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Thursday, 2 May, 2024
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‘अलमारी में बंद कर देते थे, दिन-रात काम कराते थे’ – Human Trafficking के ये किस्से झकझोर देते हैं

विश्व का लगभग हर देश तस्करी से प्रभावित है और मानव तस्करी को लाभ कमाने के तीसरे सबसे बड़े स्रोत के रूप में पहचाना गया है. जिससे संगठित अपराध, हथियारों और ड्रग्स की तस्करी से हर साल विश्न स्तर पर अरबों डॉलर कमाए जाते हैं.

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नई दिल्ली:  “मैं तब 11-12 साल का था. जब मैं चाइल्ड लेबर ट्रैफिकिंग का शिकार हुआ. हालांकि मैं छह से सात महीने में ही इससे बाहर निकल आया, लेकिन आज भी वो यादें मेरे जेहन में ऐसे ताजा हैं जैसे कल ही की बात हो.”

“मेरे परिवार में सात लोग थे और मेरे पिता अकेले कमाने वाले थे इसलिए मैं कोई ऐसा काम करना चाहता था जिससे परिवार की कुछ मदद हो जाए और मेरी पढ़ाई का खर्चा भी निकल जाए. इसी चाह में मैं चाइल्ड लेबर ट्रैफिकिंग का शिकार हुआ था.”

कभी चाइल्ड लेबर ट्रैफिकिंग का शिकार हुए आशीष कुमार कहते हैं, “हमें एक चूड़ी बनाने के फैक्ट्री में ले जाया गया था जहां हमसे सुबह चार बजे से लेकर रात के बारह बजे तक लगातार काम करवाया जाता था.”

हमें भर-पेट न खाना मिलता था न ही सोने का समय मिल पाता था. और काम थोड़ा भी इधर-उधर हो गया तो समझिए शामत ही आ गई, सभी बच्चों को खूब मारा जाता था. ”

आशीष छह महीने चूड़ी फैक्ट्री में काम करते रहे थे, जब उन्हें रेस्क्यू किया गया तो फैक्ट्री में लगातार काम करने की वजह से उनके फेफड़ों में बहुत ज्यादा धूल भर गई थी.

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विश्व का लगभग हर देश तस्करी से प्रभावित है और मानव तस्करी को लाभ कमाने के तीसरे सबसे बड़े स्रोत के रूप में पहचाना गया है. जिससे संगठित अपराध, हथियारों और ड्रग्स की तस्करी से हर साल विश्न स्तर पर अरबों डॉलर कमाए जाते हैं.

आशीष कुमार चाइल्ड लेबर ट्रैफिकिंग के सर्वाइवर हैं, अपने रेस्क्यू के बारे में बात करते हुए वह बताते हैं कि, “मुझे और मेरे साथ छह और बच्चों को पढ़ाई, काम और शहर घूमने का झांसा देकर एक चूड़ी बनाने के फैक्ट्री में ले जाया गया था. जहां हमसे सुबह चार बजे से लेकर रात के बारह बजे तक लगातार काम करवाया जाता था. छह महीने बाद जब मैं फैक्ट्री से रेस्क्यू किया गया, तो मेरे मेडिकल रिपोर्ट से पता चला कि फैक्ट्री में लगातार काम करने की वजह से मेरे फेफड़ों में बहुत ज्यादा धूल भर गई थी.”

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 370 में तस्करी के उन अपराधों को अपराध घोषित किया गया है जिनमें शोषण, शारीरिक शोषण का कोई कार्य या किसी भी प्रकार का यौन शोषण शामिल हैं.

आशीष कुमार और उनके साथ छह और बच्चों की तस्करी कर उन्हें बिहार शेरघाटी से जयपुर ले जाया गया था. 20 वर्षीय आशीष के अनुसार उनके तस्कर सोनू तौफीक को सभी बच्चों की गवाही के बाद उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी और अब भी वह जेल में ही है.

उन्होंने बताया कि ट्रैफ़िकर बच्चों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का काम रात को ही करते है. “हमें रात को ट्रेन से जयपुर ले जाया गया था.”


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समाज का नज़रिया

जब हमें किसी भी तरह के तस्करी से रेस्क्यू किया जाता है और हम अपने घर या फिर समाज में वापस लौटते है तो लोगों का हमें देखने का नजरिया बदल जाता है.

पश्चिम बंगाल की सेक्स ट्रैफिकिंग सर्वाइवर सुपिया खातून दिप्रिंट को बताती हैं, “जब मुझे रेस्क्यू किया गया और मैं अपने घर लौटी तो लोग मेरे सामने तो कुछ नहीं बोलते थे लेकिन पीठ-पीछे बहुत बाते बनाते थे कि मैं क्या करके आई हूं, कैसी जगह से लौटी हूं, मेरे साथ क्या-क्या हुआ था.”

2010 में सुप्रिया जब अपने ट्यूशन से लौट रही थीं, तब उन्हें अगवा कर लिया गया था. खातून पश्चिम बंगाल के नॉर्थ 24 परगना बारासात की निवासी हैं, और बंगाली होने के कारण अपने ट्रैफिकिंग के दौरान उनके लिए सबसे बड़ी समस्या उनकी भाषा बनी, जिस कारण वो न तो किसी से मदद मांग सकी थीं और ना ही किसी को अपने बारे में बताने में समर्थ थीं.

