नई दिल्ली : केंद्र सरकार के पदों पर तैनाती के लिए भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों की भारी कमी है और केंद्रीय पुलिस एजेंसियां व सशस्त्र पुलिस बल जल्द ही इसके कारण परेशानी का सामना कर सकती हैं.
देश में 14 केंद्रीय पुलिस संगठन (सीपीओ) और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) हैं, लेकिन वर्तमान में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए 16 से अधिक आईपीएस अधिकारी ‘ऑफ़र लिस्ट’ पर उपलब्ध नहीं हैं, जिस पर आईपीएस अधिकारियों का कहना है- यह हर समय कम रहता है.
केंद्रीय राज्य मंत्री कार्मिक, जितेंद्र सिंह के राज्यसभा में एक लिखित उत्तर के अनुसार, कुल मिलाकर देशभर में 4,940 आईपीएस पद हैं, जिनमें से 970 या 19.64 प्रतिशत पद 2018 तक खाली थे.
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समस्या मिडिल स्तर पर
सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में तैनात1996 बैच के आईपीएस अधिकारी अभिनव कुमार ने कहा कि ऑफर लिस्ट में बहुत कम अधिकारी हैं, जिन्हें स्वीकृत पदों की संख्या दी गई है. उन्होंने कहा, ‘आदर्श रूप में, ऑफर लिस्ट में अधिकारियों की संख्या खाली पदों की संख्या से दो-तीन गुना होनी चाहिए, ताकि सरकार के पास सर्वश्रेष्ठ अधिकारियों का चयन करने के लिए एक पूल हो. लेकिन मध्य स्तर के डीआईजी, एसपी, आदि के ऑफर लिस्ट में सिर्फ एक या दो अधिकारी ही हैं.’
कुमार गलत नहीं हैं. गृह मंत्रालय द्वारा इस महीने की शुरुआत में जारी आंकड़े के अनुसार, पुलिस अधीक्षक (एसपी) और उप महानिरीक्षक (डीआईजी) के पद पर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए सिर्फ एक अधिकारी उपलब्ध है, जबकि डीआईजी स्तर पर 144 स्वीकृत पद और 75 खाली पद, और एसपी स्तर पर 29 पद और 17 खाली पद हैं.
हालांकि, महानिरीक्षक (आईजी), अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी), विशेष महानिदेशक (एसडीजी) और महानिदेशक (डीजी) के वरिष्ठ स्तर पर कम खाली पद हैं. वहीं 78 स्वीकृत पदों के मुकाबले, नौ आईजी के पद खाली हैं, जबकि एडीजी, एसडीजी और डीजी रैंक के, प्रत्येक में एक-एक पद, जो कि अक्सर नियमित सेवानिवृत्ति के कारण है.
आईजी स्तर की ऑफर लिस्ट में केवल दो अधिकारी हैं, लेकिन अन्य वरिष्ठ स्तरों पर अधिकारियों की संख्या खाली पदों के लिए उचित अनुपात में है – एडीजी और डीजी स्तरों पर, ऑफर लिस्ट में सात और पांच अधिकारी उपलब्ध हैं.
यह कमी मध्य स्तर पर क्यों
कई आईपीएस अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, ‘मध्य स्तर पर कमी इसलिए है क्योंकि 1998 और 2006 के बीच, आईपीएस अधिकारियों की भर्ती हर साल 30-35 अधिकारियों तक गिरी है. नतीजतन, वे बैच बहुत छोटे हैं.’
‘एक समय था जब सरकार नौकरशाही को कम करना चाहती थी, और आईएएस और आईपीएस की भर्तियों को बड़े पैमाने पर कम कर दिया. तब से, भर्ती बढ़ गई है.
एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, यह सिर्फ केंद्रीय नियुक्ति में ही नहीं है – राज्य स्तर पर भी पुलिस अधिकारियों की भारी कमी है. ऐसी स्थिति में, राज्य अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर आने के लिए राहत नहीं दे रहे हैं.’
पूर्व आईपीएस अधिकारी नीरज कुमार ने कहा, ‘आईपीएस अधिकारियों की कमी वर्षों से एक समस्या रही है. लोग केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आने के लिए उत्सुक नहीं हैं, कभी-कभी राज्य उन्हें राहत नहीं देते हैं … इसके अलावा, अधिकारी हमेशा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं यदि वे आने के इच्छुक हों तो.’
पदोन्नति के लिए अलग नियम
उन्होंने कहा, ‘अभिनव कुमार ने कमी का एक और कारण बताया कि राज्य और केंद्र स्तर पर आईपीएस अधिकारियों के प्रमोशन के नियम अलग-अलग हैं … इसलिए जब राज्य अधिकारियों को जल्दी बढ़ावा देते हैं, तो केंद्र को अधिक समय लगता है. अगर एक अधिकारी केंद्र में आना चाहता है तो उसे कम रैंक पर आना होगा, जो हतोत्साहित करने जैसा होगा.’
