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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशUP के झांसी में बढ़ते कोविड मामलों से अस्पताल में भर्ती मरीजों में बढ़ रहा ‘आईसीयू फीयर साइकोसिस’

UP के झांसी में बढ़ते कोविड मामलों से अस्पताल में भर्ती मरीजों में बढ़ रहा ‘आईसीयू फीयर साइकोसिस’

डॉक्टरों का कहना है कि अपने चारों तरफ हो रही मौतों को देखने के बाद मरीज़ों में फीयर साइकोसिस बढ़ रहा है. इस कंडीशन के बाद यूपी के झांसी जिले के सबसे बड़े अस्पताल में एक मरीज़ की मौत हो गई.

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झांसी: भारत में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने न केवल नए केस और मौतों की संख्या बेतहाशा बढ़ा दी है बल्कि लोगों में बेचैनी, मानसिक उन्माद और मौत के भय की भावना भी पैदा कर दी है.

उत्तर प्रदेश के झांसी में अस्पतालों में भर्ती कोविड मरीजों में बेचैनी तो इस कदर बढ़ रही है कि वह ‘आईसीयू फीयर साइकोसिस’ के शिकार हो रहे हैं—जिसमें आईसीयू में भर्ती होने के नाम पर ही घबराहट और दहशत बढ़ जाती है.

ऐसे ही एक मामले मे पिछले महीने राज्य सरकार द्वारा संचालित महारानी लक्ष्मी बाई अस्पताल में भर्ती एक 52 वर्षीय मरीज आईसीयू वार्ड की चौथी मंजिल से कूद गया था.

अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक जितेंद्र यादव ने कहा कि उन्होंने कुछ मरीजों में फीयर साइकोसिस बढ़ते देखा है और यहां तक कि कुछ में आत्महत्या की प्रवृत्ति भी दिखती है.

यादव ने कहा, ‘जो मरीज कोविड की दूसरी लहर के दौरान भर्ती हुए हैं और लंबे समय तक अस्पताल में रहते हैं, वे जल्द से जल्द छुट्टी पाने की कोशिश करते हैं. अगर उन्हें लंबे समय तक राहत नहीं मिलती है, तो उनमें से कुछ में आत्महत्या की प्रवृत्ति घर करने लगती है.’

उन्होंने बताया कि गुरुवार को भी एक मरीज ने उनके सामने ही आईसीयू वार्ड से कूदने का प्रयास किया.

यादव ने कहा, ‘वह अपने टिफिन बॉक्स से शीशा तोड़ने की कोशिश कर रहा था. शुक्र है उसे रोकने और मानसिक रूप से शांत कराने में हम कामयाब रहे, लेकिन निश्चित तौर पर यह मनोविकृति विकसित होने का एक उदाहरण है.’

डॉक्टरों का कहना है कि यह स्थिति उन मरीजों में दिख रही है जिनकी हालत में धीरे-धीरे सुधार हो है. उनके मन में मौत और सबकुछ खत्म हो जाने का डर बना रहता है.

महारानी लक्ष्मी बाई अस्पताल में कोविड-19 संबंधी क्रिटिकल केयर कमेटी के सदस्य डॉक्टर ज़की सिद्धी ने कहा, ‘दुर्भाग्य से आईसीयू वार्डों में भर्ती मरीज खुद को न केवल तारों और मॉनिटर आदि से घिरा पाते हैं बल्कि कई मौतों को भी अपनी आंखों से भी देखते हैं. कई गंभीर मरीज अचानक उनकी आंखों के सामने दम तोड़ देते हैं.’

सिद्धी ने कहा कि ऐसे में उनकी मनोविकृति कुछ व्यवहारों के जरिये सामने आती है, जिसमें आक्रामकता, बहुत ज्यादा बेचैनी, अत्यधिक भावनात्मक होना और कई मामलों में डॉक्टरों की बात न मानना शामिल है.

हालांकि, दूसरी लहर में मौतों की संख्या बहुत ज्यादा होने के कारण कई मरीज इस तरह के मानसिक उन्माद की स्थिति में पहुंच रहे हैं, भले ही वे आईसीयू में न हों. अप्रैल के बाद से ही इस तरह के मरीजों की संख्या में काफी वृद्धि दिख रही है.

डॉ. सिद्धी ने कहा, ‘कुछ हद तक यह बिना आईसीयू वाले कोविड मरीजों में भी दिखता है. दूसरी लहर में कुछ हद तक तो घबराहट तो सिर्फ यह जानकार ही बढ़ जाती है कि कोविड पीड़ित हो गए हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि वह खुद ऐसे समय पॉजिटिव हो रहे हैं जब सब तरफ से मौतों और हालात भयावह होने की खबरें सुन रहे हैं.’


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‘दहशत’ में आए मरीज करते हैं घर जाने की जिद

56 वर्षीय जगदीश शर्मा को पिछले हफ्ते महारानी लक्ष्मीबाई अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनके पुत्र गजेंद्र शर्मा बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों में उनकी हालत में मामूली सुधार हुआ है. गजेंद्र अपने पिता के यहां भर्ती होने के बाद से अस्पताल बाहर ही फुटपाथ पर रह रहे हैं. लेकिन शुक्रवार की सुबह उसे अपने पिता का फोन आया कि वह उन्हें घर ले जाएं.

