नई दिल्ली: अनंत तांबे की उम्र महज 32 साल थी. भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारी तांबे केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अतिरिक्त निजी सचिव के रूप में कार्यरत थे.
तांबे देश के ऐसे एक और सिविल सेवक थे जिन्होंने गत सोमवार को कोविड-19 के कारण दम तोड़ दिया.
भारत इस समय जब बेहद भयावह दूसरी लहर से जूझ रहा है तो कुलीन श्रेणी में शुमार सिविल सेवा, जिसे हमेशा से ही देश में प्रशासनिक व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, भी इसकी चपेट में आने से बच नहीं पाई है.
तांबे से ठीक एक दिन पूर्व यानी 30 अप्रैल को बिहार के मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह, जो 1985-बैच के आईएएस अधिकारी थे की कोविड-19 के कारण पटना के एक अस्पताल में मौत हो गई.
अरुण कुमार सिंह ऐसे जान गंवाने वाले बिहार के एकमात्र आईएएस अधिकारी नहीं हैं. 14 अप्रैल को बिहार कैडर के ही 2008 बैच के अधिकारी विजय रंजन की भी पटना में कोविड-19 के कारण मौत हो गई थी.
पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में 1985 बैच के आईएएस अधिकारी दीपक त्रिवेदी 29 अप्रैल को सेवानिवृत्ति से महज एक दिन पहले कोविड-19 के शिकार बन गए.
उनसे पहले, गुजरात कैडर के डीआईजी रैंक के एक आईपीएस अधिकारी महेश नायक ने कोविड के कारण 11 अप्रैल को वडोदरा के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया.
वायरस ने अन्य सिविल सेवाओं को भी अपना निशाना बनाया है. पिछले कुछ हफ्तों में भारतीय सूचना सेवा (आईआईएस) के कम से कम तीन वरिष्ठ अधिकारी—पुष्पवंत शर्मा, संजय कुमार श्रीवास्तव और मणिकांत ठाकुर कोविड-19 की चपेट में आकर जान गंवा चुके हैं.
सेवारत अधिकारियों की इस तरह मौतें होने से देश के सिविल सेवा हलकों में दहशत की स्थिति उत्पन्न हो गई है, तमाम अधिकारियों को अपने और अपने परिजनों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता सता रही है.
केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘इसके अलावा कई जूनियर अधिकारियों की भी मौतें हुई हैं. कई मामलों में तो सरकार की ओर से कोई औपचारिक श्रद्धांजलि भी नहीं दी गई. अब भी वरिष्ठ अधिकारियों को दफ्तर बुलाया जा रहा है. ये ज्यादातर 50-55 साल की उम्र के लोग हैं और संक्रमित हो रहे हैं.’
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‘सरकार नहीं रख रही आंकड़े, काम करने की अलग-अलग टाइमिंग एक मजाक’
केंद्र सरकार में कार्यरत एक अन्य अधिकारी ने शिकायत की कि इसका कोई डाटाबेस नहीं रखा जा रहा है कि कितने सरकारी कर्मचारी संक्रमित हैं.
उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि निजी कंपनियां भी यह बताने में सक्षम होंगी कि उनके कार्यालय में कितने लोग संक्रमित हैं लेकिन सरकार ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की है. यह संख्या चिंताजनक हो सकती है, फिर भी अधिकारियों से काम पर आने को कहा जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘डीओपीटी (कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) ने काम पर आने के लिए जो अलग-अलग समय निर्धारित किया है, वो तो एकदम मजाक ही है.’
डीओपीटी के निर्देशों के अनुसार, उपसचिव स्तर और उससे ऊपर के सभी अधिकारियों को नियमित रूप से कार्यालय आना है. एक समय में ज्यादा भीड़ न इसके लिए अधिकारियों की ड्यूटी के समय के तीन स्लॉट निर्धारित किए गए हैं, जिस दौरान वे दफ्तर में मौजूद रहेंगे—सुबह 9 बजे से शाम 5.30 बजे तक, सुबह 9.30 से शाम 6 बजे तक और सुबह 10 बजे से शाम 6.30 बजे तक.
एक दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘वे मूलत: यह सुनिश्चित करने में कामयाब रहे हैं कि कुल एक घंटे की अवधि में कोई भीड़-भाड़ न हो पाए.’
यद्यपि डीओपीटी प्रवक्ता ने दिप्रिंट की तरफ से इस पर मांगी गई प्रतिक्रिया का कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन एक विभागीय अधिकारी ने कहा कि सिविल सेवकों को तो हर समय मुस्तैदी से तैयार रहना होता है और ऐसे संकट के समय में तो उनकी सेवाएं और भी जरूरी और अपरिहार्य हो गई हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि कोविड प्रबंधन के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार विभागों में ज्यादा से ज्यादा मैन पॉवर बनी रहे…सरकार पर इस समय काम का बहुत ज्यादा बोझ है.’
