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Monday, 13 May, 2024
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IAS अधिकारी जिसने उन्नाव के पत्रकार की पिटाई की, मस्जिद के विवादास्पद विध्वंस का भी हिस्सा था

UP सरकार ने राज्य में पंचायत चुनावों के दौरान उन्नाव में IAS अधिकारी दिव्यांशु पटेल के एक पत्रकार पर हमले की रिपोर्ट तलब की है.

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लखनऊ: आईएएस अधिकारी दिव्यांशु पटेल जिन्हें उत्तर प्रदेश के उन्नाव में पंचायत चुनावों में एक वीडियो पत्रकार पर हमला करते और उसका मोबाइल तोड़ते हुए कैमरे में क़ैद किया गया है, विवादों से अनजान नहीं हैं.

मई में पटेल ने, जो बाराबंकी में सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट थे, शहर में स्थित एक मस्जिद के विवादास्पद विध्वंस के लिए आदेश जारी किए थे. मुस्लिम इकाइयों ने उस समय कहा था कि ये विध्वंस ‘क़ानून के खिलाफ’ था, चूंकि वो ढांचा उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ बोर्ड की संपत्ति थी.

इस विवाद के बाद उन्हें वहां से हटाकर, उन्नाव में मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) के मौजूदा पद पर तैनात कर दिया गया.

दिप्रिंट ने इस ख़बर पर टिप्पणी लेने के लिए, पटेल से फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो सका. दिप्रिंट ने उन्नाव पुलिस अधीक्षक एसआर कुलकर्णी से भी संपर्क की कोशिश की, लेकिन उनसे भी बात नहीं हो पाई.

लेकिन, यूपी अतिरिक्त मुख्य सचिव (सूचना) नवनीत सहगल ने दिप्रिंट को बताया कि दिप्रिंट ने सरकार से इस घटना पर रिपोर्ट तलब की है.

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सहगल ने कहा, ‘सरकार ने उन्नाव ज़िला मजिस्ट्रेट से इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है. इसके बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी’.


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JNU, DU के पूर्व छात्र

यूपी के बलरामपुर के निवासी, पटेल के पास जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में एमए और दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमएड की डिग्री है. 2012 में उनका सीआरपीएफ में बतौर असिस्टेंट कमांडेंट चयन हो गया, लेकिन उन्होंने ज्वॉइन नहीं किया. उनके पिता एपी वर्मा बलरामपुर में संस्कृत के प्रोफेसर हैं.   

सरकारी सूत्रों ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, दिप्रिंट से कहा कि पटेल को अब बीजेपी नेताओं के क़रीब माना जा रहा है. लेकिन, हमले के बाद से सोशल मीडिया पर सामने आईं वीडियोज़ और ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट्स से कथित रूप से पता चलता है कि अधिकारी किसी समय आरएसएस के सख़्त खिलाफ थे.

ऑफिसर का जेएनयू में उनके छात्र दिनों का एक कथित वीडियो वायरल हो गया है. वीडियो में एनडीटीवी को दी गई एक मीडिया बाइट में उन्हें जातिवाद और ब्रह्मणवाद की निंदा करते देखा जा सकता है.

बाराबंकी विवाद के बाद पटेल ने अपना ट्विटर अकाउंट बंद कर दिया था, लेकिन 2019 में आईएएस अधिकारी ने कथित रूप से ट्वीट किया कि जिस संगठन (आरएसएस) को कभी प्रतिबंधित किया गया था, उसे ‘कोरी बकवास नहीं करनी चाहिए’.

वो टाइम्स ऑफ इंडिया की एक ख़बर का जवाब दे रहे थे, जिसमें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का ये कहते हुए हवाला दिया गया था कि सत्ता में चाहे कोई भी रहे, संगठन अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण ज़रूर कराएगा.

आरणक्ष की वकालत करते हुए अधिकारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साधा था. जनवरी 2019 में पटेल ने कथित रूप से ट्वीट किया था कि इंदिरा साहनी केस के अनुसार आरक्षण का आधार आर्थिक मानदंड नहीं हो सकता. आईएएस अधिकारी ने कथित रूप से ट्वीट किया था, ‘बेचारे मोदी, वो इतने हताश हैं कि उन्होंने बुनियादी बातें भी नहीं पढ़ी हैं’.

सरकार के एक सूत्र के अनुसार, पटेल के बीजेपी के ओबीसी नेताओं, ख़ासकर एक वरिष्ठ नेता के साथ अच्छे रिश्ते हैं. सूत्र ने कहा, ‘इसकी वजह से, बाराबंकी मस्जिद विवाद के दौरान उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. बल्कि, पुरस्कार स्वरूप उन्हें उन्नाव में सीडीओ के पद पर बिठा दिया गया’.

लेकिन उनकी ताज़ा हरकतों की सेवारत और रिटायर्ड सिविल सर्वेंट्स की ओर से आलोचना की जा रही है.

पूर्व यूपी-काडर आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप ने कहा, ’मैं उनके इस बुरे व्यवहार पर शर्मिंदा हूं. देश के कुछ दूसरे हिस्सों से पहले भी इस तरह की घटनाओं की ख़बरें आईं हैं. (एलबीएसएनएए (लालबहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन को अपनी ट्रेनिंग प्रक्रिया पर फिर से नज़र डालने की ज़रूरत है, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए’.

तमुलनाडु पर्यावरण एवं वन विभाग के प्रमुख सचिव और दूरदर्शन के एक पूर्व महानिदेशक सुप्रिय साहू ने ट्वीट किया, ‘मिस्टर सीडीओ, आपके व्यवहार से मनमानी और हेकड़ी की गंध आती है. एक अधिकारी को लोगों के साथ इस तरह का बर्ताव नहीं करना चाहिए. ऐसी घटनाओं से सेवा की बदनामी होती है. शर्मनाक’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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