नई दिल्ली: न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र उपाध्याय को दिए अपने छह पन्नों के स्पष्टीकरण में कहा कि जिस स्टोररूम में आग लगी थी, वह मुख्य घर से अलग था, खुला था और सभी के लिए आसान था. उन्होंने कहा कि घटना की रात घटनास्थल पर मौजूद उनके कर्मचारियों ने “मौके पर कोई कैश नहीं देखा”.
उन्होंने गलत रिपोर्टिंग के लिए मीडिया की आलोचना की और निराशा जताई की उन्हें फंसाने या बदनाम करने से पहले ठीक से जांच नहीं की.
उनके जवाब में उन्होंने कहा, “मैं साफ तौर पर कहना चाहता हूं कि मैंने या मेरे परिवार के किसी सदस्य ने कभी भी उस स्टोररूम में कोई कैश नहीं रखा और मैं इस आरोप की कड़ी निंदा करता हूं कि कथित कैश हमारा था.” यह घटना से संबंधित आधिकारिक दस्तावेज़ में से एक का हिस्सा है जिसे शनिवार रात सुप्रीम कोर्ट के पोर्टल पर अपलोड किया गया था.
न्यायमूर्ति वर्मा को तीन-सदस्यीय समिति द्वारा जांच का सामना करना पड़ेगा, जिसका गठन शनिवार को किया गया था, भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने न्यायाधीश के आवास पर जले हुए नोटों मिलने के आरोपों पर दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र उपाध्याय की प्रारंभिक रिपोर्ट पर विचार करने के बाद किया था. सीजेआई खन्ना द्वारा पैनल गठित करने से पहले न्यायमूर्ति वर्मा की प्रतिक्रिया पर भी ध्यान दिया गया.
जांच समिति में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी एस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल हैं.
अगर समिति को आरोपों में दम लगता है, तो सीजेआई खन्ना न्यायमूर्ति वर्मा के इस्तीफे का अनुरोध कर सकते हैं. अगर न्यायाधीश पद छोड़ने से इनकार करते हैं, तो सीजेआई खन्ना के पास न्यायमूर्ति वर्मा के महाभियोग के लिए जांच समिति के निष्कर्षों को संसद में भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.
न्यायमूर्ति वर्मा के जवाब में मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय के सचिव द्वारा तैयार की गई आधे पृष्ठ की रिपोर्ट का भी संदर्भ दिया गया है, जिन्होंने मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर 15 मार्च की रात को घटनास्थल का दौरा किया था. न्यायमूर्ति वर्मा ने बताया कि इस निरीक्षण के दौरान भी अधिकारी को घटनास्थल पर किसी भी तरह की कैश नहीं मिला.
जवाब के अनुसार, उस निरीक्षण के बाद और मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय के निर्देश पर, जले हुए स्टोररूम को छुआ नहीं गया है. मलबे के बारे में, जिसे बचाया नहीं जा सकता था, उन्होंने कहा कि इसे हटा दिया गया, लेकिन यह घर में जमा है. उन्होंने “किसी भी तरह के आरोप को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया, अगर ऐसा किया गया हो, कि हमने स्टोररूम से कैश निकाला है”.
उन्होंने कहा, “मैं आपसे यह भी आग्रह करूंगा कि आप इस बात पर भी विचार करें कि जिस परिसर में हम रहते हैं और जिसका इस्तेमाल हम परिवार के तौर पर करते हैं, वहां से कोई भी कैश बरामद नहीं हुआ है.” उन्होंने स्पष्ट किया कि जिस कमरे में आग लगी और जहां कथित तौर पर कैश मिला, वह परिवार के रहने के कमरे से अलग था.
जले हुए नोटों के वीडियो और तस्वीरों को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि उन्होंने पहली बार उन्हें तब देखा जब 17 मार्च को लखनऊ से लौटने पर वे मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय से मिले थे. उन्होंने याद किया कि उसी दिन उन्होंने घटना के पीछे किसी साजिश का संदेह जताया था.
पत्र में पिछले साल दिसंबर की घटनाओं के सिलसिले का विवरण दिया गया है, जब उन्होंने दावा किया था कि धोखाधड़ी के एक मामले में उनकी संलिप्तता के बारे में “निराधार आरोप” सोशल मीडिया पर वायरल किए गए थे.
उन्होंने दोहराया कि कैश उनके या उनके परिवार के सदस्यों की नहीं था, उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके सभी वित्तीय लेन-देन डॉक्यूमेंटेड हैं और केवल यूपीआई एप्लिकेशन और कार्ड पेमेंट सहित रेगुलर बैंकिंग चैनलों के ज़रिए किए गए हैं.
उन्होंने दिल्ली अग्निशमन सेवा प्रमुख के हवाले से मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा, “नकदी बरामदगी के आरोप के संबंध में, मैं एक बार फिर स्पष्ट करता हूं कि मेरे घर के किसी भी व्यक्ति ने कमरे में जले हुए नोटों के होने की सूचना नहीं दी.” उन्होंने इस बात से इनकार किया कि उनके कर्मियों ने घटनास्थल से कोई कैश बरामद या जब्त किया है.
उन्होंने यह भी दलील दी कि उनके किसी भी कर्मचारी को घटनास्थल पर मौजूद कैश या पैसों के अवशेष नहीं दिखाए गए. उनके जवाब में कहा गया, “यह मानते हुए कि वीडियो घटनास्थल पर घटना के समय रिकॉर्ड किया गया था, ऐसा लगता है कि आधिकारिक तौर पर कोई भी चीज़ बरामद या जब्त नहीं की गई है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: