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Friday, 22 November, 2024
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IMD ने ‘नॉर्मल मानसून’ की जताई संभावना, निजी पूर्वानुमानकर्ता ने कहा ‘सामान्य से कम’ रहेंगी बौछारें

IMD ने कहा कि अल नीनो का कोई भी प्रभाव सीजन के दूसरे भाग में ही दिखाई देगा. यह जरूरी नहीं है कि इससे मानसून खराब रहेगा.

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नई दिल्ली: एक निजी पूर्वानुमानकर्ता द्वारा मानसून के सामान्य से नीचे रहने की संभावना जताने के एक दिन बाद, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने मंगलवार को जारी अपने लंबी अवधि के पूर्वानुमान में कहा कि दक्षिण-पश्चिम मानसून के पूरे देश में सामान्य रहने की संभावना है.

आईएमडी ने कहा कि जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर के मानसून महीनों के दौरान वर्षा दीर्घावधि औसत (एलपीए) का 96 प्रतिशत होने की संभावना है, जो “सामान्य” सीमा के भीतर है.

1971 से लेकर 2020 के बीच पूरे देश में मौसम के दौरान औसत वर्षा के रूप में एलपीए की गणना की गई जो कि 87 सेंटीमीटर रहा. आईएमडी के मुताबिक, अगर बारिश एलपीए के 90 से 95 फीसदी के बीच होती है तो इसे सामान्य से कम माना जाता है.

आईएमडी ने कहा कि पूरे देश में मानसून के “सामान्य” होने की उम्मीद के बावजूद कुछेक क्षेत्रों में बरसात में बदलाव होने की संभावना है.

आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “प्रायद्वीपीय भारत और उससे सटे पूर्वी मध्य भारत के कई क्षेत्रों के साथ-साथ देश के पूर्व और पूर्वोत्तर भाग और उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य वर्षा होने की संभावना है.”

उन्होंने कहा, “उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों और पश्चिम मध्य भारत के कुछ हिस्सों के साथ-साथ पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में सामान्य से कम बारिश होने की संभावना है.”

निजी पूर्वानुमानकर्ता स्काईमेट वेदर ने सोमवार को कहा कि दक्षिण-पश्चिम मानसून एलपीए के 94 प्रतिशत रहने की संभावना है.

अल-नीनो एक मौसम संबंधी परिघटना है, जो प्रशांत महासागर के असामान्य रूप से गर्म होने के कारण पैदा होती है और भारत में मानसून को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए जानी जाती है. भारत में इस साल के अंत तक इसके प्रभाव नज़र आने की संभावना है.

महापात्रा ने कहा कि मानसून पर अल नीनो का कोई भी प्रभाव मौसम के दूसरे भाग में ही दिखाई देगा. आईएमडी का पूर्वानुमान अत्याधुनिक मॉडल पर आधारित था जो कम से कम छह मापदंडों का उपयोग करता है.

उन्होंने कहा, “यह ज़रूरी नहीं है कि अल नीनो के कारण मानसून खराब होगा. 1951 से 2022 तक के 15 अल नीनो वर्षों में से 6 सामान्य से अधिक सामान्य वर्षा वाले थे.”

महापात्रा ने आगे कहा कि अन्य जलवायु घटनाएं भी अल नीनो के प्रभाव को कम कर सकती हैं, जैसे कि हिंद महासागर डिपोल (आईओडी), जो हिंद महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में अंतर का कारण बनता है.

आईएमडी के जलवायु मॉडल एक सकारात्मक आईओडी विकास का अनुमान लगाते हैं, जो अल नीनो के नकारात्मक प्रभावों से मुकाबला कर सकता है. महापात्रा ने कहा कि उत्तरी गोलार्ध में सामान्य से कम बर्फ होना भी भारत के मानसून में मदद कर सकता है.

आईएमडी दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत से पहले मई में एक अपडेटेड पूर्वानुमान जारी करेगा.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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