(नरेश कौशिक)
मुंबई, 22 दिसंबर (भाषा) कवि एवं चित्रकार इमरोज़ और प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम के बीच दुनियावी संबंधों से परे एक अलौकिक प्रेम संबंध था, जिसे न तो उन दोनों ने किसी रिश्ते में बांधा और न दुनिया ही कोई नाम दे सकी। आज इमरोज़ के निधन के साथ यह अनूठी प्रेम कहानी इतिहास में दर्ज हो गई।
प्रसिद्ध कवि और चित्रकार इमरोज़ का मुंबई में उम्र संबंधी बीमारियों के चलते शुक्रवार को निधन हो गया। वह 97 साल के थे। उनके परिवार के एक सदस्य ने यह जानकारी दी।
छब्बीस जनवरी 1926 को अविभाजित भारत के लाहौर से 100 किलोमीटर दूर एक गांव ‘चक नंबर 36, लायलपुर’(फैसलाबाद) में जन्मे इमरोज पिछले कुछ समय से उम्र संबंधी बीमारियों का सामना कर रहे थे और एक महीने पहले भी उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
इमरोज़ को इंद्रजीत सिंह के नाम से भी जाना जाता था और वह मशहूर लेखिका और कवयित्री अमृता प्रीतम के साथ अपने संबंधों को लेकर चर्चा में आए थे। दोनों ने कभी अपने रिश्ते को कोई दुनियावी नाम नहीं दिया, लेकिन दोनों करीब चालीस साल तक एक दूसरे की परछाई बनकर रहे।
अमृता प्रीतम और इमरोज़ की पुत्रवधू अल्का क्वात्रा ने मुंबई से फोन पर इमरोज के निधन की पुष्टि करते हुए ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि आज सुबह लगभग साढ़े पांच बजे उन्होंने मुंबई में अपने घर पर अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार दोपहर बाद परिजनों की मौजूदगी में किया गया। कांदिवली के धानुवड़ी श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। मुखाग्नि उनकी पोती शिल्पी ने दी।
अलका ने बताया कि अमृता प्रीतम के निधन के बाद से ही इमरोज़ उनके (अलका के) साथ रह रहे थे ।
साहित्य के साथ ही फिल्म जगत से जुड़े काफी लोगों ने इमरोज की अंतिम यात्रा में शामिल होकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
इमरोज के परिवार में उनकी पुत्रवधू अलका क्वात्रा के अलावा एक पोता और एक पोती हैं। अलका, अमृता प्रीतम और उनके दिवंगत पति प्रीतम सिंह के बेटे नवराज की पत्नी हैं। नवराज का भी निधन हो चुका है।
पंद्रह साल की उम्र में अमृता का विवाह प्रीतम सिंह से हुआ था।
अमृता और इमरोज़ के जीवन को करीब से देखने वाली साहित्य संपादक निशा ‘निशांत’ ने बताया कि अमृता के जीवन में इमरोज़ के आने के बाद, प्रीतम जो कि खुद पंजाबी साहित्य के एक नामी हस्ताक्षर थे, अमृता की जिंदगी से अलग हो गए, लेकिन दोनों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध हमेशा बने रहे।
विलगाव के बाद भी संबंधों की सहजता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमृता ने ताउम्र अपने नाम के साथ पति का नाम प्रीतम लगाए रखा।
कहा जाता है कि अमृता को अपनी पत्रिका ‘नागमनी’ के कवर डिजाइन के लिए एक कलाकार की तलाश थी और इसी तलाश के दौरान उनकी चित्रकार इमरोज़ से मुलाकात हुई थी। अमृता और इमरोज़ ने मिलकर 37 वर्षों तक इस पत्रिका का संपादन किया। इस पत्रिका ने गुरदयाल सिंह, शिव कुमार बटालवी और अमितोज जैसे लेखकों को प्रोत्साहित किया।
दोनों 40 साल तक एक-दूसरे के साथ रहे, लेकिन अपने रिश्ते पर किसी नाम की तख्ती टांगने की कोशिश नहीं की। अमृता के लिए इमरोज़, ‘जीत’ थे और वह उन्हें प्यार से इसी नाम से बुलाती थीं। अंतिम दिनों में जब अमृता बीमारी से जूझ रही थीं तो इमरोज़ कई-कई दिनों तक उनके बिस्तर के पास से हिलते नहीं थे।
अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ में साहिर लुधियानवी के अलावा अपने और इमरोज़ के बीच के आत्मिक रिश्तों पर बहुत डूबकर लिखा है।
इकतीस अक्टूबर 2005 को अमृता प्रीतम इस संसार से चली गईं और इमरोज़ ने खुद को पूरी दुनिया से काट कर केवल अमृता की यादों के हवाले कर दिया।
इमरोज, अमृता से इस कदर मोहब्बत करते थे कि उन्होंने उनके लिए ‘अमृता के लिए नज्म जारी है’ नाम की किताब भी लिखी थी, जिसे 2008 में प्रकाशित किया गया था।
जब अमृता बीमार थीं, तब उन्होंने ये कविता इमरोज के लिए लिखी थी :
मैं तैनू फ़िर मिलांगी
कित्थे ? किस तरह पता नई
शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के
तेरे केनवास ते उतरांगी।
भाषा नरेश
नरेश दिलीप
दिलीप
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