(जी.मंजू साईनाथ)
बेंगलुरु, 18 अप्रैल (कर्नाटक) कर्नाटक के हक्की-पिक्की आदिवासी समुदाय के 31 लोग गृहयुद्ध से जूझ रहे अफ्रीकी देश सूडान में फंस गए हैं। ऐसे में कई लोगों के दिमाग में यह सवाल उठ रहा है कि गरीबी से घिरे आदिवासी समुदाय के लोग इतनी दूर अफ्रीकी देश कैसे पहुंच गए।
सूडान में सत्तारूढ़ सैन्य शासन के दो गुटों में ही लड़ाई शुरू हो गई है और वे देश पर नियंत्रण हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
एक अधिकारी ने बताया कि युद्ध की वजह से अपेक्षाकृत पारंपरिक सस्ते इलाज की मांग बढ़ गई है क्योंकि सूडान के लोग महंगी ‘एलोपैथी’ दवाएं वहन नहीं कर सकते हैं।
राज्य सरकार के एक अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘ आधुनिक चिकित्सा पद्धति सूड़ान के अधिकतर लोगों के लिए या तो अनुपलब्ध है या तो उनकी पहुंच से दूर है। ऐसे में लोग वैकल्पिक चिकित्सा की ओर रुख कर रहे हैं जो सस्ती होने के साथ-साथ प्रभावी भी है। ऐसे में हक्की-पिक्की आदिवासियों को अवसर प्राप्त हुआ और वे वहां पहुंच गए।’’
कर्नाटक राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (केएसडीएमए) के आयुक्त मनोज राजन ने कहा, ‘‘हमें कर्नाटक के रहने वाले 31 लोगों के सूड़ान में फंसे होने की जानकारी मिली है। हमने इसकी सूचना विदेश मंत्रालय को दी है।’’ उन्होंने बताया कि उनके विभाग ने फंसे हुए लोगों से कहा है कि वे सूडान में मौजूद भारतीय दूतावास के निर्देशों का अनुपालन करें।
राजन ने यहां जारी बयान में कहा, ‘‘फिलहाल जो लोग फंसे हैं वे जहां हैं, वहीं रहें और बाहर नहीं निकलें। विदेश मंत्रालय को मामले की जानकारी दी गई है और वह इस मुद्दे पर काम कर रहा है।’’
उन्होंने बताया कि फंसे हुए हक्की-पिक्की समुदाय के लोगों में पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल हैं।
राजन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘यह अब भी जांच का विषय है कि कैसे वे वहां तक पहुंचे लेकिन हमे जानकारी मिली है कि वे लोगों को आयुर्वेदिक दवाएं बेचते हैं।’’
केएसडीएमए आयुक्त ने कहा कि ये लोग भारत से इलाज में इस्तेमाल जड़ी-बूटियां और अन्य दवाएं लेकर वहां पर लोगों को बेचते हैं।
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि यह रहस्य है कि कैसे गरीबी में जीवन यापन करने वाले हक्की-पिक्की समुदाय के लोग भारत से इतनी दूर विशाल हिंद महासागर को पार कर अफ्रीका तक पहुंचे। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि उनके वापस आने के बाद पूरे मामले की जांच की जानी चाहिए।
एक अधिकारी ने बताया कि कर्नाटक में हक्की-पिक्की समुदाय के लोग अपनी पांरपरिक दवाओं के लिए जाने जाते हैं। यह आदिवासी समुदाय जंगलों के भीतर रहता है और उन्होंने खुद पौधों व जड़ी-बूटियों के आधार पर अपनी चिकित्सा प्रणाली विकसित की है। उन्होंने बताया कि कर्नाटक के शहरी इलाकों के लोग भी उनकी दवाओं पर विश्वास करते हैं।
अर्ध घुमंतू आदिवासी हक्की-पिक्की समुदाय चिड़ियों को पकड़ने वाला समुदाय है और गुजराती के समान अपनी बोली वगरीबूली के साथ-साथ कन्नड, तेलुगू, तमिल और मलयालम भाषा बोलते हैं। ऐसा माना जाता है कि उनके पूर्वज गुजरात से थे और पूर्व में हुए हमलों के बाद दक्षिण भारत में पलायन किया।
ईसाई मिशनरियों की जोशुआ योजना में भी इन आदिवासियों में रुचि दिखाई।
पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धरमैया ने सिलसिलेवार कई ट्वीट कर कहा कि एक भारतीय की सूडान में मौत हुई है और 31 हक्की-पिक्की समुदाय के लोगों सहित करीब 60 भारतीय वहां फंसे हुए हैं।
उन्होंने सिलसिलेवार कई ट्वीट कर भारत सरकार को मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की ताकि फंसे हुए इन लोगों को स्वदेश लाया जा सके।
सिद्धरमैया ने ट्वीट किया, ‘‘जानकारी मिली है कि कर्नाटक के हक्की-पिक्की आदिवासी समूह के 31 लोग सूड़ान में फंस गए हैं जहां पर गृह युद्ध जारी है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री, विदेशमंत्री और मुख्यमंत्री बसावराज बोम्मई से अपील करूंगा कि वे तत्काल हस्तक्षेप करें और उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करें।’’
सिद्धरमैया ने आरोप लगाया कि हक्की-पक्की आदिवासी समूह के लोग सूडान में फंसे हैं और कई दिनों से बिना भोजन के हैं लेकिन सरकार ने अबतक उन्हें वापस लाने की पहल नहीं की हैं।
उन्होंने केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार से तुरंत राजनयिक स्तर पर चर्चा करने और इन हक्की-पिक्की आदिवासियों की वापसी सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों तक पहुंचने की मांग की।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, शनिवार को लड़ाई शुरू होने के बाद से अब तक 185 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 1,800 से अधिक घायल हुए हैं।
गौरतलब है कि सूडान में दो गुटों के बीच भीषण लड़ाई चल रही है और दोनों पक्ष तोपखानों, भारी गोलाबारूद और लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
भाषा धीरज पवनेश
पवनेश
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