जौनपुर/बलिया: अपनी नौकरी के पहले महीने में ही, 27 वर्षीय सहायक अध्यापिका कल्याणी अग्रहरि, 15 अप्रैल को चुनाव ड्यूटी नहीं करना चाहती थी. वो आठ महीने के गर्भ से थी, और एक जगह पर लंबे समय के लिए बैठना, उसके लिए आसान नहीं रहने वाला था.
9 अप्रैल को, कल्याणी अपने पति के साथ पटायला ग्राम पंचायत से, 30 किलोमीटर का सफर तय करके, जौनपुर विकास भवन आवेदन दाख़िल करने गई, कि वो चुनाव ड्यूटी पर नहीं आ पाएगी.
दिप्रिंट के हाथ लगे उसके आवेदन में लिखा है, ‘मैं एक प्राइमरी स्कूल टीचर हूं, और खुताहन ब्लॉक में मोइना कंपोज़िट स्कूल में तैनात हूं. मुझे चुनाव ड्यूटी पर लगाया गया है, और मेरा कोड नंबर 24146 है. गर्भावस्था की नाज़ुक स्थिति के कारण, मैं ड्यूटी पर नहीं आ पाउंगी. इसलिए ज़िला चुनाव अधिकारी से विनम्र निवेदन है, कि मुझे चुनाव ड्यूटी से मुक्त किया जाए’.
लेकिन उनका चक्कर बेकार साबित हुआ. उसे कथित रूप से कहा गया, कि यदि वो ड्यूटी पर नहीं पहुंची, तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी, और वेतन भी नहीं मिलेगा.
पंद्रह दिन के बाद, टीचर की जौनपुर के एक अस्पताल में मौत हो गई. परिवार के अनुसार उसके मृत्यु प्रमाण पत्र में लिखा है, कि वो कोविड पॉज़िटिव थी.
अध्यपकों की एक एसोसिएशन राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के अनुसार, ‘कल्याणा उन ‘135 अध्यापकों’ में से थी, जो उत्तर प्रदेश में चुनाव ड्यूटी पर लगाए जाने के बाद, अभी तक मर चुके हैं.
इस बारे में कोई अधिकारिक रिकॉर्ड दर्ज नहीं है, लेकिन अध्यापकों के जिन परिजनों से दिप्रिंट ने बात की, उनका कहना है कि सभी को या तो कोविड था, या संक्रमण के लक्षण थे.
बृहस्पतिवार चार चरणों के पंचायत चुनाव का अंतिम दिन था, जिसके नतीजे 2 मई को घोषित किए जाएंगे.
इन मौतों का संज्ञान लेते हुए, इलाहबाद हाईकोर्ट ने 27 अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार को, एक कारण-बताओ नोटिस जारी किया, कि उसके और उसके अधिकारियों के ख़िलाफ, कोविड प्रोटोकोल का पालन न करने के लिए कार्रवाई क्यों न की जाए.
लेकिन, योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक बयान में कहा है, कि वो पंचायत चुनाव नहीं कराना चाहती थी, और ये इलाहाबाद हाईकोर्ट का ही आदेश था, जिसने उसे 30 अप्रैल से पहले, चुनाव कराने के लिए मजबूर किया.
टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर, एसडीएम सदर जौनपुर, नितीश सिंह ने दिप्रिंट से कहा: ‘अगर कोई बीमार है, तो उस व्यक्ति को हमारी मेडिकल कमेटी को लिखना होता है. मेडिकल आधार पर उस व्यक्ति को ड्यूटी से मुक्त करने का निर्णय वो कमेटी लेती है. ये घटना (अग्रहरि) दुर्भाग्यपूर्ण है, मैं देखूंगा कि क्या परिवार की किसी भी तरह से, कोई सहायता की जा सकती है’.
दिप्रिंट ने शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी से, फोन कॉल्स और लिखित संदेशों के लिए संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के छपने तक, उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला था.
इस बीच राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध है, 2 मई को मतगणना का बहिष्कार करने का फैसला किया है.
यूपी प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षा संघ ने ये भी कहा, कि टीचर्स मतगणना ड्यूटी का बहिष्कार करना चाहते हैं. बृहस्पतिवार को जारी एक बयान में एसोसिएशन ने, ऐसे 706 अध्यापकों की सूची जारी की, जो उसके अनुसार महामारी की शुरूआत से कोविड का शिकार हो चुके हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्य चुनाव आयुक्त को संबोधित बयान में, ये अनुरोध भी किया गया कि फिलहाल, मतगणना को रोक दिया जाना चाहिए.