आशीष बताते हैं कि अपने रेस्क्यू के बाद जब वह दो महीने जयपुर के बाल गृह में रहकर अपने गांव बिहार लौटे तो लोग उन्हें ऐसे देखते थे मानों वो कोई क्राइम करके लौटे हैं.

उन्होंने कहा, “गांव के लोग हमें ऐसे देखते थे मानों हम कोई अपराध करके वापस लौटे हो, कोई अपने बच्चों को हमारे साथ खेलने नहीं देता था, उन्हें लगता था कि हम उनके बच्चों को बिगाड़ देंगे. यहां तक कि हमारे कुछ पुराने दोस्त भी हमसे बात नहीं करते थे.”

हालांकि सुप्रिया ने बताया कि अपने घर लौटने के बाद उन्होंने कुछ ही समय में स्कूल जाना शुरू कर दिया था. जहां एक तरफ उनकी टीचर्स ने उनकी खूब मदद की तो दूसरी तरफ कई बार छात्र या फिर उनके पुराने दोस्त उनसे दूर भागते थे, उनके बारे में बातें करते थे कि कहा रहकर आई है और उनसे कई बार अजीब सवाल भी किए जाते थे.

कुमार ने कहा, “जब मैं अपने गांव वापस आया तो मुझे स्कूल में दोबारा एडमिशन लेने में बहुत मुश्किल हुई, मुझसे बार बार यही पूछा जाता था कि बीच में इतना गैप क्यों हैं, इतने समय तक कहां थे. मुझे अपने डाक्यूमेंट्स से जुड़ी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा.”

महिलाओं और बच्चों की तस्करी मानव अधिकारों के उल्लंघन के सबसे घृणित रूपों में से एक है. यह एक जटिल मुद्दा होने के कारण, इसे शिक्षा जगत, कानूनी क्षेत्र और नागरिक समाज से थोड़ा अलग रखा गया है.

आशीष ने दिप्रिंट को बताया कि “ये घटना हमें शारीरिक से ज्यादा मानसिक तौर पर प्रभावित करती हैं, आज पांच-छः साल बाद भी जब मैं इस घटना के बारे में सोचता हूं या फिर इसके बारे में बात करता हूं तो बहुत ज्यादा नर्वस हो जाता हूं.”

‘दिन-रात का पता नहीं चलता था’

सुपिया ने बताया की सेक्स ट्रैफिकिंग के दौरान उन्हें जिस जगह पर रखा गया था वहां पर 14-15 साल से लेकर हर उम्र की महिलाएं मौजूद थीं जिनसे सेक्स वर्क करवाया जाता था. उन्होंने कहा कि “हम पर लगातार नज़र रखी जाती थी, हमारे साथ मार-पीट भी बहुत की जाती थी, ये नहीं देखा जाता था की सामने कोई बड़ा हैं या छोटा, कभी कभी तो खाना भी नहीं दिया जाता था.”

उन्होंने आगे बताया कि कैसे रेड के समय उन्हें छोटी छोटी जगहों में बंद कर दिया जाता था, या फिर अलमारियों में लॉक कर दिया जाता था ताकि रेड के समय कोई उन्हें ढूंढ न पाए.

अगस्त 2021 में, सरकार ने मानव तस्करी से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए देश भर के स्थानीय पुलिस स्टेशनों में “वूमेन हेल्प डेस्क” स्थापित किया था. हालांकि “वूमेन हेल्प डेस्क” टीआईपी जांच शुरू नहीं कर सकते हैं, पुलिस ने डेस्क पर कर्मचारी तैनात किए और वकीलों, मनोवैज्ञानिकों और गैर सरकारी संगठनों के समन्वय से मानव तस्करी सहित अपराध के पीड़ितों के लिए कानूनी सहायता, परामर्श, आश्रय और अन्य सेवाएं प्रदान कीं.

आशीष ने भी दिप्रिंट को बताया कि “हमें भरपेट खाना नहीं दिया जाता था ताकि खाने के बाद हमें नींद न आये. बहुत सारे बच्चों को तो खड़े होने में तकलीफ भी होने लगी थी क्योंकि हमें पूरा दिन बैठ कर काम करना पड़ता था. हमको फैक्ट्री के अंदर दिन-रात का भी पता नहीं चलता था क्योंकि वो पूरी तरह से बंद जगह थी.”

तस्करी के खिलाफ सरकार के कदम

भारत सरकार तस्करी के खिलाफ लगातार काम कर रही है और इसे कम करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं. इन प्रयासों में मानव तस्करी के अधिक मामलों की जांच करना, कई तस्करी मामलों पर विदेशी सरकारों के साथ सहयोग करना और बंधुआ मजदूरी के लिए अधिक तस्करों को दोषी ठहराना शामिल था.

राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने मानव तस्करी विरोधी इकाइयों (एएचटीयू) की क्षमता बनाने के लिए एक नई तस्करी विरोधी इकाई शुरू की.

