नयी दिल्ली, 30 जनवरी (भाषा) आशा कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सबसे बड़े संगठन ने केंद्र से आग्रह किया है कि उन्हें केवल प्रतीकात्मक सम्मान देने के बजाय वैधानिक अधिकारों के साथ आधिकारिक कर्मचारी के रूप में मान्यता दी जाए।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को बृहस्पतिवार को लिखे एक खुले पत्र में ‘आशा वर्कर्स एंड फैसिलिटेटर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ ने दिल्ली में 76वें गणतंत्र दिवस समारोह में विशेष अतिथि के रूप में 250 मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) को आमंत्रित करने के सरकार के फैसले का स्वागत किया।
इसने हालांकि चयन मानदंडों पर सवाल उठाया और आशा कार्यकर्ताओं के लिए वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा की कमी की आलोचना की।
पत्र में कहा गया है कि आशा कार्यकर्ता मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल की रीढ़ हैं और तपेदिक तथा अन्य संक्रामक रोगों के खिलाफ भारत की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
इसमें कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान उनके योगदान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने उन्हें ‘‘ग्लोबल लीडर’’ के रूप सम्मानित किया।
पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि इन योगदानों के बावजूद आशा कार्यकर्ताओं को अब भी ‘‘स्वयंसेवियों’’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा उन्हें प्रति माह 2,000 रुपये से भी कम प्रोत्साहन राशि की गारंटी दी जाती है।
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि इस प्रोत्साहन राशि को अंतिम बार 2010 में संशोधित किया गया था।
इसमें कहा गया है कि आशा कार्यकर्ताओं को स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व अवकाश और पेंशन जैसी आवश्यक सुविधाएं नहीं मिलतीं, जिससे वे आर्थिक रूप से कमजोर हो जाती हैं।
पत्र में केंद्र सरकार द्वारा समय पर धनराशि जारी करने में विफलता के कारण कई राज्यों में वेतन भुगतान में देरी के बारे में भी चिंता जताई गई है।
भाषा देवेंद्र अविनाश
अविनाश
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