ज़ी एंटरटेनमेंट इंटरप्राइजेज लिमिटेड (ज़ेडईईएल) और डिश टीवी इंडिया के शेयरों में हाल में आई भारी गिरावट, जिसका संबंध सीरियस फ्रॉड इंवेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) के जांच के दायरे में आई एक कंपनी से एस्सेल ग्रुप के रिश्तों से था, उन मुश्किल परिस्थितियों में से एक था जिनमें ग्रुप के चेयरमैन सुभाष चंद्रा कई बार फंस चुके हैं. इस बार उनके लिए मुसीबत ऐसे समय आई जब वह ज़ी टीवी में अपनी हिस्सेदारी का 50 फीसदी अंश बेचने के लिए प्रयासरत हैं.
जोखिम उठाने को तैयार मीडिया मुगल
68 वर्षीय चंद्रा देश के प्रथम निजी एंटरटेनमेंट चैनल ज़ी टीवी के संस्थापक हैं, जिसके 173 देशों में 1.3 अरब दर्शक हैं और जो करीब 3 अरब डॉलर वाले एस्सेल ग्रुप की अग्रणी कंपनी है. ज़िंदगी में जोखिम उठाना मानो उनकी फितरत में है. शायद इसी कारण उन्होंने, अनजाने में ही सही, पूर्व सोवियत संघ को चावल के निर्यात (1981 से 1987 के बीच) के मुद्दे पर इंदिरा गांधी के प्रभावशाली योग गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी से टकराव मोल लिया – उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘द ज़ेड फैक्टरः माय जर्नी एज़ द रांग मैन, एट द राईट टाईम’ में मज़े लेते हुए बड़ी स्पष्टवादिता के साथ इसका ज़िक्र किया है.
स्टार प्लस पर हिंदी कार्यक्रमों को लेकर पूर्व में सहयोगी रहे दुनिया के सबसे ताकतवर मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक से भी उनकी तनातनी हुई. विगत में वे बड़े-बड़े दुश्मन बना चुके हैं, जिनमें मुकेश अंबानी भी शामिल हैं जिनसे उनकी खटपट मित्र मुकेश पटेल द्वारा दी गई एक खबर ज़ी टीवी पर चलाने के कारण हुई थी. और, पूर्व में वह कई बार अपनी और अपने मीडिया प्लेटफॉर्म की निष्ठाएं बदल चुके हैं, क्योंकि तत्कालीन राजनीतिक सत्ता ने मीडिया युद्ध में, जिसमें वह अक्सर खुद को विदेशी गोलायथ के खिलाफ़ खड़े स्वदेशी डेविड के रूप में चित्रित करते हैं ,उनका साथ नहीं दिया, अब ये स्टार टीवी द्वारा 1996 में पूर्व आईएएस अधिकारी रतिकांत बसु को सीईओ बनाने का मामला हो, या 1997 में डायरेक्ट-टू-होम टीवी सेक्टर में उसके प्रवेश की योजना का.
राजनीतिक कलाबाज़ी
चंद्रा की राजनीतिक कलाबाज़ी का सबसे ताज़ा उदाहरण 2012 का है, जब दिल्ली पुलिस ने ज़ी न्यूज़ के दो वरिष्ठ संपादकों से जुड़े एक मामले की प्राथमिकी (एफआईआर) में उनका भी नाम शामिल किया था. ज़ी के संपादकों पर पूर्व कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल से कोयला घोटाले में उनकी कथित भागीदारी की खबर को दबाने के एवज में 100 करोड़ रुपये उगाहने की कोशिश का आरोप था. अपनी किताब में इस प्रकरण का ज़िक्र करते हुए चंद्रा ने एफआईआर के पीछे ‘सोनिया गांधी और राहुल गांधी का हाथ’ होने का आरोप लगाते हुए उसे कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए सरकार की ‘अन्यायपूर्ण कार्रवाई’ करार दिया है. ‘इसकी प्रतिक्रिया में, मैंने प्रधानमंत्री बनने हेतु नरेंद्र मोदी के अभियान का व्यक्तिगत रूप से समर्थन किया.’
यह समर्थन प्रधानमंत्री की पार्टी और उससे संबद्ध संगठनों की विचारधारा के हर स्तर पर दिया गया है, और ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरे का मुद्दा खड़ा करने के लिए ज़ी न्यूज़ अक्सर वीडियो क्लिपों का अपनी सुविधानुसार इस्तेमाल करता है. और, ये सब पूर्व में चंद्रा के गांधी परिवार से करीबी रिश्ते होने के बावजूद हुआ है. उल्लेखनीय है कि एक बार जब चंद्रा के पास ज़ी टीवी के लिए ट्रांसपोंडर लीज़ पर लेने के पैसे नहीं थे तो राजीव गांधी ने लंदन स्थित एक अनाम मित्र से 400,000 डॉलर जुटाने में उनकी मदद की थी.