गजेंद्र ने बताया, ‘पिछली रात एक मरीज को लाया गया और उसके बगल वाले बेड में लिटाया गया था. इसके बाद सुबह तक मरीज की मौत हो गई. पापा इससे बुरी तरह दहशत में आ गए और जिद करने लगे कि मैं उन्हें घर ले जाऊं.’

पिता की मानसिक सेहत को लेकर गजेंद्र की बेचैनी बढ़ती जा रही है. उन्होंने कहा, ‘मुझे उनकी बहुत चिंता हो रही है. आप और मैं तो अस्पताल में भर्ती नहीं हैं, लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर अभी हमारे सामने कोई मर जाता है, तो वह कितना तकलीफदेह होगा. इसलिए उनके लिए चौबीसों घंटे उस अस्पताल के बेड पर रहना और इन सभी मौतों को देखना आसान तो नहीं होगा.’

झांसी के एक निजी अस्पताल ‘ए लाइफ’ में कोविड मरीजों के परिजनों की चिंता जस की तस बनी हुई है.

धीरज सिंह, जिनके पिता कोविड के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती हैं, ने कहा, ‘पूरी तरह आइसोलेशन की स्थिति ने उन्हें परेशान कर रही है. हालांकि, उनके महत्वपूर्ण अंगों की स्थिति में सुधार हो रहा है लेकिन वह भावुक और काफी परेशान रहते हैं.’


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खुदकुशी के आते हैं विचार

भय की मनोवृत्ति जब ज्यादा ही बढ़ जाती है तो लोगों में खुदकुशी के विचार आने लगते हैं. महारानी लक्ष्मी बाई अस्पताल के डॉक्टरों ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि 52 वर्षीय एक महिला, जिसकी पिछले महीने मौत हो गई, की हालत में सुधार हो रहा था, लेकिन तभी वह फीयर साइकोसिस की शिकार हो गई.

अस्पताल में कोविड मामलों के को-नोडल अधिकारी डॉ. पारस गुप्ता ने कहा, ‘उसे एक्यूट हाइपोक्सिया था यानी उसका ऑक्सीजन लेवल कम था. लेकिन उसके हाइपोक्सिया में सुधार आया और वह ठीक भी हो गई. लेकिन उसे एंज़ाइटी और फोबिया ने घेर रखा था.’

गुप्ता ने कहा, ‘हमें ध्यान में रखना चाहिए कि इस तरह के मामले कम ही होते हैं और बेहद गंभीर होते हैं.’

झांसी जिला प्रशासन के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि जिले में अब तक कुल 462 मौतें कोविड के कारण हुई हैं, इसमें 174 पिछले साल हुई थीं, जबकि इस साल अब तक 288 लोगों की जान गई है.


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काउंसलिंग और परिवार की मदद

कुछ मरीजों के रिश्तेदारों का कहना है कि आईसीयू वार्डों में आसपास तमाम मौतों को देखकर मरीजों में न केवल मानसिक असर पड़ता है, बल्कि उनका शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है.

नरेंद्र राठी बताते हैं कि कोविड के इलाज के लिए ए लाइफ हॉस्पिटल में भर्ती उनके पिता हर दिन रोते-चिल्लाते रहते हैं.

राठी ने कहा, ‘जब वह भी अपने आसपास किसी मरीज की स्थिति बिगड़ते देखते हैं, तो उन्हें अपने बारे में भी बुरे ख्याल आने लगते हैं. उनकी नाड़ी तेज हो जाती है और दिल की धड़कनें बढ़ जाती है, और वह रोना शुरू कर देते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन हम उन्हें किसी तरह समझा-बुझाकर और उनमें उम्मीदें जगाकर उन्हें शांत कर लेते हैं.’

झांसी जिला प्रशासन के सूत्रों ने बताया कि ‘आईसीयू फीयर साइकोसिस’ के बढ़ते ट्रेंड को देखते हुए अप्रैल में जिले के शीर्ष डॉक्टरों का एक राहत दल गठित किया गया था.

सूत्रों ने बताया, ‘राहत टीम का सुझाव था कि डॉक्टरों को इस तरह प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि कोविड मरीज में इस तरह की भावना बढ़े कि वे उनसे डरें या आतंकित न हों बल्कि उन्हें स्वीकार करें.’

डॉ गुप्ता ने बताया कि डर की इसी मनोवृत्ति की बढ़ती दर पर काबू पाने के लिए महारानी लक्ष्मी बाई अस्पताल में डॉक्टर-काउंसलर की एक टीम नियमित रूप से आईसीयू वार्ड में हर मरीज की काउंसिलिंग करने के लिए पहुंचती है.

उन्होंने कहा, ‘हमारे पास काउंसलर की एक टीम है जो नियमित रूप से सभी मरीजों के पास जाती है. और जरूरत पड़ने पर हम उन्हें डिप्रेशन की दवा भी देते हैं. एक बार जब वे उस डर पर काबू पा लेते हैं, और छुट्टी मिलने के बाद घर पहुंच जाते हैं, तो पूरी तरह सामान्य हो जाते हैं.’

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