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Tuesday, 17 December, 2024
होमदेशID प्रूफ, लाइव कवरेज पर रोक — अतीक हत्याकांड की जांच समिति की मीडिया को ‘रेगुलेट’ करने की मांग

ID प्रूफ, लाइव कवरेज पर रोक — अतीक हत्याकांड की जांच समिति की मीडिया को ‘रेगुलेट’ करने की मांग

उत्तर प्रदेश सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में न्यायिक आयोग ने सिफारिश की है कि मीडिया को ऐसे लाइव कार्यक्रम प्रसारित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जो पुलिस, आरोपी या पीड़ित की आवाजाही के बारे में जानकारी देते हों.

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लखनऊ: पहचान पत्र या आधार कार्ड दिखाएं, घटनास्थल पर जाने के बारे में जिला अधिकारियों को पहले से सूचित करें और ऐसे ‘टॉक शो’ आयोजित करने से बचें, जो चल रही जांच में बाधा डाल सकते हैं. अतीक अहमद की हत्या के बाद गठित पांच सदस्यीय न्यायिक आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस तरह की सिफारिशें सौंपी हैं.

अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की 15 अप्रैल 2023 को प्रयागराज के कैल्विन अस्पताल के बाहर पुलिस हिरासत में तीन हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी, जिन्होंने मीडियाकर्मी होने का दिखावा करते हुए सुरक्षा घेरा तोड़ दिया था. इसलिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश दिलीप भोसले की अध्यक्षता में एक न्यायिक आयोग को सुरक्षा चूक की पहचान करने, अगर कोई हो और सक्रिय जांच को कवर करने वाले मीडियाकर्मियों के लिए एक प्रोटोकॉल पर सिफारिशें करने का काम सौंपा गया था.

पुलिस को क्लीन चिट देते हुए, आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि “मीडियाकर्मियों द्वारा टॉर्च के अत्यधिक उपयोग ने पुलिसकर्मियों को व्यावहारिक रूप से अंधा कर दिया था” और कहा कि “बेहतरीन संभव प्रयासों” के बावजूद, पुलिस मीडिया को नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट निर्देशों के अभाव में अतीक और अशरफ से पत्रकारों को दूर रखने में असमर्थ थी.

अपनी रिपोर्ट में, जिसे दिप्रिंट ने भी देखा है, आयोग ने सिफारिश की है कि जांच के विभिन्न चरणों के बारे में मीडिया के साथ कोई जानकारी साझा नहीं की जानी चाहिए और मीडिया को पुलिस, आरोपी या पीड़ित की गतिविधियों का सीधा प्रसारण करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

इसने उन मीडियाकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की भी सलाह दी जो पहचान पत्र या आधार कार्ड दिखाने में विफल रहते हों या घटनास्थल पर पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड को पार करने की कोशिश करते हों. गुरुवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके परिणामस्वरूप कार्रवाई में कैमरा या माइक जब्त किया जा सकता है.

आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि जो मीडियाकर्मी किसी सनसनीखेज घटना को कवर करने के लिए दूसरे राज्यों से उत्तर प्रदेश आते हैं और जिनकी जानकारी स्थानीय अधिकारियों के पास उपलब्ध नहीं है, उन्हें “अपने आगमन पर या उससे पहले जिला सूचना अधिकारी को सूचित करना चाहिए”.

2020 में केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को उत्तर प्रदेश पुलिस ने उस समय गिरफ्तार किया था, जब वे एक युवा दलित महिला के संदिग्ध बलात्कार और उसके बाद हत्या की घटना को कवर करने के लिए हाथरस जा रहे थे. कप्पन पर सख्त गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था और उन्हें ज़मानत मिलने से पहले 28 महीने जेल में बिताने पड़े थे.

पुलिस, मीडिया के लिए पैनल की सिफारिशें

अतीक अहमद हत्याकांड की जांच कर रहे न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की है कि मीडिया घराने जिला सूचना अधिकारी को “किसी कार्यक्रम/घटना/प्रेस कॉन्फ्रेंस की कवरेज” के लिए किसी साइट पर जाने वाली टीम के बारे में पहले से ही ईमेल के ज़रिए सूचित करें.

इसमें यह भी कहा गया है कि जो कोई भी रिपोर्टर या मीडियाकर्मी होने का “दावा” करता है, लेकिन पहचान पत्र या आधार कार्ड दिखाने में असमर्थ है, उसे घटना को कवर करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

स्वतंत्र पत्रकारों के लिए इसने सिफारिश की कि जिला सूचना अधिकारी आधार, पैन कार्ड या अन्य दस्तावेज़ के ज़रिए उनकी पहचान सत्यापित करें.

आयोग ने “आपराधिक घटना” या “सार्वजनिक महत्व की घटना” के मीडिया कवरेज के लिए एक रूपरेखा का भी सुझाव दिया.

इसमें कहा गया है, “मीडिया को विशेष रूप से आपराधिक घटना/सार्वजनिक महत्व की घटना के मामले में संबंधित अधिकारियों द्वारा विनियमित और नियंत्रित किया जाएगा ताकि जांच एजेंसी के रास्ते में किसी भी तरह की बाधा से बचा जा सके और घटना में शामिल लोगों को भी सुरक्षित किया जा सके.”

इसके अलावा, इसने सिफारिश की कि मीडिया को ऐसे लाइव कार्यक्रम प्रसारित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जो पुलिस, आरोपी या पीड़ित की आवाजाही के बारे में जानकारी देते हों.

इसने पुलिस को सलाह दी कि वह सक्रिय जांच से संबंधित कोई भी जानकारी मीडिया के साथ साझा न करे, खासतौर पर सबूतों की बरामदगी से संबंधित. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “अगर किसी मामले में मीडिया को ऐसी किसी गतिविधि के बारे में पता चलता है, तो वह ऐसी घटना का प्रसारण तब तक नहीं करेगा, जब तक कि आरोपियों को बरामदगी के बाद पुलिस स्टेशन नहीं ले जाया जाता.”

इसने मीडिया को सलाह दी कि वह “किसी भी कार्यक्रम/घटना/प्रेस कॉन्फ्रेंस को कवर करते समय संयम बरते, ताकि वह गलत/गलत/अतिरंजित रिपोर्टिंग से सुरक्षित रह सके और राष्ट्रीय सुरक्षा और आरोपियों/पीड़ितों की सुरक्षा को ध्यान में रख सके.”

आयोग ने मीडिया को सलाह दी कि वह ऐसे “टॉक शो” आयोजित करने या वीडियो क्लिपिंग चलाने से “बचें” जो सक्रिय जांच में बाधा डाल सकते हैं, प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं या आरोपी या पीड़ित के लिए खतरे का कारण बन सकते हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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