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Wednesday, 13 November, 2024
होमदेश‘अनिश्चितता में फंसे रहना डिज़र्व नहीं करता’ -गतिरोध के बाद HC जज का पद ठुकराने वाले वकील ने कहा

‘अनिश्चितता में फंसे रहना डिज़र्व नहीं करता’ -गतिरोध के बाद HC जज का पद ठुकराने वाले वकील ने कहा

दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में, वरिष्ठ वकील आदित्य सोंधी का कहना था कि मोदी सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच उनके नाम को लेकर साल भर से चल रहे गतिरोध ने उन्हें 'व्यक्तिगत रूप से' प्रभावित करना शुरू कर दिया था.

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नई दिल्ली: कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपनी पदोन्नति के लिए दी गयी सहमति वापस लेने के तीन सप्ताह बाद वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य सोंधी ने दिप्रिंट को एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि बार का कोई भी सदस्य ‘अनिश्चित काल तक फंसे रहना डिज़र्व नहीं करता.’

सोंधी ने एक ईमेल साक्षात्कार में बताया कि उन्होंने 4 फरवरी को अपनी सहमति वापस ले ली थी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और नरेंद्र मोदी सरकार के बीच उनकी नियुक्ति पर साल भर से चल रहा गतिरोध धीरे-धीरे उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करने लगा था.

हालांकि, उन्हें इस बात की कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली थी कि मोदी सरकार ने उनके नाम का विरोध क्यों किया; मगर सोंधी को संदेह है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ एक सार्वजनिक कार्यक्रम में की गई उनकी टिप्पणी इसका एक कारण हो सकती है.

सोंधी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उड़ती हुई अफवाहों से मुझे पता चला है कि यह जनवरी 2020 में मेरे द्वारा दिए गए एक सार्वजनिक व्याख्यान के कारण हो सकता है, जहां मैंने सीएए की संवैधानिकता पर संदेह व्यक्त किया था. लेकिन मेरे पास इसकी पुष्टि करने का कोई तरीका नहीं है.’

हालांकि, उन्होंने इस सुझाव से इनकार कर दिया कि कर्नाटक में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के साथ उनका जुड़ाव केंद्र द्वारा किये गए प्रतिरोध का कारण है.

सोंधी 2016 और 2018 के बीच कर्नाटक के अतिरिक्त महाधिवक्ता – एक वकील जो उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करता है – थे.

उन्होंने कहा, ‘मैंने वह पद संभाला हो सकता है, लेकिन मेरी अपनी कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं है. मुझे अपने गैर-राजनीतिक होने पर गर्व है.’


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दो अन्य नामों को मिली मंजूरी, मगर सोंधी के नाम पर नहीं लगी मुहर

बेंगलुरु के नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र, सोंधी पहली पीढ़ी के वकील हैं. इसलिए, जब जनवरी 2021 में हाई कोर्ट (एचसी) कॉलेजियम ने बार से बेंच (वकील से जज) में उनकी पदोन्नति के लिए उनकी सहमति मांगी तो उन्होंने खुद को सम्मानित और गौरवान्वित महसूस किया.

सोंधी उन तीन अधिवक्ताओं में शामिल थे, जिनके नामों को जनवरी 2021 में कर्नाटक एचसी कॉलेजियम द्वारा अनुमोदित किया गया था, जिसके बाद फरवरी 2021 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट (एससी) द्वारा मंजूरी दी गई थी. हालांकि, अन्य दो उम्मीदवारों को पिछले साल 25 मार्च को जज नियुक्त कर दिया गया था, मगर मोदी सरकार ने सोंधी की फाइल एससी कॉलेजियम को वापस भेज दी, जिसने सितंबर 2021 में अपना प्रस्ताव फिर से दोहराया.

मगर, केंद्र ने अभी तक सोंधी की नियुक्ति को अधिसूचित नहीं किया है.

मेमोरेंडम ऑफ़ प्रोसीजर – जो उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक नियुक्तियों को नियंत्रित करने वाली एक नियम पुस्तिका है – के अनुसार एससी कॉलेजियम से सिफारिशें प्राप्त करने पर केंद्र या तो नियुक्तियों को अंतिम रूप दे सकता है या फिर किन्हीं आपत्तियों के मामले में वह पुनर्विचार के लिए वे नाम वापस कर सकता है. लेकिन अगर एससी कॉलेजियम लौटाए गए नाम को फिर से मंजूरी देता है, तो केंद्र नियुक्ति करने के लिए बाध्य है.

सोंधी के अनुसार, जब उन्होंने अपनी पदोन्नति के लिए सहमति दी, तो उन्हें ‘हिचकिचाहट’ हुई थी, लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था कि केंद्र को उनके नाम पर आपत्ति होगी.