ज्ञात हुआ है कि इसी तरह की मांग करते हुए, यूपी शिक्षक महासंघ ने ऐसे ‘577 अध्यापकों, एवं सपोर्ट स्टाफ’ की सूची जारी की है, जो पंचायत चुनाव ड्यूटी पर तैनात किए जाने के बाद, मृत्यु को प्राप्त हुए थे.
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‘वो गर्भ से थी, उसकी बजाय वो मुझे भेज सकते थे’
कल्याणी उन 69,000 असिस्टेंट टीचर्स में थी, जिन्हें जनवरी 2021 में भर्ती किया गया था. ये उसकी पहली तैनाती थी, और अपना पहला वेतन लेने से पहले ही, उसकी मौत हो गई.
इस नौकरी का बहुत समय से इंतज़ार था, क्योंकि उनकी नियुक्ति का मामला कोर्ट में चल रहा था.
कल्याणी के पति दीपक ने दिप्रिंट को बताया, ‘उसे चिंता हो रही थी कि चुनाव ड्यूटी पर, वो लंबे समय तक एक जगह नहीं बैठ पाएगी. मैं उसके साथ विकास भवन गया, लेकिन हमें कहा गया कि अगर उसने चुनाव ड्यूटी पर आने से मना किया, तो उसके ख़िलाफ एफआईआर दर्ज कर ली जाएगी. हम दोनों निराश होकर घर लौट आए. उन्होंने कहा नई नौकरी है, सेलरी नहीं मिलेगी’.
दीपक ने आगे कहा, ‘15 अप्रैल को पोलिंग स्टेशन तक पहुंचने के लिए, उसे 32 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा. उसे 12 घंटे से ज़्यादा फील्ड में बिताने पड़े. घर लौटने के बाद से वो अच्छा महसूस नहीं कर रही थी. दो दिन के बुख़ार के बाद, उसकी हालत बिगड़नी शुरू हो गई’.
पति ने बताया कि कल्याणी को मतदान से एक दिन पहले, 14 अप्रैल को भी एक ट्रेनिंग के लिए मतदान केंद्र जाना पड़ा था.
27 वर्षीया की 24 अप्रैल को, एक महिला चिकित्सालय में मौत हो गई, उनकी शादी की तीसरी सालगिरह से दो दिन पहले, जो 26 अप्रैल को थी.
अस्पताल की ओर से जारी, अग्रहरि के मृत्यु प्रमाण पत्र में कहा गया है, कि वो कोविड पॉज़िटिव थी और इलाज के दौरान, कार्डियो-पल्मोनरी अरेस्ट से उसकी मौत हुई.
दीपक ने अपनी पत्नी का आख़िरी फोटो दिखाया, जिसमें वो आधी बेहोशी की हालत में, ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ लेटी हुई थी.
दीपक ने घुटी हुई आवाज़ में कहा, ‘वो कहती रही, ‘प्लीज़ मुझे बचा लो’, मैंने डॉक्टरों के पैर पकड़े, गिड़गिड़ाया, पर वो नहीं रही. आख़िर में सुबह 11.30 बजे डॉक्टर आया, और उसने बताया कि वो अब नहीं रही. उसे अधिकारियों ने मार दिया. उन सभी पर आपराधिक लापरवाही का मुक़दमा चलना चाहिए’. दीपक ने आगे कहा कि उसके लिए, अपने अजन्मे बच्चे और पत्नी की मौत के, दुख को बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल है.
दीपक के घर से कुछ किलोमीटर दूर ही, कल्याणी का परिवार रहता है- वो भी बहुत ग़ुस्से में हैं, और उन्हें लगता है कि उनके साथ ‘धोखा’ हुआ है. दिप्रिंट से फोन पर बात करते हुए, कल्याणी के 52 वर्षीय पिता सुरेश कुमार रो पड़े: ‘जब उन्हें पता था कि वो 8 महीने के गर्भ से है, तो उसकी जगह वो मुझे ड्यूटी के लिए भेज सकते थे’.
उन्होंने कहा, ‘मैंने उसे इतना पढ़ाया लिखाया कि कुछ बनेगी, लेकिन सिस्टम से क्या मिला? एक मौत. मेरी बेटी की जान पंचायत विभाग के अधिकारियों की वजह से गई.
उस दिन को याद करते हुए, जिस दिन कल्याणी 15 अप्रैल को अपनी चुनाव ड्यूटी से वापस आई थी, परिवार ने कहा कि उसे बुख़ार था, और दो दिन बाद भी जब उसका बुख़ार नहीं उतरा, तो 18 अप्रैल को उन्होंने उसे अस्पताल ले जाने का फैसला किया.
