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Monday, 23 December, 2024
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रूस-यूक्रेन पर क्या रुख अपनाएगा भारत? इंडो-पैसिफिक फोरम में दबाव बढ़ने के हैं आसार

विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत-प्रशांत सहयोग संबंधी मंत्रिस्तरीय फोरम में हिस्सा लेने के लिए इस समय पेरिस में हैं. इसमें यूरोपीय संघ और 30 अन्य देशों के विदेश मंत्री भाग ले रहे हैं.

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नई दिल्ली: भारत-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग संबंधी मंत्रिस्तरीय फोरम की मंगलवार को पेरिस में बैठक होने वाली है. जिसके दौरान भारत पर यूरोपीय देशों का दबाव बढ़ने के आसार हैं. इसका कारण यह सवाल है कि रूस और यूक्रेन के बीच गहराते संकट पर नई दिल्ली क्या रुख अपनाएगा.

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सोमवार को पूर्वी यूक्रेन में दो अलग-अलग क्षेत्रों को स्वतंत्र रूप से मान्यता देने के बाद सैनिकों की तैनाती का आदेश दे दिया है.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर, जो इस समय पेरिस के दौरे पर हैं, वह मंगलवार को मंत्रिस्तरीय मंच में हिस्सा लेंगे, जिसमें यूरोपीय संघ के सभी देशों के साथ इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के 30 देशों के विदेश मंत्री मौजूद रहेंगे.

इस साल यूरोपीय संघ की अध्यक्षता कर रहे फ्रांस द्वारा मास्को और कीव के बीच तनाव खत्म कराने के सक्रिय प्रयास किए जा रहे हैं, यहां तक कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच एक शिखर बैठक भी बुलाई थी, लेकिन क्रेमलिन ने सोमवार को यह प्रस्ताव ठुकरा दिया.

यूक्रेन की मौजूदा स्थिति उन प्रमुख मुद्दों में से एक है, जिन पर जयशंकर ने सोमवार को अपने फ्रांसीसी समकक्ष जीन-यवेस ले ड्रियन के साथ द्विपक्षीय बैठक के दौरान चर्चा की थी.

जयशंकर ने सोमवार को एक ट्वीट कर बताया, ‘पेरिस पहुंच गया हूं. विदेश मंत्री ड्रियन के साथ व्यापक और उपयोगी बातचीत हुई. द्विपक्षीय सहयोग, यूक्रेन की स्थिति, इंडो-पैसिफिक और जेसीपीओए पर चर्चा हमारे परस्पर गहरे भरोसे और वैश्विक साझेदारी को दर्शाती है. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर यूरोपीय संघ के मंत्रिस्तरीय फोरम में हिस्सा लेने का इंतजार है.’

सोमवार को ही बाद में जयशंकर ने फ्रांस के रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली से भी मुलाकात की.

उम्मीद है कि जयशंकर रूस-यूक्रेन के बीच गहराते संकट पर भारत का रुख स्पष्ट करेंगे. राजनयिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी गतिरोध के बीच भारत पड़ोसी देश चीन के खिलाफ समर्थन जुटाने की कोशिश भी करेगा.

सूत्रों ने यह भी कहा कि मंत्रिस्तरीय फोरम, जो कि इन देशों का अपनी तरह का पहला जमावड़ा है, ब्लू इकोनॉमी और महासागरीय शासन पर संयुक्त रोडमैप अपनाकर इसके जरिये चीन को एक तरह से कुछ ‘कड़े संकेत’ देने की कोशिश करेगा, जो ‘भारत के पक्ष में कारगर रहेगा.’

यूक्रेन संकट चीन की बढ़ती दादागीरी जैसा?

सूत्रों के मुताबिक, यूरोपीय संघ यूरोप संकट को हिंद-प्रशांत देशों के बढ़ती दादागीरी से अलग नहीं देखता. इसलिए, यह चाहता है कि भारत जैसे देश यूक्रेन संकट पर कुछ ‘स्टैंड’ लें, जो उसकी नजर में हाल के दिनों में यूरोप के समक्ष सबसे बड़े संकटों में से एक है.

