(तस्वीर के साथ)
पणजी, आठ जून (भाषा) गोवा के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे ने एक सरकारी अस्पताल के चिकित्सक को निलंबित करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि उसने एक मरीज के साथ ‘‘उग्र व्यवहार’’ किया था।
मंत्री ने शनिवार को कहा कि वह उस मरीज के लिए खड़े होने के लिए माफी नहीं मांगेंगे, जिसका इलाज करने से इनकार कर दिया गया था।
राणे ने कहा कि उन्होंने यह कार्रवाई एक वरिष्ठ पत्रकार की शिकायत के बाद की। मंत्री के मुताबिक, पत्रकार ने बताया था कि गोवा चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में चिकित्सक ने उनकी सास के साथ दुर्व्यवहार किया है।
गोवा के बम्बोलिम में स्थित जीएमसीएच एक सरकारी अस्पताल है जिसमें 1,000 से अधिक बिस्तर हैं। यह गोवा के साथ-साथ महाराष्ट्र और कर्नाटक के आस-पास के इलाकों के मरीजों को स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करता है।
मंत्री ने अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. रुद्रेश कुर्तीकर को फटकार लगाई थी और बाद में उन्हें निलंबित करने का आदेश दिया।
राणे ने शनिवार को जीएमसीएच का औचक निरीक्षण करने के दौरान अपना आपा खो दिया था।
उन्होंने बाद में शनिवार शाम संवाददाताओं से कहा, ‘‘हां, स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर मैंने हस्तक्षेप किया और मैं स्वीकार करता हूं कि मेरे लहजे और शब्दों में अधिक संयम हो सकता था। मैं आलोचना से परे नहीं हूं। मैंने जिस तरह से संवाद किया, उसकी पूरी जिम्मेदारी मैं लेता हूं और मैं आपको आश्वासन देता हूं कि ऐसा दोबारा नहीं होगा।’’
मंत्री ने कहा, ‘‘हालांकि, मैं उस मरीज के साथ खड़ा होने के लिए माफी नहीं मांगूंगा।’’
उन्होंने कहा कि समाज में चिकित्सकों का स्थान बहुत ऊंचा है और जीएमसीएच में अधिकांश चिकित्सक बहुत समर्पण के साथ काम करते हैं।
राणे ने कहा,‘‘लेकिन जब अहंकार कर्तव्य में शामिल जाता है, जब करुणा की जगह उदासीनता आ जाती है, तो कार्रवाई करना मेरी जिम्मेदारी है।’’
मंत्री सोशल मीडिया पर तथा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा ड्यूटी पर तैनात सीएमओ (मुख्य चिकित्सा अधिकारी) को निलंबित करने के उनके कदम के खिलाफ की गई आलोचना पर प्रतिक्रिया दे रहे थे।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले कुछ घंटों में गोवा चिकित्सा महाविद्यालय में हुई घटना और ड्यूटी पर मौजूद एक चिकित्सक के निलंबन के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा गया है। मुझे लगता है कि इस पर सीधे तौर पर बात करना महत्वपूर्ण है, न केवल आपके स्वास्थ्य मंत्री के रूप में, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि किसी भी नागरिक को बुनियादी चिकित्सा देखभाल से वंचित न किया जाए, खासकर बुजुर्गों को, जो हमारे सर्वोच्च सम्मान और देखभाल के हकदार हैं।’’
भाषा धीरज सुभाष
सुभाष
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