विविध रंगों और विवादों से भरी ज़िंदगी में सुभाष चंद्रा, जो कभी-कभार खुद को सुभाष चंद्र गोयल भी कहते हैं, एक सिलसिलेवार उद्यमी रहे हैं, भले ही वह हमेशा सफल नहीं रहे हों.
उदयीमान
सुभाष चंद्रा एक अनाज व्यापारी के घर पैदा हुए थे. वह 18 साल के थे जब उनका पारिवारिक व्यवसाय चरमरा गया और उन्हें राजकीय पॉलिटेक्निक में अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी. वह पारिवारिक आटा मिल संभालने लगे और चार वर्षों की जद्दोजहद के बाद 5 लाख रुपये का कर्ज़ उतारने में सफल रहे. इसके बाद उन्होंने चावल निर्यात का काम किया और 1983 में टूथपेस्ट जैसे उत्पादों की पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक ट्यूब के निर्माण के धंधे में उतरने का जोखिम लिया. उल्लेखनीय है कि उस समय तक इस तरह की पैकेजिंग के लिए आमतौर पर अल्युमिनियम का इस्तेमाल होता था. चंद्रा ने 1988 में एस्सेल वर्ल्ड नाम से मुंबई में एक बड़ा मनोरंजन पार्क खोला. और, 1992 में उन्होंने स्टार टीवी के तत्कालीन मालिक ली का-शिंग को ट्रांसपोंडर सेवाओं के लिए 50 लाख डॉलर सालाना, बाज़ार दर से चार गुना, शुल्क देना का दुस्साहस प्रदर्शित किया. भारत की पहली सैटेलाइट कंपनी चंद्रा ने ही खोली थी. और, ललित मोदी ने जब आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) की सोचा, उससे बहुत पहले चंद्रा एक निजी क्रिकेट लीग, इंडियन क्रिकेट लीग, स्थापित कर चुके थे. साथ ही, वर्तमान में चंद्रा प्राचीन ध्यान विधि विपस्सना के संभवत: शुरुआती संवाहकों में से हैं, जिस ध्यान विधि को आज कांग्रेस महासचिव (पूर्वी उत्तर प्रदेश) प्रियंका गाधी से लेकर इज़रायली इतिहासकार युवाल नोआ हरारी तक अपना चुके हैं.
ज़ी टीवी के चेयरमैन पद से इस्तीफा देकर 2016 में उन्होंने राज्यसभा में प्रवेश किया. राजनीति में उनके प्रभाव का अंदाज़ा उनकी आत्मकथा के लोकार्पण के अवसर पर ज़ाहिर हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों 7 रेसकोर्स रोड (लोक कल्याण मार्ग) पर हुए पुस्तक के विमोचन के मौके पर मुलायम सिंह यादव, सुशील कुमार शिंदे और मनोहर पर्रिकर समेत सभी दलों के नेताओं की उपस्थिति थी.
पर चंद्रा हमेशा इतना प्रतिष्ठित नहीं रहे. 1992 में ज़ी टीवी की स्थापना के बाद से ही वह एक के बाद एक सीईओ को हटाने के लिए प्रसिद्ध हो गए. वह ‘अपरिष्कृत’ हिंदी बोलने के लिए भी जाने जाते थे. वह नं. 502 पताका बीड़ी पीते थे, अरमानी के सूट पहनते थे, प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ साजिशें करने में मज़े लेते थे, और अपने कर्मचारियों पर बात-बात पर गुस्सा उतारते थे. उन्होंने 2016 में ‘इंडिया टुडे’ के लिए इंटरव्यू में मुझे बताया था, ‘पहले तो हाथ भी उठ जाता था, थप्पड़ मार देता था.’ विपस्सना से उनकी ज़िंदगी बदल गई, इतना अधिक कि वह अपने चैनल पर अपने नाम से शुरू ‘डॉ. सुभाष चंद्रा शो’ में दर्शन ज्ञान देने में भी नहीं हिचकिचाते. उन्होंने अपने गुरु एसएन गोयनका को श्रद्धांजलि स्वरूप एस्सेल वर्ल्ड के पास 325 फीट ऊंचा एक विपस्सना पगोडा भी बनवाया है, जो म्यांमार के 2,000 साल पुराने श्वेडागोन पगोडा की प्रतिकृति है.