यूरोपीय संघ के एक राजनयिक ने कहा, ‘नई दिल्ली को यूक्रेन की सीमाओं पर रूस के सैनिकों के जमा होने के संबंध में अपनी सभी चिंताओं से अवगत करा दिया गया है.’

राजनयिक ने कहा कि यूरोपीय संघ का मानना है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के ‘एक समान विचारधारा वाले’ भागीदार के तौर पर भारत को ‘वैश्विक नियमों पर आधारित प्रणाली, जो सभी के हित में हो’ पर जोर देते हुए रूस के खिलाफ कुछ स्टैंड लेना होगा. साथ ही इस तथ्य की ओर ध्यान आकृष्ट किया कि भारत को भी चीन के खिलाफ यूरोपीय देशों के समर्थन की आवश्यकता होगी.

हालांकि, जयशंकर शनिवार को म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में दोनों के बीच किसी तरह की समानता से इनकार कर चुके हैं. विदेश मंत्री ने कहा, ‘मुझे न तो यह लगता कि इंडो-पैसिफिक और ट्रांसअटलांटिक में स्थितियां वास्तव में एक जैसी हैं और न ही यह धारणा सही है…कि किसी तरह की दुविधा है और प्रशांत क्षेत्र में एक देश ऐसा कर रहा, इसलिए बदले में आप भी कुछ करें. मुझे नहीं लगता कि अंतरराष्ट्रीय संबंध इस तरह चलते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है, हमारी चुनौतियां काफी अलग तरह की हैं—यहां क्या हो रहा है, इंडो पैसिफिक में क्या हो रहा है.’

पिछले गुरुवार को यूक्रेन संकट पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टी.एस. तिरुमूर्ति ने कहा था कि मामले का राजनयिक समाधान निकाला जाना चाहिए. तिरुमूर्ति ने कहा था, ‘अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के व्यापक हित में सभी पक्षों को तनाव बढ़ाने वाले किसी भी कदम से बचना चाहिए. शांत और रचनात्मक कूटनीति समय की जरूरत है.’

पिछले हफ्ते, फ्रांस और जर्मनी ने एक साझे बयान में कहा था, ‘हाल के दिनों में सीमा रेखा पर संघर्ष विराम उल्लंघन बढ़ना अत्यधिक चिंताजनक है. हम भारी हथियारों के इस्तेमाल और नागरिक क्षेत्रों की अंधाधुंध गोलाबारी की निंदा करते हैं, जो स्पष्ट तौर पर मिन्स्क समझौते का उल्लंघन है…हम यूक्रेन और उसके आसपास रूस के सशस्त्र बलों के बड़े जमावड़े पर गंभीर चिंता जताते हैं और रूस से आह्वान करते हैं कि वह यूक्रेन की सीमाओं के पास से सैन्य बलों को वापस बुलाकर तनाव को कम करे.’

पूर्व राजनयिक और इंडो-पैसिफिक मामलों के विशेषज्ञ राजीव भाटिया के मुताबिक, ‘यूक्रेन के मामले में यूरोपीय संघ भारत से सहानुभूति रखने की अपेक्षा कर सकता है, लेकिन समर्थन जुटाने के लिए दबाव डालने का कोई फायदा नहीं होगा.’

भाटिया ने कहा, ‘इंडो-पैसिफिक विचार-विमर्श में प्रमुख मुद्दा चीन की चुनौती से निपटने के लिए यूरोपीय संघ की भूमिका बढ़ाने पर जोर देने का है. यदि एक पक्ष को लेकर कोई प्रगति होती है, तो यूरोपीय संघ कह सकता है कि वह सार्वजनिक स्तर पर यही चाहता है. लेकिन यूरोपीय संघ अगर बीजिंग के प्रति मुखर होने का साहस नहीं जुटा पाया और यूरोपीय देशों पर केंद्रित रहा, तो भारत और अन्य क्वाड देश (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) अपना अलग रुख रखने के लिए स्वतंत्र होंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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