इंदौर (मध्यप्रदेश), 26 फरवरी (भाषा) दुनिया भर में खाद्य अपशिष्ट का उचित निपटारा नहीं होने से बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौती बनकर उभर रहा है। ऐसे में इंदौर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के अनुसंधानकर्ताओं ने खाद्य अपशिष्ट के इस्तेमाल का अनूठा तरीका खोज निकाला है।
अधिकारियों के मुताबिक आईआईटी इंदौर के एक अनुसंधान में कहा गया है कि खाद्य अपशिष्ट के साथ एक गैर रोगजनक बैक्टीरिया को मिलाकर इसे कंक्रीट में मिश्रित करने से निर्माण की ताकत दोगुनी हो सकती है और कार्बन उत्सर्जन में भी कटौती की जा सकती है।
अनुसंधान दल में शामिल प्रोफेसर संदीप चौधरी ने बुधवार को ‘‘पीटीआई-भाषा’’ को बताया,‘‘हमने खराब फलों के गूदे और इनके छिलकों जैसे खाद्य अपशिष्ट में एक गैर रोगजनक बैक्टीरिया मिलाया और इसे कंक्रीट में मिश्रित किया। इससे कंक्रीट की मजबूती दोगुनी हो गई।’’
सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर ने बताया,’जब खाद्य अपशिष्ट सड़ता है, तो इससे कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है। अगर हम कंक्रीट में बैक्टीरिया और खाद्य अपशिष्ट मिलाते हैं, तो कार्बन डाइ आक्साइड कंक्रीट में मौजूद कैल्शियम आयनों के साथ प्रतिक्रिया करके कैल्शियम कार्बोनेट क्रिस्टल बनाती है। ये क्रिस्टल कंक्रीट में मौजूद छेदों और दरारों को भर देते हैं और वजन पर कोई खास असर डाले बिना कंक्रीट को ठोस बनाते हैं।’’
चौधरी के मुताबिक इस बैक्टीरिया की खासियत यह है कि छेदों और दरारों के भरते ही यह बढ़ना बंद कर देता है जिससे बाद में निर्माण को कोई नुकसान नहीं होता।
अनुसंधान में आईआईटी इंदौर के जैव विज्ञान और जैव चिकित्सा इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर हेमचंद्र झा भी शामिल थे। उन्होंने बताया कि कंक्रीट में बैक्टीरिया मिलाने के पुराने अनुप्रयोगों में सिंथेटिक रसायनों का उपयोग किया जाता था जिससे यह प्रक्रिया महंगी और कम टिकाऊ हो जाती थी।
झा ने बताया कि आईआईटी इंदौर के अनुसंधान में इस प्रक्रिया की लागत घटाने के लिए सिंथेटिक रसायनों के बजाय खाद्य अपशिष्ट का इस्तेमाल किया गया जो बैक्टीरिया के साथ पानी में घुलकर कंक्रीट में आसानी से मिल जाता है।
भाषा हर्ष नरेश
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