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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशअधिकारियों के इस्तीफों पर बंटी आईएएस बिरादरी, कुछ के लिए ये शुरुआती ‘ख़तरे की घंटी’

अधिकारियों के इस्तीफों पर बंटी आईएएस बिरादरी, कुछ के लिए ये शुरुआती ‘ख़तरे की घंटी’

अधिकारियों का कहना है कि चार इस्तीफों को एक चलन बताना काफ़ी जल्दीबाज़ी होगी, लेकिन साथ ही मामले पर चुप्पी के लिए ये लोग आईएएस एसोसिएशन को भी लताड़ लगाते हैं.

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नई दिल्ली : पिछले कुछ हफ्तों में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से संबंधित इस्तीफों की वजह से आईएएस बिरादरी में कौतूहल है और ये विचार बंटे होने के साथ चिंतित भी हैं. अचानक से वित्त मंत्रालय से दरकिनार किए जाने के बाद पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग ने तुरंत सरकार से इस्तीफा दने की पेशकश कर दी. उनके इस इस्तीफे को उनके साथ काम करने वाले कुछ लोगों द्वारा ‘विरोध में दिए गए इस्तीफे’ के तौर पर देखा गया.

फिर अगस्त में अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिज़ोरम और संघ शासित प्रदेशों के (एजीएमयूटी) कैडर और एक युवा अधिकारी जी कनन ने भी इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के बाद उन्होंने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर में सरकार द्वारा उठाए गए कदम के ख़िलाफ़ सार्वजनिक तौर पर अपना विरोध और मोहभंग प्रकट किया. कुछ दिनों बाद कर्नाटक कैडर के अधिकारी एस शशिकांत सेंथिल ने आईएएस सेवा से इस्तीफा दे दिया.

इस्तीफे के बाद उन्होंने कहा कि एक ऐसे दौरा में जब ‘एक बहुलतावादी लोकतंत्र के बेहद मौलिक मूल्य को तार-तार किया जा रहा है’ तो एक आईएएस अधिकारी बने रहना ‘अनैतिक’ होगा. ठीक उसी दिन एजीएमयूटी कैडर के अधिकारी कशिश मित्तल ने भी इस्तीफा दे दिया. नीति आयोग के लिए काम कर रहे मित्तल ने पूर्वोत्तर में तबादला किए जाने की वजह से इस्तीफा दिया.


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ख़तरे की घंटी

हालांकि, इस्तीफों की संख्या इतनी नहीं है कि इसे अभी एक ट्रेंड घोषित किया जा सके, लेकिन ये ऐसे अधिकारियों के बीच चर्चा का एक गर्म विषय बन गया है. ऐसी चर्चाओं में शामिल बिरादरी के ज़्यादातर अधिकारियों का पूरी तरह से मानना है कि ये शुरुआती ‘ख़तरे की घंटी’ है. रिटायर हो चुके वरिष्ठ आईएएस अधिकारी टीआर रघुनंदन ने कहा, ‘कम से कम दो अधिकारियों ने अपने इस्तीफे के बाद ख़ुले तौर पर इसके पीछ चेतना के अभाव का हवाला दिया. हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए.’

उन्होंने ये भी कहा कि इन इस्तीफों के मामले में ग़ौर करने लायक बात ये है कि अधिकारियों ने निजी क्षेत्र में बेहतर अवसरों के लिए अपना नौकरी नहीं छोड़ी बल्कि उन्होंने नैतिकता की वजह से उस भविष्य का त्याग कर दिया जो बहुत सुरक्षित था. रघुनंदन ने कहा, ‘उन्हें उनकी पेंशन नहीं मिलेगी…उन्होंने बहुत कुछ दांव पर लगा दिया.’

पंजाब कैडर के एक वरिष्ठ अधिकारी केबीएस सिंधु इस बात से सहमति जताते हैं. उन्होंने कहा, ‘अभी इसे कोई ट्रेंड नहीं माना जा सकता. हां, ये शुरुआती इशारे ज़रूर हैं. आईएएस एसोसिएशन, सरकार और डीओपीटी को इस ओर ध्यान देना चाहिए. इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता क्योंकि पहले इस्तीफों के बाद ऐसे सार्वजनिक बयान नहीं दिए जाते थे और इसके पीछे (इस्तीफा देने वालों) की आवाज़ कमज़ोर किए जाने जैसे कारण भी सामने नहीं आते थे.’

आचरण से जुड़े नियम कमज़ोर किए जा रहे हैं

अधिकारी इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि पहले निजी क्षेत्र में बेहतर अवसरों से लेकर राजीनित में शामिल होने जैसे कारणों को लेकर इस्तीफे होते रहे हैं. लेकिन ‘राष्ट्रीय मुद्दों’ पर अधिकारियों का इस्तीफा होना बिल्कुल नया है और ऐसा उनकी जानकारी में तो पहले कभी नहीं हुआ.