उनके दावे को इस तथ्य से प्रमाणित कर सकते हैं कि 1994 बैच के राज्य स्तर के आईपीएस अधिकारी केंद्रीय स्तर पर एडीजी बन गए हैं, जबकि एडीजी स्तर पर अंतिम बैच को 1989 बैच का अधिकारी बनाया गया है.
खाली पदों को कौन भरेगा?
प्रोविजनल रूप में सरकार ने आईपीएस अधिकारियों के लिए आरक्षित पदों में सीएपीएफ के कैडर अधिकारियों को पोस्ट करना शुरू कर दिया है. उदाहरण के लिए डीआईजी स्तर पर बीएसएफ में 15 पद और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल सीआपीएफ में 18 पद अस्थायी रूप से कैडर अधिकारियों को आईपीएस अधिकारियों के लिए भरने के लिए दिए गए हैं.
लेकिन, सीएपीएफ अधिकारियों के लिए जो अपनी सेना में आईपीएस अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति को समाप्त करना चाहते हैं, आईपीएस अधिकारियों की भारी कमी एक कारण है कि वे इन बलों में पूरी तरह से आना बंद कर दें.
सीआरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘बड़े पैमाने पर कमी के कारण उनके पास राज्यों में कोई अधिकारी नहीं है और परिणामस्वरूप राज्य पुलिसिंग बहुत बुरी तरह से प्रभावित है. ‘फिर वे हमारी सेना में क्यों आना चाहते हैं? क्योंकि ये पद आईपीएस अधिकारियों के लिए आरक्षित हैं, यहां तक कि हमारे अधिकारी जो योग्य हैं, उन्हें पदोन्नत नहीं किया जा सकता है’
हालांकि, आईपीएस अधिकारियों का तर्क है कि केंद्रीय प्रतिनियुक्ति को अचानक समाप्त नहीं किया जा सकता है.
अभिनव कुमार ने पूछा कि देश में कुल आईपीएस अधिकारियों की संख्या में से 40 प्रतिशत पद सीडीआर के लिए आरक्षित होते हैं… यदि आईपीएस अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति सीएपीएफ में समाप्त हो जाती है, तो इस 40 प्रतिशत सीडीआर का क्या होगा?
नीरज कुमार ने कहा, ‘सीएपीएफ और एजेंसियों के कामकाज के लिए यह अच्छी बात नहीं है क्योंकि केंद्र के विकल्प प्रतिबंधित हो गए हैं और उन्हें जो भी उपलब्ध है उन्हें नियुक्त करना होगा.’
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कमी क्षणिक है
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कमी क्षणिक है.
एक अधिकारी ने नाम न बताने कि शर्त पर कहा, ‘यह बहुत महत्वपूर्ण है कि केंद्रीय एजेंसियों में आईपीएस अधिकारियों का आरक्षण बरकरार रहे. यह सच है कि मिड लेवल पर एक संकट महसूस किया जा रहा है, लेकिन यह क्षणिक है.
उन्होंने कहा, ‘कुछ वर्षों में एक बार जब आईपीएस अधिकारियों के बड़े बैचों को पदोन्नति मिल जाती है, तो इसे ठीक कर लिया जाएगा और जैसा कि शीर्ष पदों पर है – महानिदेशक, एडीजी जैसे पदों में कमी नहीं होगी.
जल्द ही एक और समस्या सामने आएगी
इस अंतर को भरने के लिए पिछले कुछ वर्षों में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने प्रत्येक वर्ष 150 आईपीएस अधिकारियों की भर्ती शुरू की है. लेकिन अधिकारियों का कहना है कि यह भी भविष्य कि समस्या से निपटने का तरीका है भविष्य में बहुत अधिक अधिकारी होंगे और बहुत कम पद होंगे.
नाम न बताने की शर्त पर आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘डर यह है कि एक समय ऐसा आएगा जब हर कोई केंद्र में आना चाहेगा और उसके लिए कोई पद नहीं होंगे.
इसी बीच में अभिनव कुमार ने कहा कि स्थिरता को देखने के लिए देश में आईपीएस की भूमिका के बारे में दीर्घकालिक पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा, अगर आप देश में पुलिस बल का विस्तार चाहते हैं तो भर्तियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए किया … यह बिना सोचे समझे नहीं किया जा सकता है.
नीरज कुमार ने कहा, ‘लंबे समय में आईपीएस अधिकारियों को बड़ी संख्या में केंद्र में आने के लिए प्रोत्साहित किया जाना है. यही एकमात्र तरीका है’
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