हैदराबाद: तिरुपति शहर से तिरुमाला के पहाड़ी पर स्थित मंदिर की यात्रा पर निकलने वाले भक्तों को अब तेंदुए के हमलों से बचने के लिए मजबूत लाठियां दी जा रही हैं.
पहाड़ी, जंगली इलाके से गुज़रने वाले 11 किलोमीटर के पैदल रास्ते पर तेंदुओं की बढ़ती संख्या और पिछले महीने बच्चों पर दो हमलों के प्रकरण, जिसमें दूसरे हमले में छह साल की लड़की की मौत हो गई थी, के बाद तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) इस विचार को लेकर आया.
टीटीडी के मुख्य सतर्कता और सुरक्षा अधिकारी डी.एन. किशोर ने दिप्रिंट को बताया, “तेंदुए के हमलों से पैदा हुए डर को देखते हुए, समूहों में चलने के अलावा, हाथ में लाठी, भक्तों को आत्मविश्वास प्रदान करेगी. अगर किसी जंगली जानवर से उनका सामना होता है, तो वो सामूहिक रूप से प्रतिक्रिया कर सकते हैं और उसे डरा सकते हैं.”
टीटीडी ने 10,000 लाठियां खरीदी हैं, जो अलीपिरी पडाला मंडपम में भक्तों को दी जा रही हैं और श्री नरसिम्हा स्वामी मंदिर पहुंचने पर वापस ले ली जाएंगी. फिर इन्हें बारी-बारी से पैदल चलने वाले श्रद्धालुओं को सौंप दिया जाएगा.
इसके अलावा, 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों वाले श्रद्धालुओं का अब दोपहर 2 बजे के बाद ट्रेक पर जाना प्रतिबंधित है.
अधिकारियों ने बताया कि शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक ऊपर और नीचे घाट रोड पर दोपहिया वाहनों की आवाजाही भी रोक दी जा रही है.
जून में 3 साल के लड़के पर तेंदुए के हमले के बाद से आंध्र प्रदेश वन विभाग ने सीढ़ीदार रास्ते के पास जाल लगाया है और अब तक पांच तेंदुओं को पकड़ा है, जिसमें सबसे हालिया को बुधवार की रात को पकड़ा गया है.
वन अधिकारियों ने यह पुष्टि करने के लिए डीएनए विश्लेषण के लिए नमूने भेजे हैं कि क्या पकड़े गए तेंदुओं में वो तेंदुआ भी शामिल है जिसने 11 अगस्त को लड़की को मार डाला था. उन्होंने यह भी पाया कि घने हरे जंगलों में कुछ और जंगली बिल्लियां घूम रही हैं.
तिरुमाला मंदिर समृद्ध शेषचलम जंगल के बीच स्थित है, जो लाल चंदन के पेड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है. ब्लॉकबस्टर अल्लू अर्जुन स्टारर फिल्म ‘पुष्पा’ की कहानी शेषचलम जंगल पर केंद्रित है.
जबकि अलीपिरी प्रवेश बिंदु (तिरुपति) से तिरुमाला तक पैदल मार्ग की दूरी 11 किमी है, तेंदुए के हमले का खतरा क्षेत्र नरसिम्हा स्वामी मंदिर तक, बीच में लगभग तीन किमी तक फैला हुआ है. एक स्वस्थ वयस्क को पूरी दूरी तय करने में लगभग दो से ढाई घंटे लगते हैं.
टीटीडी के अध्यक्ष भुमना करुणाकर रेड्डी ने बुधवार शाम को पैदल तिरुमाला जाने वाले तीर्थयात्रियों को लाठियों का वितरण शुरू किया.
सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग के जवाब में भुमना ने संवाददाताओं से कहा, “पुराने समय में तीर्थयात्री डाकुओं से सुरक्षा के उपाय के रूप में और जंगली जानवरों को डराने के लिए घने जंगलों को पार करते समय लाठी लेकर चलते थे. प्रावधान जंगली जानवरों के साथ लड़ाई में शामिल होने का नहीं है.”
हमलों के बाद से तीर्थयात्रियों को सुरक्षा गार्डों और कम दूरी पर तैनात पुलिस कर्मियों के साथ बड़े समूहों में भेजा जा रहा है. वन विभाग ने मार्ग में जंगली जानवरों की आशंका वाले स्थानों पर 100 कर्मचारी भी तैनात किए हैं. सार्वजनिक संबोधन प्रणालियों पर निरंतर रिले के अलावा, भक्तों को तेंदुए और भालू जैसे जंगली जानवरों को दूर रखने के लिए जोर से ‘गोविंदा नामम’ का जाप करने के लिए भी कहा जाता है.
जंगली जानवरों की गतिविधियों की पहचान करने के लिए लगभग 500 ट्रैप कैमरे लगाए गए हैं. अधिकारियों ने कहा कि उन्हें गहरे जंगलों में ले जाया जा रहा है, उन्होंने पैदल मार्ग के किनारे फलों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया है क्योंकि कई भक्त उन्हें हिरणों और बंदरों को चढ़ाते हैं, जिससे मांसाहारी शिकार के लिए पैदल मार्ग की ओर आकर्षित होते हैं.
भुमना ने कहा, तेंदुओं को पकड़ने के लिए ऑपरेशन चिरुथा, अन्य सभी सुरक्षा उपायों के साथ, पूरे साल लागू किया जाएगा.
चूंकि, पैदल मार्ग एक आरक्षित वन में है, टीटीडी अधिकारियों ने अलीपिरी फुटपाथ मार्ग पर स्टील की बाड़ लगाने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान और केंद्रीय वन मंत्रालय को डिजाइन के साथ एक प्रस्ताव भेजा है.
विश्राम स्थलों, शौचालयों, छत पर आश्रयों जैसी तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के साथ, रिलायंस इंडस्ट्रीज के 25 करोड़ रुपये के दान से पूरा किया गया पुनर्निर्मित सीढ़ीदार पैदल मार्ग का उद्घाटन अक्टूबर 2021 में किया गया था.
प्रतिदिन औसतन, लगभग 20,000 तीर्थयात्री, जिनमें से अधिकांश भगवान वेंकटेश्वर के पास अपनी मन्नत पूरी करने के लिए आते हैं, अच्छी तरह से बनाए गए पत्थर के फुटपाथों से जाते हैं, जिन्हें सोपानमार्ग के रूप में जाना जाता है, जो तिरुमाला की ओर जाते हैं. श्रीवारी मेट्टु, दूसरा खड़ा फुटपाथ, जो कि कुछ किमी दूर है.
टीटीडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “त्योहारों के अवसरों पर तिरुमाला जाने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या दोगुनी होकर 40,000 हो जाती है. इन भक्तों को दिव्यदर्शनम के लिए मुफ्त टोकन दिए जाते हैं, जिसमें मंदिर में सर्वदर्शनम कतार की तुलना में कम समय लगता है. उनका सामान भी मुफ्त ले जाया जाता है.”
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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