2023 ट्रैफिकिंग इन पर्सन रिपोर्ट: इंडिया के अनुसार तस्करी के खिलाफ सरकार के प्रयास लगातार जारी हैं और 2021 में, सरकार ने 5,934 तस्करी पीड़ितों और 753 संभावित तस्करी पीड़ितों की पहचान की, जबकि 2020 में 6,622 पीड़ितों और 694 संभावित पीड़ितों की पहचान की गई, और 2019 में 5,145 पीड़ितों और 2,505 संभावित पीड़ितों की पहचान की गई थी.

कुमार ने बताया कि किस तरह उन्हें पुलिस और बाल गृह ने पूरी तरह सपोर्ट किया और साथ ही न्यायिक प्रक्रिया के कारण ही आज उनके तस्कर जेल में है. आशीष अब इलफत से जुड़े हुए है जो ह्यूमन ट्रैफिकिंग के खिलाफ और सर्वाइवर के साथ मिलकर काम करते हैं.


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कार्यवाही में क्यों होती है देरी

सुप्रिया बताती हैं उनका रेस्क्यू उनके परिवार के लगातार प्रयासों के कारण ही संभव हो पाया था. उन्होंने कहा, “मेरी फैमिली की वजह से ही मेरा रेस्क्यू हुआ, वो मेरी फोटो दिखाकर मुझे ढूंढ़ते थे, उन्होंने बहुत सारे एनजीओ और रिपोर्टर्स को बताया था की मैं लापता हो गयी हूं. एक साल तक जब तक मैं नहीं मिली, मेरा परिवार मुझे ढूंढ़ता रहा था.”

पर्यवेक्षकों ने आरोप लगाया कि असम, झारखंड, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्य प्राधिकरण आधिकारिक आंकड़ों में तस्करी के मामलों की संख्या को कम करने के लिए पुलिस को तस्करी के मामलों को अपहरण या लापता व्यक्तियों के रूप में दर्ज करने का आदेश देते है. इसके अलावा, सरकारी मंत्रालयों के बीच प्रभावी समन्वय की कमी भी कानून प्रवर्तन प्रयासों में बाधा उत्पन्न करती हैं.

राज्य सरकार की एजेंसियों के बीच खराब अंतर-राज्य समन्वय, विशेष रूप से मानकीकृत तस्करी-रोधी प्रक्रियाओं और विभिन्न राज्य दृष्टिकोणों की अनुपस्थिति के कारण, तस्करी की जांच में बाधा आती है.

बता दें कि ट्रायल कोर्ट के न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षित और संवेदनशील बनाने के लिए, हाई कोर्ट लेवल पर मानव तस्करी पर न्यायिक संगोष्ठी आयोजित की जाती है. इसका उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों को मानव तस्करी से संबंधित विभिन्न मुद्दों के बारे में संवेदनशील बनाना और सुचारु अदालती प्रक्रिया सुनिश्चित करना है. अब तक, ग्यारह न्यायिक संगोष्ठी चंडीगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिशा में आयोजित की जा चुकी हैं.

अब ऐसी है जिंदगी

आशीष ने अपनी रेस्क्यू की कहानी को अगला मोड़ देते हुए बताया कि एक दिन जब तस्कर द्वारा एक लड़के को नाश्ता लेने बहार भेजा गया तो वह, दुकान जाने के बजाय पुलिस स्टेशन की तरफ गया, जिसके बाद स्टेशन में मौजूद अफसरों द्वारा सवाल किये जाने के बाद बच्चे ने बताया कि उसी की ही तरह और भी बहुत सारे बच्चे फैक्ट्री में बंद हैं और अपने घर जाना चाहते है. कुमार ने बताया, “इसके बाद पुलिस फैक्ट्री पहुंची और सभी बच्चों को वहां से निकालकर जयपुर के बाल गृह भेजा गया, जहां हमें पढ़ाया भी जाता था और हमारा मेडिकल चेकप भी होता था.”

कुमार बिहार में अभी भी अपनी पढ़ाई कर रहे हैं और वो 12वीं की परीक्षा देने वाले हैं. इसके साथ ही वो ह्यूमन ट्रैफिकिंग के खिलाफ कई संस्थानों के साथ मिलकर काम भी करते हैं.

सुप्रिया इलफत में एक लीडर के रूप में ट्रैफिकिंग सर्वाइवर्स के लिए काम करती हैं. इंटीग्रेटेड लीडरशिप फोरम अगेंस्ट ट्रैफिकिंग (ILFAT) मानव तस्करी से बचे लोगों और पीड़ितों के लिए एक राष्ट्रीय मंच है. जो सर्वाइवर्स के विकास के लिए काम करता हैं.

सुप्रिया अब अपनी जिंदगी से खुश हैं और दिप्रिंट को मुस्कुराते हुए बताती हैं, “मेरी शादी 2013 में हो गई, अब मेरे दो बच्चें भी हैं. मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी है और इसके साथ ही मैं हिंदी, इंग्लिश और कंप्यूटर भी सीख रही हूं.”


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