उन्होंने कहा, ‘पहली पीढ़ी के वकील के रूप में बिना किसी राजनीतिक निष्ठा या पैरवी के मुझे पता था कि मेरे नाम के विचार में कुछ हिचकिचाहट हो सकती है.’ हालांकि, एक बार जब एससी कॉलेजियम ने सिफारिश को मंजूरी दे दी, तो उन्हें लगा कि केंद्र उचित समय के भीतर इसका सम्मान करेगा.

लेकिन शीर्ष अदालत के कॉलेजियम और केंद्र सरकार के बीच उनके नाम पर साल भर से चल रहे गतिरोध ने उन्हें एक बार फिर से आत्मनिरीक्षण करने और ‘संस्था के हित’ में अपनी सहमति वापस लेने पर मजबूर कर दिया.

सोंधी ने कहा, ‘मुझे विश्वास था कि जब एससी कॉलेजियम मेरे नाम के प्रस्ताव को दोहराएगा तो गतिरोध जल्द ही ख़त्म हो जाएगा. ऐसा इस तरह के मामलों में कानून और परंपरा को ध्यान में रखते हुए था. हालांकि, ऐसा होना नहीं था, और यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट दिख रहा था कि यह गतिरोध तब तक जारी रहेगा जब तक मैं स्वय मैदान से नहीं हट जाता.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने अपनी सहमति वापस लेने का निर्णय लेने से पहले (अपने नाम की) सिफारिश के बाद से पूरे एक साल तक इंतजार किया, जिसमें (प्रस्ताव की) पुनरावृत्ति के बाद के पांच महीने भी शामिल थे. यह कुछ ऐसा था जिसे मैंने काफी आत्मनिरीक्षण के बाद किया था.’

यह पूछे जाने पर कि क्या कॉलेजियम ने उनके फैसले को स्वीकार कर लिया है, उन्होंने कहा: ‘मेरे द्वारा नाम की वापसी बिना शर्त की गई है और इसके बारे में एससी कॉलेजियम को सूचित कर दिया गया है. लेकिन मुझे अभी तक इस विषय में एचसी कॉलेजियम से कोई सूचना नहीं मिली है.’


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‘निश्चित तौर पर प्रोफेशनली कीमत चुकानी पड़ी है’

सोंधी के अनुसार, जब कोई वकील न्यायाधीश पद के लिए अपने नाम की सहमति देता है तो उससे कुछ अदालतों में पेशी छोड़ने सहित पेशेवर मोर्चे पर कई सारे ‘बलिदान’ करने की उम्मीद की जाती है.

हालांकि, कर्नाटक हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर सोंधी उच्च न्यायालय में पेश होते रहे थे.

सोंधी ने बताया, ‘यह बहुत ही मूल्यवान सलाह साबित हुई. लेकिन एक वरिष्ठ वकील को पहले की तरह नियमित रूप से ब्रीफ नहीं किया जाता है, क्योंकि बार को लगता है कि ‘रेकमेंडी’ (अनुशंसित व्यक्ति) दूसरी तरफ लगभग चला ही गया है.’

हालांकि, इन वरिष्ठ वकील ने खुद ही अपनी ‘स्थिति’ की वजह से नाजुकता वाले कई मामलों को नहीं लेने का फैसला किया, और ट्रायल कोर्ट तथा ऐसे ट्रिब्यूनल में पेश होना भी बंद कर दिया, जिनकी अध्यक्षता उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश नहीं कर रहे थे.

सोंधी ने कहा, ‘मैंने उन विभिन्न ट्रस्टों और समितियों से भी इस्तीफा दे दिया, जिनका मैं हिस्सा था. निश्चित रूप से इसके लिए पेशेवर रूप से कीमत चुकानी होती है. लेकिन इस तरह अधर में लटका रहना पेशेवर से अधिक व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करता है. ‘

उन्होंने इस सवाल पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि क्या कॉलेजियम उनकी ओर से या ऐसे ही अन्य लोगों की ओर से कोई एक स्टैंड लेने में विफल रहा है, जिनके नाम एससी कॉलेजियम द्वारा दोहराए जाने के बावजूद पदोन्नति के लिए प्रोसेस नहीं किए गए हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं केवल यही कह सकता हूं कि मैंने न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि संस्था के हित में भी सही काम करने की कोशिश की है.’

हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि इस गतिरोध ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली से जुड़े ‘कुछ विसंगतियों’ को उजागर किया है, और साथ ही कहा कि इस प्रक्रिया को सुचारू करने के लिए इस पर फिर से विचार किया जाना चाहिए, खासकर तब जब ‘सरकार और कॉलेजियम के बीच गतिरोध’ की बात आती है.

उन्होंने कहा, ‘यह न्याय प्रदान किये जाने के बड़े मकसद को पूरा करेगा.’

सोंधी का यह भी मानना है कि न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका का अधिकार होना चाहिए, जैसा कि पहले से ही प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में होता है. मगर, मामले में प्राप्त इस अधिकार को ‘वीटो’ नहीं बन जाना चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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