कारगिल का युद्ध जीते पूरे 21 साल हो चुके हैं, इस दिन को देश विजय दिवस के रूप में मनाता है. इस कारगिल पर विजय के लिए देश ने कई कुर्बानियां दी हैं. हमने इस युद्ध में 527 जवान खोए और 1363 जवान घायल हुए थे. कारगिल युद्ध हमारे वीरों की गाथाओं से भरा हुआ है. इसने कई दर्द भी दिए हैं. वो यादें जब भी जेहन में आती हैं तो दिल में टीस उठती है और आंखें बरबस उन जवानों को याद कर भर जाती हैं. आवाज़ रुंध जाती है.
इस युद्ध में जिस जवान की जाबांजी को देश आज भी सैल्यूट करता है वह हैं कैप्टन कारिअप्पा. पांच पारा के कैप्टन बालयेदा मुथन्ना कारिअप्पा (बी एम कारिअप्पा) की जाबांजी ही थी कि वह न केवल खुद बचकर आए बल्कि अपनी पूरी टुकड़ी को बचा लाए.
जब दुश्मन पाकिस्तानी महज उनकी टुकड़ी से 40 मीटर दूर था और सामने से वो आरपीजी से गोलियां बरसा रहा था, रॉकेट लांचर से निकलते छर्रे जवानों के शरीर को जख्मी कर रहे थे तब उस जाबांज ने अपने रेडियो सेट को उठाकर कोनिकल की पहाड़ी पर अपना लोकेशन बताया और बोफोर्स चलाने को कहा था. उन पलों को याद करते हुए आज के ब्रिगेडियर कारिअप्पा कहते हैं, ‘मेरी टीम में उस समय 23 जवान थे. मैं जब रेडियो सेट पर बोफोर्स के लिए आर्टिलरी अफसर से कह रहा था तब मुझे वहां से डांटा जा रहा था कि अपने पे ही गोले दागने की बात कह रहे हो…….आगे की बात लिखी नहीं जा सकती..
ब्रिगेडियर बताते हैं, ‘वह 23-24 जुलाई की रात की बात होगी. दुश्मन हमारे और पास आ चुका था..हमारे पास जितनी भी गोलियां और हथियार थे वो उनसे निपटने के लिए न के बराबर थे.’ ब्रिगेडियर यह बताते हुए थोड़ी देर के लिए शांत हो जाते हैं..तब तक दो जवान हमारी टीम के मारे जा चुके थे और कई गंभीर रूप से घायल हो चुके थे. अगर हम आर्टिलरी सपोर्ट नहीं लेते तो हमारे बंदों की शहादत बेकार चली जाती और दुश्मन पहाड़ी पर कब्जा कर लेते.
शुक्र है तू जिंदा है
कैप्टन के इस आदेश के बाद उनकी टुकड़ी के सभी जवानों के चेहरे पर मौत का सन्नाटा था…हर किसी को पता था उनकी मौत सामने है लेकिन उस पूरी टुकड़ी को अपने कैप्टन पर पूरा भरोसा था कि वो हमारे साथ कुछ गलत नहीं होने देंगे. फिर भी विश्वास इस आदेश के बाद डगमगा रहा था. कुछ सेकेंड तक सभी अपने प्यारों को याद कर रहे थे..
मैं खुद..मैंने एक महीने पहले मां खोई थी..डैड समझ सकते थे लेकिन बाप का दिल नहीं समझ सकता..इन सबके बीच दुश्मन की दूरी और कम हो चुकी थी. और हमारे साथी थोड़ा पीछे होकर पॉजिशन ले चुके थे..गोला आया हम सभी सिर झुकाए पत्थरों के पीछे थे. हमारे चारों तरफ खून, मांस के लोथड़े और …..हम जीत चुके थे.. जब बोफोर्स के गोले दागने बंद हुए और हमने सिर ऊपर किया तो सभी जिंदा थे…एक दूसरे को गले लगा रहे थे..कई जवानों के आंसू रुक नहीं रहे थे..हमने फतह कर लिया था..मेरी चोट मेरा खून, और कह रहे थे शुक्र है तू जिंदा है.
कैप्टन कारिअप्पा के नेतृत्व में टुकड़ी ने बिना बड़े नुकसान के दुश्मन को ढेर कर अपना टारगेट हासिल कर लिया था, कैप्टन कारिअप्पा के इस अदम्य साहस के लिए उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. वह बताते हैं कि कैसे हमने हर दिन कोनिकल की पहाड़ी पर दुश्मनों को तैयारी करते देखा था. हम देख रहे थे की भारत और पाकिस्तान के बीच सेना हटाने के समझौते के बाद भी पाकिस्तान एलओसी की इस पहाड़ी पर अपनी तोपें, सेना के जवान और युद्ध की तैयारी कर रहा था. हम ये भी देख रहे थे की वो हमारे लिए कैसे लैंड माइंस बिछा रहे थे..एक तो पहाड़ी की चढ़ाई बिलकुल सीधी और उस पर ये लैंड माइंस..सामने मौत..
कौन किसके लिए रहा लकी
कई-कई बार बात करते हुए उन हादसों और एक-एक कर दुश्मन के वार से खोए साथियों को याद कर ब्रिगेडियर चुप हो जा रहे थे. ब्रिगेडियर इन 21 सालों में किसे सबसे ज्यादा याद करते रहे हैं? बरबस ही बोले नामदेव पवार.
ब्रिगेडियर बताते हैं कि जब मैं दुश्मन पर वार करने के लिए रॉकेट लांचर उठाया तो नामदेव ने मेरे को झटके से संगड़ (पत्थर की दीवार) के पीछे खींचा. और कहा- ‘आप अपनी जान को जोखिम में क्यों डाल रहे हो.’
