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Friday, 22 November, 2024
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आईआईटी कानपुर कोरोनावायरस विरोधी कोटिंग वाला सर्जिकल मास्क करेगा तैयार

वैज्ञानिकों की टीम अणुओं का उपयोग करके पॉलीमर कोटिंग में एक अतिरिक्त सुरक्षा शामिल करेगी, जो कोरोना वायरस और इन्फ्लूएंजा जैसे अन्य वायरस को या तो अस्थिर कर सकती है या बेअसर कर सकती है.

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नई दिल्ली: आईआईटी कानपुर में रसायन विज्ञान विभाग के शोधकर्ता, पॉलीमर का उपयोग करके वायरसरोधी कोटिंग तैयार कर रहे हैं, जो बैक्टीरिया और वायरस के संयोजन का प्रतिरोध करेगा. गौरतलब है कि वैज्ञानिकों की टीम एक सुरक्षात्मक कोटिंग मास्क विकसित करने के लिए किए जा रहे एक शोध का समर्थन कर रही है. कहा जा रहा है कि ये सोध कोविड-19 से लड़ने के लिए मेडिकेटेड मास्क और मेडिकल वियर (पीपीई) बनाने में बहुत ही मददगार साबित होगा.

बता दें कि आईआईटी कानुपर के एसईआरबी की यह टीम एंटी-माइक्रोबियल गुणों और पुन: प्रयोज्य एंटी-वायरल अणुओं के संयोजन से युक्त सामान्य पॉलिमरों और अन्य सामग्रियों के मिश्रण से कोटिंग विकसित कर रही है जो कि इसे लागतप्रभावी बना देगा. इससे उन डॉक्टरों व नर्सों को लाभ पहुंचेगा जो कोविड-19 के रोगियों का इलाज करते हैं. मेडिकलकर्मी अपने काम की वजह से  संपर्कविकार के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं.

ऐसे में यह कोविड-19 के रोगियों का इलाज करते समय उनके लिए सुरक्षा की एक परत जोड़ देगा. इस परियोजना की लागत-प्रभावशीलता के कारण इसके उत्पादन को बड़े पैमाने पर करने में भी मदद मिलेगी.


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वैज्ञानिकों की टीम अणुओं का उपयोग करके पॉलीमर कोटिंग में एक अतिरिक्त सुरक्षा शामिल करेगी, जो कोरोना वायरस और इन्फ्लूएंजा जैसे अन्य वायरस को या तो अस्थिर कर सकती है या बेअसर कर सकती है.

आईआईटी कानपुर/पीआईबी

इस बारे में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने बताया, ‘हालांकि मास्क की सबसे ज्यादा उपयोग की जाने वाली किस्में उनके आकार के आधार पर रोगजनकों और एयरोसोलों की फिल्टर और अवरोधन के द्वारा काम करती हैं. लेकिन कपड़े पर एंटी-माइक्रोबियल और एंटी-वायरल अवयवों को स्थिर करना नाजुक वातावरण के लिए, जीवन का विस्तार करने के लिए, पुन: प्रयोज्य और सुरक्षित संचालन के लिए और मास्क का डिस्पोजल करने के लिए उपयोगी साबित हो सकता है. इसलिए यह अतिरिक्त सुरक्षा विशेष रूप से मूल्यवान साबित होगी. मसलन इसमें मास्क की लागत के एक भाग के रूप में जोड़ दिया जाए तो.’

इस टीम में रसायन विज्ञान विभाग के प्रो. एम. एल. एन. राव, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आशीष के. पात्रा और सहायक प्रोफेसर डॉ. नगमा परवीन भी शोधकर्ता के तौर पर शामिल हैं.

इस टीम का लक्ष्य है कि 3 महीने के अंदर एक बुनियादी प्रतिकृति को स्थापित करना ताकि आगे चलकर बड़े पैमाने पर अपने संभावित अनुप्रयोगों के लिए स्टार्ट-अप भागीदारों के साथ मिलकर काम कर सकें.

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