नई दिल्ली : कोविड-19 की जांच के लिए अपनी रणनीति बदलते हुए आईसीएमआर ने सोमवार को कहा कि प्रवासी और लौटने वाले लोगों में अगर इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं तो इसके सात दिन के भीतर उनकी कोरोनावायरस के लिए जांच की जाएगी. उसने यह भी कहा कि जांच नहीं हो पाने की स्थिति में प्रसव समेत अन्य आपातकालीन क्लीनिकल प्रक्रियाओं में देरी नहीं होनी चाहिए.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भारत में कोरोना वायरस की जांच के लिए अपनी परिवर्तित रणनीति में यह भी जोड़ा है कि अस्पतालों में भर्ती किसी भी रोगी को और कोविड-19 की रोकथाम और नियंत्रण में लगे अग्रिम पंक्ति के लोगों में इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारी (आईएलआई) के लक्षण दिखने पर उनकी भी आरटी-पीसीआर जांच होगी.
इसके अलावा किसी संक्रमित मामले के सीधे संपर्क में और अत्यंत जोखिम में रहने वाले ऐसे लोग जिनमें लक्षण नहीं हैं, उनकी संपर्क में आने के पांचवें और दसवें दिन के बीच एक बार संक्रमण का पता लगाने के लिए जांच की जाएगी. अभी तक ऐसे मामलों में पांचवें और 14वें दिन के बीच एक बार जांच की जा रही है.
एक अधिकारी ने कहा, ‘आईसीएमआर ने देश में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ने के मद्देनजर अपनी रणनीति में बदलाव किया है. नयी रणनीति का उद्देश्य संक्रमण को और प्रभावी तरीके से फैलने से रोकना तथा कोविड-19 की जांच के मानदंड दायरे में शामिल सभी लोगों को प्रामाणिक निदान प्रदान करना है.
देश में सोमवार को कोविड-19 से मरने वालों की कुल संख्या 3,029 हो गयी और संक्रमण के कुल मामले 96,169 पर पहुंच गये. रविवार सुबह आठ बजे से देशभर में संक्रमण के कुल 5,242 मामले और मौत के 157 मामले दर्ज किये गये हैं.
आईसीएमआर ने कहा, ‘आईएलआई के रूप में ऐसे मामलों को परिभाषित किया गया है जिनमें 38 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक बुखार के साथ सर्दी-खांसी और सांस संबंधी संक्रमण की समस्या हो, वहीं अति गंभीर श्वसन संबंधी संक्रमण (एसएआरआई) मामले में उन्हें रखा गया है जिनमें उक्त लक्षणों के साथ रोगी को अस्पताल में भर्ती करना जरूरी हो जाए.’
अभी तक दिशानिर्देशों के अनुसार हॉटस्पॉट या नियंत्रण (कंटेनमेंट) क्षेत्रों में रह रहे आईएलआई के लक्षण वाले लोगों, एसएआरआई रोगियों और ऐसे स्वास्थ्य कर्मियों जिनमें लक्षण दिख रहे हों, की कोरोना वायरस संक्रमण के लिए जांच की जा रही है.
साथ ही बीते 14 दिन में अंतरराष्ट्रीय यात्रा करने वाले ऐसे लोगों जिनमें लक्षण नहीं हैं तथा संक्रमित लोगों के संपर्क में आ रहे लक्षण वाले लोगों की जांच की जा रही थी.