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Tuesday, 7 May, 2024
होमदेश'सबूत या माफी'- आईएमए ने फार्मा कंपनियों के डॉक्टरों को रिश्वत देने के आरोप पर पीएम को लिखा पत्र

‘सबूत या माफी’- आईएमए ने फार्मा कंपनियों के डॉक्टरों को रिश्वत देने के आरोप पर पीएम को लिखा पत्र

पीएम को लिखे पत्र में आईएमए का दावा है कि डॉक्टरों के खिलाफ रिश्वत के आरोप साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है, सरकार पर 'वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश' का आरोप लगाया है.

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नई दिल्ली: देश में 3.5 लाख डॉक्टरों के इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर स्पष्टीकरण मांगा है कि क्या सरकार दवा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने की योजना बना रही है. कथित रूप से डॉक्टरों को रिश्वत देने और एथिकल मेडिकल प्रैक्टिस करने के उल्लंघन का आरोप है.

दिप्रिंट ने 13 जनवरी को बताया कि प्रधानमंत्री ने शीर्ष दवा कंपनियों को चेतावनी दी है कि वे मेडिकल एथिक्स का सख्ती से पालन करें और महिलाओं, विदेशी यात्राओं और गैजेट्स के रूप में डॉक्टरों को रिश्वत न दें.

सरकारी सेंसर 2 जनवरी को नई दिल्ली में ज़्याडस कैडिला, टोरेंट फार्मास्युटिकल्स और वॉकहॉर्ट सहित शीर्ष दवा निर्माताओं से पीएम और वरिष्ठ अधिकारियों के बीच एक बैठक में आया था.

मोदी को लिखे पत्र में मंगलवार को आईएमए ने ‘प्रधानमंत्री कार्यालय से ऐसी किसी मीटिंग को लेकर स्पष्टीकरण की मांग की है.’

जबकि आईएमए के पत्र में डॉक्टरों द्वारा विदेशी यात्राओं, महंगे स्मार्टफोन, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के रूप में रिश्वत लेने के आरोप पर चुप्पी है. इसमें डॉक्टरों को ‘महिलाओं की आपूर्ति में शामिल कंपनियों के विवरण की मांग की गई है.’

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आईएमए की चिट्ठी में लिखा गया है, ‘इसके अलावा, अब दोषी पाए गए डॉक्टरों या अन्य के नाम जारी करना भी पीएमओ के लिए अनिवार्य है.’ अगर डॉक्टरों को नैतिक रूप से दोषी ठहराया गया है तो राज्य चिकित्सा परिषदों को उचित कार्रवाई शुरू करनी चाहिए. आईएमए ने यह भी कहा कि सरकार इन आरोपों को साबित नहीं कर पाएगी.

आरोप के घेरे में डॉक्टर

शीर्ष दवा अधिकारियों के साथ पीएम की बैठक का पता एक एनजीओ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट से चला है यह रिपोर्ट स्वास्थ्य प्रशिक्षण के लिए सहायता का काम करने वाली संस्था (एसएटीएचआई) द्वारा प्रकाशित की गई थी, जिसमें सुझाव दिया गया था कि चिकित्सा प्रतिनिधि (एमआर) उन्हें विदेशी यात्राओं, महंगे स्मार्टफोन, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के साथ रिश्वत देते हैं और यहां तक ​​कि महिलाओं की भी सप्लाई करते थे.

2 जनवरी की बैठक में भाग लेने वाले एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया था कि पीएम ने दवा निर्माताओं से कहा कि मार्केटिंग प्रैक्टिस का गैर-अनुपालन सरकार को सख्त कानून बनाने के लिए प्रेरित कर रहा है. उन्होंने एक वैधानिक प्रावधान लाने के बारे में चेतावनी और संकेत दिया है कि मंत्रालय (रसायन और उर्वरक के) को इस पर काम शुरू करने के लिए कहा गया है.’

यह दूसरी ऐसी बैठक थी जिसमें सरकार ने दवा निर्माताओं को डॉक्टरों को लुभाने से रोकने की चेतावनी दी थी. पहली बैठक की अध्यक्षता पीडी वाघेला, सचिव, फार्मास्युटिकल्स विभाग ने 23 दिसंबर को की जिसमें दवा और चिकित्सा उपकरणों की मार्केटिंग करते समय सरकार ने दवा निर्माताओं को नियमों का सख्ती से पालन करने की चेतावनी दी थी.

वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटका रही है सरकार: आईएमए

अपने पत्र में आईएमए ने सरकार को ‘लोगों के स्वास्थ्य और देश की चिकित्सा शिक्षा के बारे में अनसुलझे मुद्दों से ध्यान हटाने’ के लिए भी दोषी ठहराया.

आईएमए ने पत्र में कहा है, ‘यह विश्वास है कि इस तरह की क्रूड रणनीति स्वास्थ्य क्षेत्र में वास्तविक मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए है.’

इसने मोदी सरकार के प्रमुख हेल्थकेयर आयुष्मान भारत को ‘एक गैर-स्टार्टर’ के रूप में वर्णित किया कि यह सरकारी अस्पतालों में अधिक चलाया जा रहा है जहां इलाज पहले से ही मुफ्त है. पत्र में यह भी कहा, ‘सरकारी सहित अस्पतालों को दिए जाने वाले पैसे का 15 प्रतिशत बीमा कंपनियों द्वारा छीना जाता है.’

सरकार द्वारा स्वास्थ्य के लिए आवंटन पिछले कुछ वर्षों से सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1 प्रतिशत से 13 प्रतिशत हो गया है. बुनियादी ढांचे या मानव संसाधन में कोई निवेश नहीं है.’

यह भी कहा है कि ‘डॉक्टरों पर हिंसा बढ़ गई है और सरकार को सुरक्षा प्रदान करने में असमर्थ होने या यहां तक ​​कि डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए प्रस्तावित कानून को ना बनाने के लिए दोषी ठहराया गया है.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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