सिंधु ने कहा, ‘एक बात ये भी कि ये इस्तीफ़े (कंडक्ट रूल्स) आचरण से जुड़े नियम की ओर फिर से ध्यान खींचते हैं. अपनी मूल प्रकृति की वजह से इन नियमों को संवैधानिक तौर पर बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी के मामले में ‘उचित प्रतिबंध’ माना जा सकता है. ये एक मामला है जिसे क़ानूनी तौर पर परखा नहीं गया है.’ भारत की नौकरशाही को चलाने वाले नियमों के मुताबिक कोई भी अधिकारी गोपनीय सूचना को सार्वजनिक नहीं कर सकता, न ही सरकार की आलोचना कर सकता है और उसे राजनीतिक तौर पर तटस्थ होना होता है.


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कनन ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि इस सेवा से जुड़ने से पहले मुझे कंडक्ट रूल्स का पता नहीं था. लेकिन वर्तमान हालात में मुझे लगा कि मेरे बोलने की आज़ादी मेरी नौकरी से ज़्यादा ज़रूरी है…मुझे इन नियमों का पता है, इसी वजह से मैंने इस्तीफा दे दिया क्योंकि मैं नौकरी में रहकर ऐसा नहीं कर सकता था.’

‘मुझे लगता है कि असहमति के लिए जगह सिकुड़ रही है, और यह अर्थव्यवस्था, समाज लोकतंत्र या इस देश की राजनीति के लिए अच्छा नहीं है’.

सेवा से अपने इस्तीफे के बाद, कन्नन को सिविल सेवा वाले कुछ साथियों से भी काफी ट्रोलिंग और आलोचना का सामना करना पड़ा है. कुछ ने तर्क दिया है कि अधिकारियों को अपनी नौकरी पर बने रहना चाहिए, और कुशलता व जिम्मेदारी से अपना काम करना चाहिए.

राष्ट्र की सेवा करना

एक अन्य आईएएस अधिकारी ने बताया कि कई बार सेवा छोड़ने वाले अधिकारी व्यक्तिगत और पेशेवर असंतोष के कारण ऐसा करते हैं. ‘यूपीएससी परीक्षा देते समय, मध्यम वर्ग के लोगों को लगता है कि यह शक्ति साझा करने के लिए उनकी सबसे अच्छी सौदा है … जब वे सेवा में आते हैं, तो उन्हें एहसास होता है कि कोई वास्तविक शक्ति नहीं है, चीजों को नया करने या बदलने की कोई गुंजाइश नहीं है, खासकर आजकल.’

‘यह आक्रोश का बड़ा कारण बनता है. विशेष रूप से, यदि आपको फील्ड पोस्टिंग नहीं दी जाती है, तो आपका कद कम कर क्लर्क, हस्ताक्षर करने और फ़ाइलों को पारित करने के लिए कर दिया जाता है तो ऐसे में महत्वाकांक्षी निराश महसूस करते हैं.’

अधिकारी ने मित्तल का उदाहरण लिया, जिन्होंने पूर्वोत्तर में स्थानांतरित होने पर इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने सवाल किया, ‘यूपीएससी परीक्षा देते समय, सभी कहते हैं कि वे राष्ट्र की सेवा करना चाहते हैं … पूर्वोत्तर भी देश का हिस्सा है, वहां सेवा क्यों नहीं?’ ‘नौकरशाही के इन मुद्दों के बारे में कम बात की जाती हैं … जब युवा अधिकारियों को देश के दूरदराज के हिस्सों में तैनात किया जाता है, तो वे बहुत निराशा का सामना करते हैं, और हर कोई सामना नहीं करता है.’


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एसोसिएशन की चुप्पी

हालांकि अधिकारी इस बात पर बंटे रहते हैं कि क्या सेवा से इस्तीफा देना सही तरीका है अगर कोई सेवा में नैतिक रूप से या पेशेवर रूप से अक्षम महसूस करता है, तो इस पर आईएएस एसोसिएशन की चुप्पी ने कई लोगों को परेशानी में डाला है.

रघुनंदन ने कहा, ‘मैं इसे रिकॉर्ड पर रखना चाहता हूं कि आईएएस एसोसिएशन पूरी तरह से रीढ़हीन हो गया है.’ ‘जब युवा, प्रतिभाशाली अधिकारी अपनी सेवा से इन समस्याओं का हवाला देते हैं तो वे कैसे नहीं बोल सकते?’

दिप्रिंट इस पर टिप्पणी के लिए आईएएस एसोसिएशन पहुंचा, लेकिन इसने अभी तक इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार किया है.

(इस न्यूज को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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