हिसार से शुरू अपनी यात्रा में वह एक बड़ा फासला तय कर चुके हैं. चंद्रा को शुरुआती वर्षों से जानने वाले मीडिया विश्लेषक अमित खन्ना जोखिमा उठाने की तत्परता को उनकी सबसे बड़ी क्षमता मानते हैं. खन्ना ने कहा, ‘ज़ी टीवी के रूप में उन्होंने एक बड़ा ब्रांड निर्मित किया, पर वरिष्ठ अधिकारियों को वह जल्दी ही बदल दिया करते हैं. साथ ही, उन्होंने उन क्षेत्रों में भी पांव फैलाए जिनके लिए ना तो उनके पास पर्याप्त पूंजी थी और ना ही विशेषज्ञता. शीर्ष स्तर पर बरकरार रहने के लिए उन्हें अपनी महत्वाकांक्षा और राजनीति दोनों को ही नियंत्रण में रखना होगा.’
उनकी सफलता में उनके विश्वास और प्रतिभा का भी योगदान है.
संकल्प शक्ति
सैटेलाइट टीवी के उन शुरुआती खुशगवार काल में चंद्रा ने बहुत होशियारी दिखाई: ज़ी के प्रोडक्शन एडिटर गजेंद्र सिंह पर देश के प्रथम संगीतमय रियलिटी शो ‘अंताक्षरी’ के निर्देशन के लिए भरोसा किया, और प्रिंट मीडिया के पत्रकार रजत शर्मा को प्रसिद्ध शख्सियतों के इंटरव्यू के साप्ताहिक कार्यक्रम ‘आप की अदालत’ प्रस्तुत करने के लिए राज़ी किया. अशिष्ट, भले ही बनावटी हो, सवालों के कारण यह कार्यक्रम अलग तरह का बन पड़ा था. मीडिया ऑडिट और परामर्श की देश की अग्रणी कंपनी स्पेशियल एक्सेस की संस्थापक मीनाक्षी माधवानी चंद्रा की ‘नंबर वन फैन’ हैं. ज़ी टीवी में 1994 से 1996 के बीच काम कर चुकी माधवानी उन्हें बहुत सम्मान के साथ याद करती हैं. उन्हें अपने तीन गुरुओं में से एक – बाकी दो एलेक पद्मसी और सोनु सेन – बताते हुए माधवानी कहती हैं, ‘एससी (सुभाष चंद्रा) अपनी सहज बुद्धि से काम करते हैं. यदि आप पर उनका भरोसा है, तो वह आपका साथ देंगे. पर उनका विश्वास बड़ा नाजुक होता है, जिसे उनके साथ काम करते हुए आपको रोज़ अर्जित करना और बरकरार रखना होता है. इस कारण, सीधे उनको रिपोर्ट करने वालों पर काफी दबाव रहता है. उनमें से ज़्यादातर इस सरल सत्य को नहीं समझ पाए.’
माधवानी कहती हैं, ‘एससी के साथ, आपकी अच्छाई आपके आखिरी काम से आंकी जाती है, अतीत के हिसाब से नहीं. आप खाली नहीं बैठ सकते. किसी भी चीज़ को फेस वैल्यू पर नहीं लेना, वास्तव में, उनका अद्भुत अनूठापन है.’ उन्होंने एक घटना के ज़रिए इस बात को विस्तार से समझाया: दिवाली के समय एक ज्वेलरी बॉक्स उनकी डेस्क पर पहुंचा. बॉक्स चंद्रा के दूर के एक रिश्तेदार की एजेंसी ने भिजवाई थी. उसमें सोने की चार चूड़ियां थीं. माधवानी बॉक्स लेकर चंद्रा के पास पहुंचीं और उनको बताया कि वह इसे लौटाने जा रही हैं. उन्होंने चंद्रा से कहा कि चूंकि बॉक्स उनके एक रिश्तेदार की तरफ से आया था इसलिए उन्होंने उनसे बताना उचित समझा. चंद्रा ने हंसते हुए माधवानी से चूड़ियों की जांच कराने के लिए कहा क्योंकि उनके अनुसार उनका वो रिश्तेदार कंजूस था. उन्होंने माधवानी से ये भी कहा कि वह चाहे तो चूड़ियां रख ले क्योंकि उनका रिश्तेदार गिफ्ट कभी वापस नहीं लेगा. माधवानी चूड़ियां बिल्कुल नहीं रखना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने गिफ्ट लौटाने की कोशिश की लेकिन चंद्रा के रिश्तेदार ने चूड़ियां वापस लेने से मना करते हुए कहा कि माधवानी लक्ष्मी का अपमान कर रही हैं. ऐसे में, माधवानी ने उन्हें गैरसरकारी संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) को दान कर दिया, और ‘क्राई’ से दान की रसीद, चूड़ियों के वास्तविक मालिक को भेज देने का आग्रह किया. गिफ्ट भेजने वाला इस बात से बहुत निराश और खफा हुआ. इस पूरे प्रकरण को चंद्रा ने मज़े लेकर देखा और राहत की सांस ली. माधवानी चंद्रा की कसौटी पर खरी उतरीं. ‘हमारे संबंध इस तरह के थे. एससी से मुझे चुनौतियां मिलती थीं और अधिकांश मामलों में मैं चुनौतियों से निबटने में कामयाब रही. प्रबंधन का उनका तरीका अनूठा है. विभिन्न मुद्दों पर उनकी कार्यशैली बिल्कुल हट के होती है.’