पिता ने कहा, ‘पहले हम अकबरपुर ज़िला अस्पताल पहुंचे, लेकिन वहां से लौटा दिए गए. उसके बाद हम जौनपुर के ईशा अस्पताल, शाहगंज के जेपी दूबे अस्पताल, जलालपुर आम्बेडकर नगर के कुमार अस्पताल, जलालपुर के मेयो अस्पताल, जौनपुर के सुनीता अस्पताल, जौनपुर के ट्रॉमा सेंटर, और जौनपुर के ही सदर अस्पताल में एक के बाद एक गए, लेकिन कहीं कोई बिस्तर नहीं था. तीन दिन तक हम इधर-उधर भागते रहे. क़ीमती समय निकल गया…जब उसका ऑक्सीजन लेवल गिरकर 40 पर आ गया, तो हम कोविड जांच के लिए गए, और एक ऑक्सीजन सिलिंडर का भी बंदोबस्त किया.
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‘आना तो पड़ेगा, नहीं तो FIR’
जौनपुर से 170 किलोमीटर दूर, बलिया ज़िले में भी इसी तरह की मौतें देखी गईं. इस ज़िले में 26 अप्रैल को, तीसरे चरण में चुनाव हुए थे.
ज़िले की अध्यापक एसोसिएशन के अनुसार, 10 से अधिक अध्यापकों की ‘रहस्यमय मौत’ हुई है.
एसोसिएशन के एक सदस्य निर्भय सिंह ने दिप्रिंट से कहा: ‘बहुत से सदस्यों को लक्षण थे, इसलिए वो अपनी ड्यूटी कैंसिल कराने के लिए, ब्लॉक अधिकारियों के पास गए, लेकिन उन्हें एफआईआर और स्वैच्छिक रिटायरमेंट की धमकी दी गई’.
56 वर्षीय सपना गुप्ता, जिन्होंने बरसों तक बेसिक शिक्षा अधिकारी के तौर पर साइंस पढ़ाई थी, कुछ सालों में रिटायर होने वाली थीं.
उनकी बेटी स्वाती गुप्ता ने कहा, ’15 अप्रैल को वो ट्रेनिंग के लिए, अपने आवंटित चुनाव केंद्र पर गईं थीं. वहां से लौटने के बाद, उनमें खांसी, मिचली और दूसरे लक्षण शुरू हो गए. अन्य टीचर्स के साथ वो ज़िले के अधिकारियों के पास गईं, और निवेदन किया कि उन्हें चुनाव ड्यूटी से हटा दिया जाए, लेकिन उनसे कहा गया कि उन्हें स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेने के लिए मजबूर कर दिया जाएगा. उनके आख़िरी दिन बहुत तकलीफ भरे थे, क्योंकि उनकी सेहत बिगड़ने लगी थी’.
सपना की बेटी ने बताया कि उनकी सीटी स्कैन रिपोर्ट में, कोविड के लक्षण दिख रहे थे.
स्वाती ने दिप्रिंट को बताया, ‘डॉक्टर ने कहा कि वो पॉज़िटिव हैं. मैंने उन्हें बसंतपुर के एल-2 कोविड सेंटर में भर्ती कराया, जहां उन्हें तीन दिन तक रखा गया. आगे के इलाज के लिए मैं उन्हें मऊ के एक अस्पताल में ले गई, क्योंकि उनकी तबीयत बिगड़ गई थी, लेकिन वहां कुछ घंटों के अंदर ही उनकी मौत हो गई’.
अपनी चुनाव ड्यूटी करने से एक दिन पहले ही, सपना की मौत हो गई. बेटी ने कहा, ‘अगर वो ट्रेनिंग के लिए उस दिन पोलिंग स्टेशन न गईं होतीं, तो वायरस के संक्रमण की चपेट में न आतीं’.
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के प्रदेश संयुक्त महामंत्री, संतोष मौर्य ने दिप्रिंट को बताया: ‘हमने लखीमपुर ज़िले में विरोध किया. 2,000 अध्यापकों ने 2 मई को, चुनाव ड्यूटी का बहिष्कार करने का फैसला किया है. हमारे अपने ज़िले में 33 अध्यापकों की मौत हो चुकी है’.
उन्होंने आगे कहा: ‘उनके परिवार भी संक्रमित हैं. परिवारों को कोई सहायता नहीं दी जा रही है. बीमार अध्यापकों को कोई बिस्तर नहीं दिए जा रहे’.
28 अप्रैल को, यूपी में 3,00,082 एक्टिव कोविड मामले थे, और महामारी के बाद से राज्य में, 11,943 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं. अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले 24 घंटों में राज्य में 266 कोविड मौतें दर्ज की जा चुकी हैं.
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