जहां से नामदेव ने मुझे खींचा कुछ मिनटों के बाद वहां पर आरपीजी के गोले आकर गिरे. अगर वो वहां से मुझे नहीं खींचता तो मैं आज आपके सामने नहीं होता.
नामदेव ने कहा जब तक आप रहोगे हम सबका हौंसला बना रहेगा.
तभी दुश्मनों की तरफ से लगातार आते गोले से कुछ छर्रे मेरे सिर और गले पर लग चुके थे. मेरे सिर से खून बह रहा था. ‘नामदेव चिल्लाया साहब को चोट लगी है…सब शांत हो चुके थे..फिर सभी मेरे पास आए और मुझे लगे स्पिलंटर निकाले और उन्होंने मेरी पट्टी की.’
नामदेव की वीरता को सैल्यूट करते हुए ब्रिगेडियर ने बताया कि कैसे मैं अपने जवानों को बचाना चाह रहा था और मेरी पूरी टुकड़ी मुझे. जब दुश्मन आरपीजी से फायर कर रहे थे तो मुझे राकेट लांचर से दुश्मन पर हमला बोलने के लिए चट्टान से बाहर आना था..मैंने प्रकाश असवाल से 150 मीटर का रेंज सेट करने को कहते हुए लांचर लेकर बाहर निकला तब तक फिर नामदेव पवार ने मुझे सेंगर के अदंर खींच लिया था.
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2019 में ब्रिगेडियर कारिअप्पा से की गई बातचीत.
आपको भी लगी हैं गोलियां
मैं अपने जवानों का हौंसला बढ़ाने के लिए एक सेंगर से दूसरे सेंगर जा रहा था…फिर मैं अपने दूसरे जवान युद्धवीर के पास पहुंचा तो किसी ने मुझे चिल्ला कर बताया कि साहब काउंटर अटैक आ रहा है..मैंने पूछा कितने बंदे हैं…..कहा बंदे ही बंदे हैं..वह करीब 100 थे. फिर मेरे जवानों के गोलियां लग रही थीं..मेरी चिंता बढ़ रही थी, युद्धवीर ने पूछा क्या हुआ साहब -तब तक एलएनजी (लाइट मशीन गन) पर बैठे हमारे जवान के मुंह से गोली आर-पार हो चुकी थी..
हमारे पास बिलकुल समय नहीं था..मेरे माथे पर चिंता की लकीर देख युद्धवीर आगे आया उसने मशीनगन संभाली, कई दुश्मनों को गिराया..लेकिन एक गोली उसके हाथ पर लगी और उसका हाथ बेकाबू हो गया था..हारा नहीं..उसने शर्ट खोली उसके अंदर हाथ डाला और गोलियां चलाता रहा…मैंने कहा री- इंफोर्समेंट आ रही है तुम जाओ..वो बोला साहब चोट तो आपको लगी है दर्द तो आपको भी हो रहा होगा. अगर आप दर्द झेल सकते हैं तो मैं भी झेल सकता हूं. और मैं चुप था..
ब्रिगेडियर बताते हैं कि बगल वाली पहाड़ी पर 9 लोगों के पैर माइंस पर पड़ने से फट चुके थे.. मुझे बार-बार नीचे बुलाया जा रहा था..बोफोर्स चलाने के बाद हम जीत चुके थे. कोनिकल पर विजय पा चुके थे. मुझे और घायल जवानों को नीचे बुलाया जा रहा था…तभी नामदेव पवार मेरे पास आया और बोला साहब मुझे पता है आप जब नीचे जाओगे तो आपको दूसरे मिशन के लिए कहीं और भेज देंगे..मैं भी आपके साथ चलूंगा…मैंने पूछा क्यों…उसने कहा..आप मेरे लिए लकी हो, मुझे लगता है कि मैं आपके साथ जिस मिशन पर भी जाऊंगा सुरक्षित आऊंगा.
हम बेस में पहुंचे. बेस में पहुंचने के बाद नामदेव पवार को किसी और मिशन पर भेज दिया गया. लेकिन मैं बटालिक से जब लेह पहुंचा तब तक कारगिल का युद्ध खत्म हो चुका था और मैं धीरे-धीरे ठीक (रिकवर) हो रहा था. उस मिशन पर मैं उसके साथ नहीं जा पाया, वो गहरी शाम थी जब एक बंदा मेरे पास आया और पता नहीं क्यूं मुझे आभास (डेजावू) हुआ कि मुझे बहुत बुरी खबर देने वाला है और उस ऑपरेशन में नामदेव शहीद हो गया था और मैं उसे खो चुका था. मैंने नामदेव खो दिया था…
ये तो है वो जाबांजी की कहानी जो हमारे दुश्मनों के दांत खट्टे कर इन वीरों ने इतिहास रचा. कुछ ने इस युद्ध में वीरता की कहानी लिखी और दुनिया से कूच कर गए. लेकिन मेरी एक जिज्ञासा जो मुझे हमेशा तंग करती है..जब एक महीने से अधिक समय तक युद्ध चला और दिन रात चला…ऐसे में हमारे जवानों के भूख प्यास का क्या…शायद आप जानकर शर्मिंदा हो जाएंगे यह जानकर कि इस पूरे महीने हमारे जवानों ने खाना नहीं खाया, पानी नहीं पिया. खाने के लिए उनके पास नमकीन और मीठे शकर पारे थे और पीने के लिए गोले बारूद से काली पड़ चुकी बर्फ जो अब पिघल रही थी…