माधवानी के अनुसार सुभाष चंद्रा अपनी भावनात्मक पकड़ के सहारे प्रबंधन करने और सहकर्मियों पर नियंत्रण रखने वाले मैनेजर हैं. वह अचानक ही क्रोधित हो जाने वाले दयालु माता-पिता की तरह हैं. हालांकि अधिकांशत: ऐसे प्रकरण पूर्वनियोजिक नाटक जैसे होते हैं. माधवानी कहती हैं, ‘उन्होंने मुझे दिखाया कि लोगों के प्रबंधन में भावनाओं का कैसे इस्तेमाल किया जाता है. कैसे क्रोध, स्नेह या मनोवृति का रचनात्मक इस्तेमाल किया जा सकता है.’
भविष्य की दृष्टि
चंद्रा को समाचार की ताक़त का अंदाज़ा था, और 1994 में रजत शर्मा के साथ दैनिक समाचार बुलेटिन आरंभ कर उन्होंने नेताओं को उन्हें गंभीरता से लेने के लिए बाध्य कर दिया. अपनी आत्मकथा में वह इस बारे में लिखते हैं, ‘ज़ी टीवी पर समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू होते ही सरकार में मेरी प्रोफाइल और प्रतिष्ठा बदल गई.’ इसलिए आश्चर्य नहीं कि 1995 आते-आते उन्होंने चौबीसों घंटे का समाचार का चैनल शुरू कर दिया.
उन शुरुआती दिनों में सैटेलाइट टेलीविजन के भावी महत्व को भांपने वाले चंद्रा के लिए, जब इस सेक्टर में प्रवेश पर कोई रोकटोक नहीं थी, डिजिटल दुनिया के साथ चल सकने में असमर्थता निश्चय ही कष्टप्रद लगती होगी. इक़बाल मल्होत्रा चंद्रा को तब से जानते हैं जब 1993-94 में वह फॉक्स कॉरपोरेशन के सह-अध्यक्ष रुपर्ट मर्डोक के राजनीतिक सलाहकार थे. मल्होत्रा के अनुसार चंद्रा की, ‘सबसे बड़ी व्यक्तिगत निराशा पहले कदम बढ़ाने के बावजूद स्टार टीवी और बेनेट कोलमैन को पीछे नहीं छोड़ पाने को लेकर रही है. अब जबकि प्रसारण सेक्टर में उत्तरोत्तर गिरावट का दौर है, इससे पहले कि ज़ी के शेयर औंधे मुंह गिर जाएं, वह कंपनी में अपनी हिस्सेदारी का एक बड़ा अंश बेचने को लेकर चिंतित हैं.’
पर, अभी भी उम्मीद है. अकटूबर में, ज़ेडईईएल अपनी ओवर द टॉप (ओटीटी) वीडियो सेवा, ज़ी5, दुनिया के 190 देशों में पहुंचाने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई. अभी तक नेटफ्लिक्स और अमेज़ॉन प्राइम वीडियो जैसी अंतरराष्ट्रीय सेवाओं की ही इस स्तर पर विश्वव्यापी पहुंच है. इकॉनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, चंद्रा की कंपनी परंपरागत ऑडियो-विजुअल कंटेंट से कहीं आगे वर्चुअल रियलिटी, ऑगमेंटेड रियलिटी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और 3डी प्रिंटिंग जैसे क्षेत्रों के लिए एक मज़बूत प्लेटफॉर्म निर्मित करने के वास्ते विश्व स्तर पर रणनीतिक साझेदार ढूंढ रही है. कंटेंट के अभाव से जूझती बड़ी टेलीकॉम कंपनियों की ज़ी के कंटेंट भंडार में भरपूर दिलचस्पी है. जैसा कि, चंद्रा ने पिछले साल एक इंटरव्यू में इसे अपनी शैली में बताया था: ‘लड़की के पास कइयों के विवाह-प्रस्ताव हैं.’
अब दो पक्षों में आदर्श मेल सुनिश्चित करने का उत्तरदायित्व सुभाष चंद्रा पर है. जैसा कि माधवानी कहती हैं: ‘एससी ने मुझे सिखाया कि बिज़नेस पैसे से ज़्यादा प्रेरणा से जुड़ा मामला है. अंत: आपकी प्रेरणा ही आपको ज़िंदा रखती है. बाकी बातें तो बैलेंस शीट की हैं.’
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