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि सरकार उन अधिकारियों के डाटाबेस नहीं बना सकती है जो संक्रमित हैं क्योंकि ये ऐसे कठिन समय में देश की ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ को प्रभावित कर सकता है.
आपसी बातचीत में दहशत और बेबसी दिख रही
सिविल सेवक निजी तौर पर बातचीत में स्वीकार करते हैं कि वे पहले कभी इतने ‘बेबस’ नहीं रहे हैं.
हाल ही में जांच में कोविड पॉजिटिव निकली एक अधिकारी ने अपने सहयोगियों के साथ व्हाट्सएप पर बातचीत में बताया कि उन्हें टेस्ट कराने में तीन दिन लग गए और कोविड की वजह से उसकी सास की मृत्यु हो गई क्योंकि वह एक बेड का इंतजाम नहीं कर पाईं.
इस बातचीत के बारे में जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने कहा, ‘यह तस्वीर दिखाती है कि अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों को कभी भी मदद मिल पाने वाली व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. हमारे पास मदद के लिए रिश्तेदारों के फोन आते हैं और हमारे लिए बेहद शर्मिंदगी की स्थिति होती है कि हम कुछ कर नहीं सकते. इस समय तो हमें खुद के संक्रमित होने पर भी अस्पताल में बेड मिल जाए यही बड़ी बात है.’
यूपी कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी एस.पी.सिंह कहते हैं, ‘भारत में सिस्टम शायद ही कभी काम करता है, केवल कनेक्शन काम आते हैं. लेकिन इस बार तो कनेक्शन भी किसी काम आने की स्थिति में नहीं रह गए हैं. सभी अधिकारियों को लगता है कि यदि को उनके परिवार के साथ कोई समस्या हुई तो वह उनका भी इलाज करा पाने की स्थिति में नहीं होंगे.’
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने केवल कर्मचारियों को टीका लगाने की व्यवस्था की है, उनके नजदीकी परिजनों को नहीं..ऐसे में सबको अपने पति या पत्नी या बच्चों के साथ किसी अनहोनी का डर सताता रहता है. इनके लिए वर्क फ्रॉम होम जैसी कोई कारगर नीति भी नहीं है. हर कोई जोखिम की स्थिति में है.’
पिछले हफ्ते आयुष्मान भारत के पूर्व सीईओ इंदु भूषण के ट्वीट ने सिस्टम का हिस्सा बने उन लोगों की असमर्थता और असहायता पर ध्यान आकृष्ट किया था जिन पर संकट को दूर करने का जिम्मा है.
उन्होंने ट्वीट करके कहा था, ‘हमारे आसपास जो कुछ हो रहा है वो दिल दहला देने वाला है. मैं जितने भी लोगों को जानता हूं उन सबके परिवार में कोई न कोई ऐसा सदस्य है जो कोविड पॉजिटिव है या इसकी वजह से जान गंवा चुका है. मेरे पास इन दिनों परिवार या दोस्तों के फोन आ रहे थे और ज्यादातर बेड दिलाने में मदद चाहते थे लेकिन ज्यादातर मामलों में मैं नाकाम ही रहा हूं.’
दूरदर्शन की पूर्व महानिदेशक अर्चना दत्ता, जिन्होंने कोविड-19 के कारण अपने पति और मां को खो दिया, ने भी अस्पताल में बेड का इंतजाम कर पाने पर असमर्थ रहने की पीड़ा व्यक्त करने के लिए ट्विटर का सहारा लिया.
उन्होंने ट्वीट किया था, ‘मेरे जैसे तमाम लोग शायद यह सोचते होंगे कि उनके साथ ऐसा नहीं हो सकता! लेकिन, ऐसा हुआ! मेरी मां और पति दोनों का बिना किसी इलाज के निधन हो गया. हम दिल्ली के उन सभी शीर्ष अस्पतालों तक एक्सेस पाने में नाकाम रहे, जहां जाते रहते थे! हां, निधन के बाद उन्हें पॉजिटिव घोषित किया गया था.’
ऊपर उद्धृत तीसरे अधिकारी ने कहा, ‘जो अधिकारी सेवानिवृत्त हो गए हैं, वे इसे खुलकर कह सकते हैं. लेकिन सच्चाई यही है कि हम सभी अभी एक ही नाव में सवार हैं. पूरा अनौपचारिक सरकारी नेटवर्क ध्वस्त हो चुका है.’
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