनने की आदर्श आयु 21 से 35 वर्ष के बीच होती है.

रिपोर्ट की ये सबसे प्रमुख सिफारिश है, चूंकि टास्क फोर्स के ऊपर सबसे बड़ा ज़िम्मा यही था कि शादी और मां बनने की उम्र और स्वास्थ्य, अच्छी चिकित्सा, गर्भावस्था के दौरान मां-बच्चे के पोषण स्तर तथा जन्म के बीच संबंध की जांच करे.


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सहमति की उम्र बढ़ाने की ज़रूरत नहीं

विवाह की आयु से जुड़ी बहस में एक बड़ा मुद्दा ये है कि क्या इससे सहमति की आयु को लेकर, कोई भ्रम की स्थिति पैदा होगी, जो 18 वर्ष है. सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि टास्क फोर्स ने इस बात की सिफारिश नहीं की है कि सहमति की आयु बढ़ाई जानी चाहिए.

रिपोर्ट की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने कहा, ‘टास्क फोर्स ने कहा है कि सेक्स पर कोई आलोचनात्मक नज़रिया अपनाने की बजाय, सेक्स काउंसलिंग और सेक्स शिक्षा पर फोकस होना चाहिए’.

18 वर्ष से कम आयु की शादियों को, डिफॉल्ट रूप से निरस्त किए जाने को लेकर टास्क फोर्स ने कहा कि 21 वर्ष से कम उम्र में हुई शादियों को तुरंत निरस्त नहीं किया जाना चाहिए. ऊपर हवाला दिए गए पहले अधिकारी ने कहा, ‘ये अपेक्षा नहीं की जा सकती कि एक कानून लाते ही सामाजिक दृष्टिकोण तुरंत बदल जाएगा. इस पर काम करने के लिए राज्यों को समय दिए जाने की ज़रूरत है’.

फिलहाल, बाल विवाह अमान्यकरणीय हैं, वो अपने आप निरस्त नहीं होते- ऐसी शादियां तब तक निरस्त नहीं मानी जातीं, जब तक उनमें शामिल साझीदार उसे चुनौती न दे दें. केंद्र सरकार एक प्रस्ताव पर काम कर रही है जिसके तहत सभी बाल विवाह निरस्त करार दे दिए जाएंगे.

इसके अलावा, टास्क फोर्स ने सिफारिश की है कि बाल विवाहों को निरस्त घोषित करने से पहले, कर्नाटक मॉडल का बारीकी से अध्ययन किया जाना चाहिए. 2017 में, कर्नाटक सरकार ने बाल विवाह निषेध (कर्नाटक संशोधन) अधिनियम, 2016 पारित कर दिया जिसमें नाबालिगों के बीच हुई तमाम शादियों को आरंभ से ही निरस्त घोषित कर दिया गया.


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पिछली बहसें

2019 में दिप्रिंट ने खबर दी थी कि डब्ल्यूसीडी मंत्रालय एक प्रस्ताव पर विचार कर रहा था जिसमें बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (पीसीएमए) 2006 के तहत, शादी के लिए महिला और पुरुष दोनों की न्यूनतम आयु को एक समान करके, 18 वर्ष कर दिया जाना चाहिए.

इसी तरह, 2008 में विधि आयोग ने लड़का-लड़की दोनों की शादी की एक समान उम्र 18 करने की सिफारिश की थी, 21 नहीं.

2018 में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सिफारिश की थी कि लड़का और लड़की दोनों के लिए शादी की उम्र एक ही होनी चाहिए.

लड़कों की शादी की उम्र 21 से घटाकर 18 वर्ष करने के पीछे तर्क ये था कि कानूनी रूप से वयस्क होने की उम्र 18 होती है और इस उम्र में व्यक्ति को वोट दोने की अनुमति भी मिल जाती है. ऐसा माना गया है कि पुरुषों की शादी की उम्र को 21 से घटाकर 18 वर्ष करने से पुरुषों और महिलाओं की शादी की उम्र एक समान करने का मकसद भी पूरा हो जाएगा.

बल्कि, इस टास्क फोर्स से पहले सरकार द्वारा बनाई गई एक उप-समिति ने कहा था कि बहुमत का विचार ये था कि शादी की उम्र को न बढ़ाया जाए और कन्या पर उनके सामाजिक प्रभाव की जांच किए बिना, पीसीएम एक्ट में कोई बदलाव न किए जाएं.

विधायी विभाग के सचिव की अगुवाई वाली उप-समिति ने कहा था कि ऐसे किसी भी कदम के सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव का अवश्य अध्ययन किया जाना चाहिए.

सूत्रों ने कहा कि सरकार द्वारा नियुक्त टास्क फोर्स ने, हालांकि इन सवालों की जांच तो की है लेकिन 21 की उम्र के बाद प्रजनन के, स्वास्थ्य संबंधी फायदों को देखते हुए उसने आयु को घटाने की नहीं बल्कि बढ़ाने की सिफारिश की है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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