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Friday, 22 November, 2024
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शिकायतकर्ता ने सीजेआई गोगोई को क्लीन चिट दिए जाने वाली जांच रिपोर्ट की कॉपी मांगी

सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी जिसने चीफ जस्टिस गोगोई पर शारीरिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था, उसने कहा मैं अचंभित हूं कि मेरी शिकायत में पैनल को कोई तथ्य नहीं मिला.

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नई दिल्ली: इन-हाउस इंक्वायरी कमेटी द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों पर मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई को क्लीन चिट दिए जाने के दो दिन बाद शिकायतकर्ता ने पैनल से फाइनल रिपोर्ट की पूरी कॉपी मांगी है. महिला ने पैनल को इस मामले में एक पत्र भी लिखा है.

पैनल के तीनों न्यायाधीशों जस्टिस एसए बोबडे, इंदु मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी को संबोधित करते हुए पत्र में शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति का उल्लेख किया गया जिसमें कहा गया था कि 2003 के फैसले के अनुसार यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी.

उसने अपने पत्र में लिखा, ‘प्रेस विज्ञप्ति से प्रतीत होता है कि मुझे, शिकायतकर्ता की एक प्रति भी प्रदान नहीं की जाएगी.’

सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारी ने आगे कहा कि समिति से बार-बार पूछने के बावजूद, उसे इस बात से अवगत नहीं कराया गया कि वर्तमान कार्यवाही इन हाउस होगी या नहीं. हालांकि, इन-हाउस कार्यवाही नियमों का अब मुझे और जनता को रिपोर्ट के अधिकार से वंचित करने के लिए उपयोग किया जा रहा है.

इसके अलावा, ‘जैसा कि मीडिया द्वारा रिपोर्ट किया जा रहा है यदि रिपोर्ट की एक प्रति सीजेआई को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी जा रही है, तो मैं भी मामले में एक प्रति की हकदार हूं.’

‘मुझे यह अजीब लगता है कि यौन उत्पीड़न के एक मामले में शिकायतकर्ता को उस रिपोर्ट की एक प्रति प्रदान नहीं की जाती है जो उसकी शिकायत को बिना तथ्य के बताती है और मेरी शिकायत यह है कि समिति ने मुझे दिए बिना यह किया गया है. इसका कोई कारण दिखाई नहीं दे रहा है.’


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सीजेआई के आवास पर तैनात एक पूर्व अदालत कर्मचारी द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए एक पूर्ण अदालत के द्वारा जांच पैनल का गठन किया गया था. रविवार को आरोपों के सार्वजनिक होने के बमुश्किल दो सप्ताह बाद पैनल की रिपोर्ट सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश अरुण मिश्रा को सौंपी गई थी.

प्रक्रिया पर आश्चर्य जताया

सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी ने कहा कि विस्तृत हलफनामे, समिति के सामने पर्याप्त साक्ष्य और लगातार स्पषट बयान के बावजूद, यौन उत्पीड़न के अपने अनुभव को दोहराने और पराणामस्वरूप पीड़िता का दंश झेलने के बाद भी समिति को उसके शिकायत और हलफनामें में ‘कोई भी साक्ष्य’ नहीं मिला.

‘मैं हैरान हूं कि समिति इन तथ्यों के बावजूद मेरे खिलाफ प्रतिकूल खोज कर ले आई है जबकि मुझे समिति से वापस जाने के लिए मजबूर किया गया था. समिति ने प्राकृतिक न्याय के सबसे बुनियादी सिद्धांतों का भी पालन नहीं किया.’

‘शुरू से ही मुझे बाहरी माना गया है, मुझे प्रक्रिया के बारे में सूचित नहीं किया गया है, मुझे जांच की कार्यवाही के संबंध में मेरे मूल अधिकारों और दायित्वों के बारे में सूचित नहीं किया गया है. शुरू से ही समिति के कामकाज में पारदर्शिता की कमी रही है और बार-बार मेरे कारण बड़े पूर्वाग्रह पैदा हो रहे हैं.’

‘पोश’ एक्ट का उल्लंघन

35 वर्षीय महिला कर्मी ने कार्यस्थल (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 में महिलाओं के यौन उत्पीड़न की धाराओं पर भरोसा किया. जिसमें यह प्रावधान है कि ‘दोनों पक्षों को रिपोर्ट की एक प्रति प्राप्त करने का अधिकार है.’

‘शिकायतकर्ता को उसकी शिकायत की एक प्रति उपलब्ध न कराना, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन और न्याय की पूर्ण तस्करी होगी.’

उन्होंने बताया कि जजमेंट महासचिव द्वारा दी गई प्रेस विज्ञप्ति में भरोसा पर किया गया था जिसमें ‘सूचना के अधिकार अधिनियम से पहले एक समय दिया गया था.’


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‘यहां तक कि एसेट्स खुलासा मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्ण पीठ के फैसले के अनुसार, इस तरह की रिपोर्ट आरटीआई के तहत किसी भी नागरिक के लिए सुलभ होनी चाहिए. सुनवाई कर रही बेंच ने कहा था कि किसी भी नागरिक के लिए न्यायाधीशों की संपत्ति भी आरटीआई के तहत सुलभ होगी.’

‘इन परिस्थितियों में मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि कृपया मुझे रिपोर्ट की एक प्रति प्रदान करें, क्योंकि मुझे यह जानने का अधिकार है कि कैसे, क्यों और किस आधार पर आपके आधिपत्य ने मेरी शिकायत में कोई प्रमाण नहीं पाया.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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