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शुक्रवार, 4 जुलाई, 2025
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कृष्ण खन्ना के कला जगत के सौ वर्ष: रंगों के संग जारी है कैनवास पर जुगलबंदी

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(मनीष सैन)

नयी दिल्ली, चार जुलाई (भाषा) कैनवास पर पेंटिंग, ड्राइंग और स्कैचिंग करते हुए कृष्ण खन्ना ने आधुनिक भारतीय कला क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए हैं और सौ साल की उम्र में भी रंगों के साथ उनकी जुगलबंदी का ये सफर जारी है।

आधुनिकतावादी शैली के अंतिम स्तंभों में शामिल खन्ना भारत के सर्वाधिक प्रभावशाली चित्रकारों में से एक हैं और शनिवार को वह अपना 100वां जन्मदिन मनाने जा रहे हैं। अपने इतने लंबे सफर में खन्ना ने समकालीन भारतीय इतिहास के तमाम उतार चढ़ावों को रंगों और ब्रश के सहारे कैनवास पर जीवंत किया है।

खन्ना के चित्रों में निम्न वर्ग की रूमानियत बहुत कम है, क्योंकि उन्होंने ट्रकवालों, मजदूरों, फल और सब्जी बेचने वालों, मछुआरों, फकीरों और बैंडवालों को चित्रित किया है। यह उनकी कलात्मक संवेदनशीलता है जिसने प्रगतिशील कलाकार समूह (पीएजी) में उनके लिए एक जगह बनाई, जिसमें उनका नाम एम एफ हुसैन, एस एच रज़ा और एफ एन सूजा के साथ शामिल रहा।

खन्ना ने अपने 10 दशकों में से आठ दशक कैनवास के सामने हाशिये पर रहने वालों के बारे में सोचते हुए और उन्हें रंगते हुए बिताए हैं। अभी भी गुरुग्राम स्थित अपने घर में वह कला साधना में रत हैं।

उन्होंने 2021 में अपना 96वां जन्मदिन मनाने के कुछ दिन बाद पीटीआई-भाषा से कहा था, “बेशक! मैं अभी भी पेंटिंग करता हूं”। इस बारे में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए यह जवाब दिया था।

खन्ना ने कहते हैं कि वह हमेशा किसी न किसी चीज़ पर काम करते रहते हैं और अब भी चित्रकारी करना उन्हें रोमांचित करता है।

उन्होंने पीटीआई को फोन पर दिए साक्षात्कार में कहा था, ‘‘कला का मतलब सिर्फ़ चेहरे बनाना या कुछ और बनाना नहीं है। यह अंदर की आत्मा को जगाना है, जो कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है। इसके बाद बाकी सब अपने आप हो जाता है।’’

चार साल बाद भी अपनी कला को लेकर उनका रोमांच बरकरार है।

उनके बेटे करण खन्ना ने अपने पिता के सौवें जन्मदिन के अवसर पर टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, ‘‘वह बहुत देर तक खड़े नहीं रह सकते, लेकिन उन्होंने काम करना बंद नहीं किया है।’’

लायलपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) में जन्मे खन्ना लाहौर में पले-बढ़े और 1938-42 तक रुडयार्ड किपलिंग स्कॉलर के रूप में इंग्लैंड के इंपीरियल सर्विस कॉलेज में पढ़ाई की जहां उन्होंने पहली बार कला का अध्ययन किया।

इंग्लैंड से वापस आकर खन्ना ने विभाजन से पहले के साल लाहौर में बिताए, जहाँ उन्होंने कुछ समय के लिए पेंटर के तौर पर काम किया। उनका परिवार 12 अगस्त, 1947 को भारत की आज़ादी से ठीक तीन दिन पहले शिमला में जा बसा।

उन्होंने 1948-1961 तक तत्कालीन बॉम्बे और मद्रास में ग्रिंडलेज़ बैंक में काम किया। इस दौरान वह अपनी कला को निखारते रहे। आगे चलकर वह कला जगत में एक प्रतिष्ठित नाम बन गए।

किरण नादर म्यूजियम ऑफ आर्ट (केएनएमए) की निदेशक और मुख्य संचालक रुबीना करोडे ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ वे अकसर दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर एम एफ हुसैन के साथ चित्र बनाते देखे जाते थे।’’

आर्ट अलाइव गैलरी की निदेशक सुनैना आनंद कहती हैं, ‘‘ उनके चित्रों में हमेशा एक मानवीय संवेदना होती थी, उन्होंने अपने बचपन की स्मृतियों और विभाजन के अपने अनुभवों को कैनवास पर उतारा। उनके लिए स्मृतियां और मानवीय मूल्य अमूल्य धरोहर थे।’’

भाषा नेत्रपाल नरेश

नरेश

नेत्रपाल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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