(पायल बनर्जी)
नयी दिल्ली, 23 जून (भाषा) आनुवंशिक रक्तस्राव विकार ‘हीमोफीलिया ए’ और ‘वॉन विलेब्रांड’ रोग का समय रहते पता लगाने के लिए राष्ट्रीय प्रतिरक्षा रुधिर विज्ञान संस्थान (एनआईआईएच) ने एक सरल और स्वदेशी वहनीय जांच किट विकसित की है।
मुंबई स्थित एनआईआईएच की वैज्ञानिक डॉ. रुचा पाटिल ने कहा कि यह जांच वर्तमान मानक देखभाल के लिए एक आशाजनक विकल्प प्रदान करता है, जो फिलहाल जटिल और महंगी जांच प्रक्रियाओं पर निर्भर है और देश में कुछ ही चिकित्सा संस्थानों में उपलब्ध है।
हीमोफीलिया ए और वॉन विलेब्रांड रोग (वीडब्ल्यूडी) जैसे रक्तस्राव संबंधी विकार, अपर्याप्त जांच सुविधाओं और जांच केंद्रों तक सीमित पहुंच के कारण भारत में महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियां हैं।
एनआईआईएच के वैज्ञानिक डॉ. बिपिन कुलकर्णी ने बताया कि ‘पॉइंट-ऑफ-केयर टेस्ट’ की दर सिर्फ 582 रुपये है, जबकि मौजूदा प्रयोगशाला-आधारित जांच की दर करीब 2,086 रुपये है।
इस जांच किट का आविष्कार पूर्व वैज्ञानिक डॉ. श्रीमती शेट्टी और एनआईआईएच की पूर्व आईसीएमआर पोस्टडॉक्टरल फेलो डॉ. प्रियंका कसाटकर ने किया है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अंतर्गत आने वाले एनआईआईएच, मुंबई और नागपुर स्थित हीमोग्लोबिनोपैथी अनुसंधान, प्रबंधन और नियंत्रण केंद्र (सीआरएचसीएम) की निदेशक डॉ. मनीषा मडकाइकर ने बताया कि विश्व हीमोफीलिया महासंघ ने इन जांच पद्धतियों को खरीदने में रुचि दिखाई है, ताकि उन देशों में इनका उपयोग किया जा सके, जहां ऐसे अधिक मामले सामने आते हैं।
डॉ. मडकाइकर ने कहा, ‘‘भारत के लिए, इस नये त्वरित जांच उपकरण ने प्राथमिक जांच केंद्रों पर भी इसकी जांच को संभव बना दिया है, जिससे यह सुविधा उन लोगों के करीब पहुंच गई है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।’’
उन्होंने कहा कि प्राथमिक जांच केंद्रों और अन्य स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों पर इन जांच किट का उपयोग कर इन रक्तस्राव विकारों का जल्द पता लगाया जा सकता है और इसके मरीजों का उपचार शुरू हो सकता है। उन्होंने कहा कि साथ ही, यह स्वास्थ्य सेवा लागत में नाटकीय रूप से कमी ला सकता है।
आईसीएमआर और स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) की स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन (एचटीए) विश्लेषण टीम ने कहा है कि हीमोफीलिया ए और वीडब्ल्यूडी के लिए यह जांच किट प्राथमिक जांच केंद्रों लिए उपयुक्त है और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा स्तर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में इस जांच को शामिल करने का सुझाव दिया है।
डॉ. कुलकर्णी ने कहा कि वर्तमान में इसे विभिन्न राज्यों में लागू किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह किट 83,000 से अधिक पीड़ितों का पता लगाने में मदद कर सकती है।’’ उन्होंने कहा कि इससे स्वास्थ्य प्रणाली को लगभग 42 करोड़ रुपये की बचत होगी, जो वर्तमान पद्धति से तीन गुना सस्ता है।
हीमोफीलिया ए और वीडब्ल्यूडी दो सबसे आम वंशानुगत रक्तस्राव विकार हैं। इसके मरीज अक्सर जोड़ों में सूजन, मांसपेशियों से रक्तस्राव और महिलाएं मासिक चक्र के दौरान अधिक रक्तस्राव या प्रसव के दौरान जटिलताओं का सामना करती हैं।
डॉ. पाटिल ने कहा, ‘‘ऐसा अनुमान है कि भारत में हीमोफीलिया से 1.5 लाख लोग पीड़ित हैं, लेकिन आधिकारिक तौर पर केवल 27,000 लोगों की ही जांच हो पाती है।’’
उन्होंने कहा कि हीमोफीलिया ए ‘एक्स क्रोमोसोम’ (एक्स लिंक्ड रिसेसिव डिसऑर्डर) के माध्यम से परिवारों में फैलता है।
उन्होंने बताया कि लड़कों को आमतौर पर यह बीमारी होती है, क्योंकि उनमें केवल एक एक्स क्रोमोसोम होता है। वहीं, लड़कियों में आमतौर पर दो एक्स क्रोमोसोम होते हैं और ऐसे में यदि एक में दोषपूर्ण जीन है, तो दूसरा अक्सर इसकी भरपाई कर सकता है।
वहीं, वॉन विलेब्रांड रोग सबसे आम वंशानुगत रक्तस्राव विकार है। यह वॉन विलेब्रांड कारक की कमी या खराबी के कारण होता है, जो रक्त का थक्का बनाने के लिए महत्वपूर्ण प्रोटीन है।
भाषा सुभाष दिलीप
दिलीप
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